उत्तर प्रदेशसामाजिक

Banda – डॉ चंद्रिका प्रसाद दीक्षित ललित की कलम का आलेख,विश्व शिक्षक दिवस पर।

Banda-विश्व शिक्षक दिवस पर एक बार आत्मालोचन एवं विचार विमर्श से शिक्षा के वसुधैव कुटुंबकम् के आदर्श को स्थापित कर सके:- डॉo ललित।

अध्यापक समुदाय समस्याओं से ग्रस्त,कुंठाओं से पीड़ित,राजनीति से प्रेरित नित्य बदलते पाठ्यक्रमों से चिंतित :-डॉo ललित। 

आचार्य देवो भव,तैतरीयोपनिषद् का यह उपदेश विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोहों में दिया गया।

ब्यूरो एन के मिश्र 

Banda – शिक्षक की भूमिका,उसके अवदान और तुलनात्मक दृष्टि से परिवर्तन की स्थितियों में विचार करना आवश्यक है। शिक्षक अपने ज्ञान अनुभव और आचरण से शिक्षा दीक्षा और प्रशिक्षण के द्वारा मनुष्य को जीने की प्रेरणा देता रहा तथा सभ्यता संस्कृति को संस्कारों से संस्कृत करता रहा। शिक्षक प्राचीन समय में गुरु के रूप में था जिसे आचार्य पिता और परमेश्वर की भूमिका में देखा जाता था। युग दृष्टा कबीर ने तो गुरु को ईश्वर से भी बड़ा दर्जा दिया।

गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूं पांय।

बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो बताय।।

गुरु अपने शिष्य की खोट को तो काटता था किंतु आंतरिक रूप से अवलंब भी प्रदान करता था। उसे आकृति देता था। उसके व्यक्तित्व का निर्माण करता था जो समाज, राष्ट्र और विश्व मानवता के लिए प्रतिमान बन सके।

गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है गढि-गढि काटै खोट।

अंतर हाथ सहारि दै बाहर वाहै चोट।।

प्राचीन काल में शिक्षा के केंद्र गुरुकुल थे। सामान्य से राजपुत्र तक गुरु के समीप रहकर वेद ,शास्त्र ,इतिहास और चरित गाथाओं की शिक्षा ग्रहण करते थे। चाहे श्री कृष्ण हो अथवा सुदामा दोनों एक ही ऋषि संदीपन के गुरुकुल के अंतेवासी होकर शिक्षा ग्रहण करते थे।

शिक्षा श्रुति पर आधारित थी और गुरु एक-एक विद्यार्थी को संपूर्ण रूप से शिक्षित करते थे। प्राचीन काल में न सरकारी या गैर सरकारी स्कूल थे और न ही शिक्षा के व्यावसायिक केंद्र थे।विद्यार्थियों के ज्ञान की परीक्षा के लिए घोषणा वार्ता में खुले वाद विवाद और शास्त्रार्थ होते थे। गुरु शिष्य की पूरी परीक्षा लेने के बाद आश्रम से विदा करते और दीक्षा का उपदेश भी प्रदान करते थे। दीक्षांत उपनिषद पर आधारित होता था। सत्यम वद,धर्मंचर, स्वाध्या यान्मा प्रमदा मातृ देवो भव,पितृ देवो भव,आचार्य देवो भव,अतिथि देवो भव का गुरु द्वारा उपदेश दिया जाता था। तैतरीयोपनिषद् का यह उपदेश आज भी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोहों में दिया जाता है। किंतुआज का विद्यार्थी,आज के विद्यालय, आज के वेतन भोगी अध्यापक समस्याओं से ग्रस्त हैं। कुंठाओं से पीड़ित हैं। राजनीति से प्रेरित हैं। नित्य बदलते पाठ्यक्रमों से चिंतित हैं। शिक्षा और विद्या नौकरी के लिए केंद्रित हो गई है। व्यवसायिकता ने पूरी तरह से जीवन मूल्यों को बदल दिया है। शैक्षिक वातावरण में फिर से एक नई क्रांति की आवश्यकता है। विश्व शिक्षक दिवस पर आओ फिर एक बारआत्मालोचन की ओर चलें और प्राचीन तथा नवीन शिक्षा प्रणाली पर विचार विमर्श के द्वारा शिक्षा के वसुधैव कुटुंबकम् के आदर्श को स्थापित कर सके।

डॉ चंद्रिका प्रसाद दीक्षित(ललित) डीलिट्,पूर्व प्रोफेसर अध्यक्ष एवं निदेशक पंडित जवाहरलाल नेहरू स्नातकोत्तर हिंदी विभाग एवं शोध केंद्र बांदा,उत्तर प्रदेश संप्रति राष्ट्रीय निदेशक चंददास साहित्य शोध संस्थान,बांदा,उत्तर प्रदेश।

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