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इंटरव्यू: बरसों से पता था, खतरे में है जोशीमठ

नई दिल्ली: अस्सी के दशक में जोशीमठ पर भूगर्भ विज्ञान का अपना शोध पूरा करने वाले डॉ. दिनेश सती जियॉलजी कंसल्टेंट के रूप में यहां की तमाम छोटी-बड़ी परियोजनाओं से जुड़े रहे हैं। वह खुद भी जोशीमठ के समीप स्थित एक गांव के निवासी हैं। जोशीमठ को बचपन से देखते आए हैं। नवभारत टाइम्स के विशेष संवाददाता महेश पांडेय ने उनसे जोशीमठ भू-धंसाव के विभिन्न पहलुओं पर बातचीत की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश :
- जोशीमठ का भू-धंसाव कितना गंभीर है, क्या पहले से इस समस्या का पता नहीं था?
जितना मूवमेंट अभी इसका दिख रहा है, वह गंभीर चिंता में डालने वाला है। सारे घरों की दरारें दिनो-दिन चौड़ी होती गईं और घर अब गिरने की स्थिति में पहुंच गए हैं। कई जगह एक मकान, दूसरे मकान में चढ़ आया है। लोगों के लिए घरों में रहना खतरे से खाली नहीं है। यह धंसाव रुकने वाला नहीं दिख रहा। ऐसा भी नहीं कि धंसाव पहली बार दिखा हो। पहले भी यह समस्या इस शहर के साथ थी। साल 1976 में गढ़वाल के कमिश्नर की अध्यक्षता में बनी मिश्रा कमिटी की रिपोर्ट भी इस बात की तस्दीक करती है। धंसाव को लेकर इस कमिटी ने कई सुझाव दिए थे, लेकिन उसकी अनदेखी हुई। न हमारी तत्कालीन संयुक्त यूपी सरकार ने कोई परवाह की, न अब की उत्तराखंड सरकार ने इस पर ध्यान दिया। शहर की पालिका ने ना ही निर्माणों के लिए कोई नियम कानून बनाए, ना ही किसी प्रकार की जल-मल निकासी की व्यवस्था की। मिश्रा कमिटी की निर्माण कार्यों को हतोत्साहित करने की संस्तुति को नजरअंदाज करके बड़े-बड़े होटल और अट्टालिकाएं खड़ी की जाती रहीं। इसका परिणाम हम सबके सामने है। - इस भू-धंसाव के कौन-कौन से कारण आप देखते हैं?
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- अनियंत्रित निर्माण से शहर की पहाड़ी जमीन पर अत्यधिक भार पड़ना और जल-मल की निकासी के समुचित इंतजाम के अभाव में इसका जमीन के भीतर छीज कर जमीन को कमजोर करना मुख्य कारण है। जोशीमठ शहर बसा ही ग्लेशियर से बहाकर लाई गई लूज बोल्डर और मिट्टी के ढेर पर है। ऐसे में इस पर जितना निर्माण का दबाव पड़ेगा, वह उतना घातक होगा। मौजूदा भू-धंसाव भी मुख्यतया इसी कारण से है। दूसरा कारण शहर की जड़ में बहती नदी से हो रहा कटाव भी है। अलकनंदा नदी इसकी बुनियाद पर लगातार कटाव कर रही है। बेस कटने के चलते भू-धंसाव होना लाजिम है। ऋषिगंगा घाटी में हैंगिंग ग्लेशियर के टूटने से आई बाढ़ के पानी से इसकी पहाड़ी को तब लगा झटका भी वर्तमान समय में भू-धंसाव का एक कारण हो सकता है, जहां तक जल विद्युत परियोजना की सुरंग से भू-धंसाव की बात है तो यह मेरे गले नहीं उतरती। हालांकि मैं उसे कोई क्लीन चिट नहीं दे रहा, लेकिन इतना कहूंगा कि बिना वैज्ञानिक तरीके से इन्वेस्टिगेट किए किसी नतीजे पर पहुंचना ठीक नहीं है। किसी भूगर्भ इंजीनियरिंग संस्थान के विशेषज्ञों से इसका पता लगाना चाहिए। साथ में उसे मजबूती प्रदान करने के उपाय भी उनसे पूछने की आवश्यकता है। अनुभवी इंजीनियर और व्यावहारिक ज्ञान से सुसज्जित विशेषज्ञ ही इसका कोई हल दे सकता है।
- क्या आपको लगता है कि अब भी इस शहर को स्थायित्व प्रदान किया जा सकता है ?
आज की स्थिति में यह नामुमकिन सा काम है। वह भी तब, जबकि इसका मूल कारण हमें पता ही नहीं है। पहले तो देश के तमाम विशेषज्ञ संस्थानों से संपर्क करके उनके विशेषज्ञों को यहां आमंत्रित किया जाए। इसके कारणों के साथ ही स्थायित्व के तरीके भी उन्हीं से पूछने होंगे। उनके द्वारा सुझाए उपायों पर अमल करना होगा। ऐसा नहीं होना चाहिए कि जो जमीन खिसक रही हो, उस पर फिर से कंस्ट्रक्शन मटीरियल का बोझ यह कहकर बढ़ा दें कि हम भू-धंसाव रोकने को इसका ट्रीटमेंट कर रहे हैं । - विशेषज्ञों की टीम से किस तरह की अपेक्षा है?
यह तो सर्वविदित है कि भू-धंसाव हो रहा है। यह भी मालूम है कि सामान्यत: किस कारण से यह हो रहा है। लेकिन मूल कारण क्या है इसका पता तो विशेषज्ञ लगाएंगे और वही यह सुझाव भी दे सकेंगे कि इसका निदान किया कैसे जाना है। अकादमिक अध्ययन कराने का कोई लाभ नहीं। एक्सपर्ट्स से सर्वे कराते हुए ठोस काम करवाने की जरूरत है। उससे पहले पूरे शहर को विस्थापित किया जाना आवश्यक है। अन्यथा कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। - क्या एमसीटी यानी मेन सेंट्रल थ्रस्ट का इस इलाके से गुजरना भी एक कारण हो सकता है?
एमसीटी यहां से जरूर गुजरती है लेकिन उसमें कोई भी मूवमेंट इन दिनों नहीं है। इसलिए उसे इस भू-धंसाव के लिए ब्लेम नहीं किया जाना चाहिए। मेरा तो यह भी कहना है कि हेलंग बायपास भी पक्की चट्टान पर काटी जा रही सड़क परियोजना है। उसका कोई रोल यहां के भू-धंसाव में नहीं है। इसलिए इन विवादों में न पड़कर मूल कारण को खोजना होगा। - क्या आधुनिक विकास की दौड़ में शामिल होने के लिए किए जाने वाले निर्माण को रोकना ही इसका एकमात्र उपाय है?
देखिए, आधुनिक विकास की योजनाएं जरूरी हैं, लेकिन क्षेत्र के स्थायित्व के प्रयासों को भी लागू करना जरूरी है। किसी भी योजना और परियोजना को लागू करने से पहले उससे पड़ने वाले हर प्रकार के प्रभावों का अध्ययन करना और उसके संभावित दुष्प्रभावों को दूर करने का इंतजाम करने से ही बात बनेगी।