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वेब सीरीज रिव्‍यू: ट्रायल बाय फायर

उपहार सिनेमा अग्‍न‍िकांड, भारतीय इतिहास की एक ऐसी त्रासदी है, जिसका दर्द आज भी 162 लोगों के परिवार वाले झेल रहे हैं। दिल्‍ली के ग्रीन पार्क इलाके में स्‍थ‍ित इस सिनेमाघर में 13 जून 1997 को आग लगी। थ‍िएटर में जेपी दत्ता की सुपरहिट फिल्‍म ‘बॉर्डर’ चल रही थी। दोपहर करीब 3 बजे का वक्‍त था। खचाखच भरा सिनेमाघर धू-धूकर जलने लगा। 59 लोगों की इस हादसे में दम घुटने से मौत हो गई, जबकि 103 लोग भगदड़ में गंभीर रूप से घायल हुए। यह सिर्फ एक त्रासदी नहीं थी, एक लंबी कानूनी लड़ाई भी थी जो इस घटना के बाद लड़ी गई। रणदीप झा और प्रशांत नायर की वेब सीरीज ‘Trial By Fire’ इतिहास की इसी त्रासदी और उसके बाद पीड़‍ित परिवारों की लंबी लड़ाई की दास्‍तान है। Abhay Deol और Rajshri Deshpande की दमदार एक्‍ट‍िंग इस सीरीज को बेहतरीन बना देती है।

‘ट्रायल बाय फायर’ की कहानी

‘ट्रायल बाय फायर’ सीरीज की कहानी नीलम और शेखर कृष्णमूर्ति के साथ-साथ आगे बढ़ती है। नीलम और शेखर के बच्‍चे उन्नति और उज्जवल उन 59 पीड़ितों में हैं, जो दुखद उपहार अग्‍न‍ि कांड में मारे गए। यह सीरीज दर्द और शोक में डूबे एक माता-पिता की न्‍याय की लड़ाई है, जो थिएटर के क्रूर कर्मचारियों और प्रशासन के कुप्रबंधन का शिकार हुए हैं।

    ‘ट्रायल बाय फायर’ का रिव्‍यू

    ‘ट्रायल बाय फायर’ सीरीज को अगर एक शब्द में लिखना हो, तो वह है: आश्चर्यजनक। यह साल 1997 में उपहार सिनेमा अग्‍न‍िकांड में अपने दोनों बच्चों को खोने वाले दो माता-पिता की लड़ाई को बड़ी खूबसूरती और दमदार तरीके से दिखाती है। न्याय की बात करना जितना आसान है, उसका रास्‍ता कितना मुश्‍क‍िल है, सीरीज यही दिखाती है। बेहतरीन डायरेक्‍शन, एक्‍टर्स की दमदार एक्‍ट‍िंग ‘ट्रायल बाय फायर’ को एक जबरदस्‍त अनुभव बनाती है। यह शो घटना के पीछे के कारणों की पड़ताल करता है। यह एक ऐसी घटना थी जो कोर्ट के फैसले और दोषी को सजा सुनाए जाने से पहले कई साल तक सुर्खियों में रही। यह मिनी-सीरीज जरूरी देखी जानी चाहिए।

    सीरीज की शुरुआत 17 साल की उन्नति और 13 साल की उज्जवल के साथ होती है। दोनों उपहार सिनेमा में ‘बॉर्डर’ के फर्स्‍ट डे शो को देखने के लिए तैयार हो रहे हैं। उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि यह उनकी जिंदगी का आखिरी दिन है। नीलम और शेखर को जब खबर लगती है कि सिनेमाघर धू-धूकर जल रहा है तो उनकी पूरी दुनिया आंखों के सामने आग की लपटों में जलती हुई दिखती है। एक पैरेंट्स के तौर पर यह किसी के लिए भी टूटकर बिखरने वाली घटना है। दोनों तय करते हैं कि वह इस सच्‍चाई को बस यूं ही स्‍वीकार नहीं करेंगे। इसके कारणों की तह तक जाएंगे। दोष‍ियों को सजा दिलवाएंगे।

    नीलम और शेखर की लड़ाई व्‍यक्‍त‍िगत स्‍तर पर जांच से शुरू होती है। ऐसा लगता है कि जैसे इस तबाही को संभव बनाने के लिए उस दिन सब कुछ एकसाथ काम कर रहे थे। फायर ब्रिगेड की गाड़‍ियों का देर से पहुंचना, पीए सिस्टम और स्प्रिंकलर का ठीक से काम नहीं करना। सीरीज के एक महत्वपूर्ण हिस्से में नीलम और शेखर को कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए बाकी पीड़ितों के माता-पिता और परिवार वालों को एकजुट करते हुए भी दिखाया गया है।

    ‘ट्रायल बाय फायर’ का ट्रेलर
    यह सीरीज बतौर दर्शक आप पर एक दमदार असर छोड़ती है। सीरीज में कई ऐसी स्थितियां दिखाई गई हैं, जिसके बाद आपको भी यह भरोसा होने लगता है कि ऐसा ही हुआ होगा। दिल्ली के सबसे बड़े बिल्डर ‘अंसल’, तब 1997 में एशिया के सबसे बड़े बिल्डरों में शामिल थे। सिस्‍टम और पहुंच वाले लोगों से लड़ने की एक परिवार के संघर्ष की यात्रा कई मौके पर इमोशनल कर देती है। उदासी और निराशा जैसे भाव कमोबेश हर एपिसोड का हिस्‍सा हैं। माता-पिता अपने बच्चों के लिए न्याय की गुहार में सुबह से रात से जुटे हुए हैं। सीरीज के अध‍िकतर सीन बड़े ही फैक्‍चुअल तरीके से रखे गए हैं।
    इस सीरीज का दिल और आत्मा, राजश्री देशपांडे यानी नीलम कृष्णमूर्ति में बसता है। उनकी परफॉर्मेंस बेहतरीन है और यह लंबे समय तक आपके साथ रहती है। एक दुख में डूबी मां के रूप में उन्‍होंने असाधारण काम किया है। उसके भीतर शोक भरा है, लेकिन फिर भी वह न्‍याय की लड़ाई का नेतृत्व करना जारी रखती है। अभय देओल सीरीज में शेखर के किरदार में दिल छू लेते हैं। वह एक बेहतरीन एक्‍टर हैं, लेकिन यह भी सच है कि लंबे समय से वह पर्दे से दूर हैं। लेकिन इस सीरीज की बदौलत वह सुर्खियों में जरूर लौटेंगे।

    अनुपम खेर और रत्ना पाठक शाह का किरदार बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन वह अपने कम स्‍क्रीन टाइम में भी आपकी रुचि बनाए रखते हैं। इनके अलावा सीरीज में वीर सिंह का किरदार निभा रहे राजेश तैलंग गजब की छाप छोड़ते हैं। सरला (किरण शर्मा), एडवोकेट कपूर (आसिफ अली बेग), और अमृता (निमिशा नायर) ने भी अपने किरदार में जान डाल दी है।

    यह सीरीज नीलम और शेखर कृष्णमूर्ति की लिखी किताब पर आधारित है। मेकर्स ने उन्‍हें ही अपनी सीरीज का नायक बनाया है। सीरीज का स्क्रीनप्ले आपको थ्रिलर का एहसास देता है और यह बेहद प्रभावी है। शो के क्रिएटर्स ने छोटी-छोटी बारीक चीजों का भी पूरा ध्‍यान रखा है। कुछ अच्‍छा और दमदार देखना चाहते हैं तो ‘ट्रायल बाय फायर’ एक ‘मस्ट-वॉच सीरीज’ है।

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