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नौ महीने या तीन साल… व्हिस्की को लेकर भारत और ब्रिटेन की शराब कंपनियों में ठनी

नई दिल्ली: भारत और यूके के बीच फ्री ट्रेड एगीमेंट (FTA) को लेकर नौ राउंड की बातचीत हो चुकी है। लेकिन व्हिस्की की मैच्योरिटी एज को लेकर दोनों देशों की कंपनियों के बीच ठनी हुई है। एंजल्स शेयर (angel’s share) को लेकर स्कॉटिश ब्रांड्स और भारतीय कंपनियों के बीच मतभेद है। अल्कोहल को व्हिस्की में बदलने से पहले वूडन कास्क यानी बैरल में स्टोर की जाती है। इस दौरान जो अल्कोहल उड़ जाता है उसे एंजल्स शेयर कहा जाता है। शराब इंडस्ट्री में यह माना जाता है कि एंजल्स यानी देवदूत आते हैं और अपने हिस्से की शराब पी जाते हैं। यूके के लिए भारत स्कॉच व्हिस्की का बड़ा बाजार है और उसे उम्मीद है कि एफटीए लागू होने के बाद इसमें कई गुना बढ़ोतरी होगी। अभी इस पर 150 फीसदी ड्यूटी लगती है। यूके की कंपनियों का कहना है कि तीन साल की मैच्योरिटी एज वाली शराब को व्हिस्की माना जाना चाहिए। लेकिन भारतीय कंपनियां इससे सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि भारत में मौसम गर्म है और इस कारण उन्हें एक-तिहाई व्हिस्की का नुकसान होगा।


कनफेडरेशन ऑफ इंडियन अल्कोहॉलिक बेवरेज कंपनीज (CIABC) के डायरेक्टर जनरल विनोद गिरि ने कहा कि स्कॉटलैंड भारत से ठंडा है। वहां सालाना एक बैरल से एक से 1.5 परसेंट शराब का नुकसान होता है। भारत में मौसम गर्म है और व्हिस्की तीन साल के बजाय नौ महीने में ही मैच्योर हो जाती है। अगर हम लंबे समय तक व्हिस्की को कास्क में रखेंगे तो सालाना 10 से 12 फीसदी का नुकसान होगा। यानी तीन साल में हमें हर बैरल से करीब 35 फीसदी का नुकसान होता है। यह बड़ा नुकसान है और इससे हमारी व्हिस्की की क्वालिटी पर भी असर होगा। ब्रिटेन जो शर्तें थोप रहा है, वह स्वीकार्य नहीं है। हम यूएस, साउथ अमेरिका और अफ्रीका से इस तरह की शर्त के बिना इम्पोर्ट कर रहे हैं।


कितनी हो इम्पोर्ट ड्यूटी

सीआईएबीसी में मोहन मीकिन (Old Monk रम और Solan No1 Whisky), रेडिको खेतान (8PM Whiskey और Rampur Single Malt), तिलकनगर इंडस्ट्रीज (Mansion House Gold Whiskey), Devans Modern Breweries (GianChand Whiskey) और जगतजीत इंडस्ट्रीज (Aristocrat Whisky) शामिल हैं। सीआईएबीसी ने इस बारे में भारत सरकार को कई ज्ञापन दिए हैं। गिरि ने कहा कि ब्रिटेन ने अपने देश की कंडीशंस के हिसाब से कानून बनाए हैं। अगर उन्हें व्हिस्की की मैच्योरिटी को लेकर कोई संशय है तो वहां की लैब्स हमारी क्वालिटी की जांच कर सकती हैं।

गिरि ने कहा कि सरकार ने उन्हें आश्वासन दिया है कि भारतीय कंपनियों की राय को बातचीत में रखा गया है। लेकिन ब्रिटेन हमारी दलील मानने को तैयार नहीं है। वे मार्केट एक्सेस देने को तैयार नहीं हैं। जहां तक एफटीए की बात है तो भारतीय कंपनियां कम से कम पांच डॉलर की इम्पोर्ट प्राइस की मांग कर रही हैं। यूके की कंपनियां इम्पोर्ट ड्यूटी को 150 परसेंट से घटाकर 75 परसेंट करने की मांग कर रही हैं। लेकिन भारतीय कंपनियां इसके खिलाफ हैं। गिरि ने कहा कि इम्पोर्ट ड्यूटी में कमी होनी चाहिए लेकिन यह ब्रिटिश कंपनियों की मर्जी के मुताबिक नहीं होना चाहिए। हम चाहते हैं कि इसे 10 साल में 50 फीसदी पर लाया जाना चाहिए।

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