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बर्मा से पैदल भारत आई थीं 3 साल की हेलेन:भूख से शरीर बन गया था कंकाल, मां का गर्भपात हुआ और भाई की हो गई मौत

हिंदी सिनेमा की कैबरे क्वीन कही जाने वाली हेलेन आज पूरे 84 साल की हो चुकी हैं। खूबसूरती और अपने अलग तरह के डांस स्टाइल से इन्होंने लाखों लोगों के दिलों पर राज किया। पिया तू अब तो आजा, आओ ना गले लग जाओ ना, ये मेरा दिल, आ जाने जा, महबूबा महबूबा जैसे ना जाने कितने गानों पर थिरकते हुए हेलेन ने अपनी एनर्जी से डांस के नए पैमाने तय किए।

एक दौर वो भी आया जब इनकी एक नजर पाने की चाह में ऐसी भीड़ उमड़ती कि इन्हें बचने के लिए बुरका पहनकर छिपते-छिपाने निकलना पड़ता था। ये रुतबा हिंदी सिनेमा के इतिहास की किसी डांसर के पास नहीं था। वहीं एक समय ऐसा भी रहा जब टाइप कास्ट होने के बाद इन पर व्हाइट स्किन वेस्टर्न वैंप का ठप्पा लगा।

इन सबके इतर हेलेन की जिंदगी कई बुरे हादसों के नाम रही। 3 साल की उम्र में पिता को खोया। देश से निकाला गया तो इन्होंने बर्मा से भारत तक कई किलोमीटर तक पैदल सफर किया। इस सफर में चलते-चलते मां का गर्भपात हो गया, भाई गुजर गया और खुद का शरीर कंकाल बन गया। 13 साल की उम्र में जिम्मेदारियों ने बचपन छीन लिया। कभी 27 साल बड़े आदमी से शादी की तो कभी दूसरी पत्नी बनकर इन्हें सालों तक परिवार के प्यार से महरूम रहना पड़ा।

पहली कहानी हेलेन के बचपन की। हेलेन एन रिचर्डसन का जन्म 21 नवंबर 1938 को रंगून, ब्रिटिश बर्मा में फ्रेंच पिता डेसिमियर जॉर्ज और बर्मी मां मर्लिन के घर हुआ था। कुछ समय बाद मां ने ब्रिटिश मूल के रिचर्डसन से दूसरी शादी कर ली। इनका एक भाई रॉजर था और एक गोद ली हुई बहन जेनिफर। सौतेले पिता रिचर्डसन की मौत दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुई बमबारी से हो गई। जापान के लोगों ने बर्मा पर कब्जा कर लिया। हालात इतने बदतर हो गए कि इनके परिवार को देश से निकाल दिया गया।

1943 में गर्भवती मां, एक छोटे भाई, बहन और हेलेन को लेकर पैदल बर्मा से असम, भारत के सफर पर निकल पड़ीं। आज ये सफर करीब 867 किलोमीटर है, जिसे पैदल पूरा करने में करीब 178 घंटे चलना पड़ेगा। न कोई सामान था, न पैसे, न कपड़े, ना खाना। भूखे प्यासे इन मुसाफिरों ने पैदल सैकड़ों गांव और जंगल पार किए। भुखमरी और बीमारी असर दिखाती रही और धीरे-धीरे साथ चलने वालों की संख्या कम होती चली गई। हेलेन की गर्भवती मां का रास्ते में ही मिसकैरेज हो गया और भाई की तबीयत और बिगड़ गई।

जो आखिर में लोग भारत पहुंचने में कामयाब हुए उन्हें खुशकिस्मती से ब्रिटिश सैनिकों से मदद मिल गई। सैनिकों ने हेलेन की मां और उनके बच्चों को अस्पताल में भर्ती किया। शरीर कंकाल बन चुका था और शरीर पर कई चोट थीं। भाई ने भी बीमारी से लड़ते हुए दम तोड़ दिया। दो महीने तक हेलेन, उनकी मां और बहन अस्पताल में ही रहीं। जब हालत सुधरी तो ये कोलकाता आकर बस गए।

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