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जब आइंस्टीन से मिले नेहरू, महान वैज्ञानिक ने चिट्ठी लिख क्या मदद मांगी थी जिसे देने से पीएम ने किया था इनकार

नई दिल्ली: यह तस्वीर 1949 की है। इसमें देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन हैं। दोनों के मुलाकात की यह तस्वीर अमेरिका में खींची गई थी। इस यादगार तस्वीर से महज दो साल पहले महान वैज्ञानिक ने नेहरू को चिट्ठी लिखकर एक मसले पर उनसे सहयोग मांगा था। यह और बात है कि पंडित नेहरू ने इसमें लाचारी जताई थी। यह किस्सा फलस्तीन के विभाजन और इजरायल को मान्यता देने से जुड़ा है।
भारत की आजादी के थोड़े समय बाद ही यहूदी राष्ट्र इजरायल अस्तित्व में आया था। यहूदी एजेंसी के प्रमुख डेविड बेन गुरियन ने 1948 में इस बारे में ऐलान किया था। गुरियन ही इस देश के पहले प्रधानमंत्री बने थे। लेकिन, पेंच इसे मान्यता देने को लेकर फंसा था। नेहरू फलस्तीन विभाजन के विरोधी थे। संयुक्त राष्ट्र में फलस्तीन विभाजन को लेकर वोटिंग हुई थी। इसमें भारत ने विरोध में वोट किया था। यह अलग बात है कि ज्यादातर देश इजरायल निर्माण के पक्ष में थे। इस तरह फलस्तीन के दो खंड हो गए। यह मसला इसलिए उलझा हुआ था क्योंकि फलस्तीन में यहूदियों के साथ अरबी भी रह रहे थे। इस पूरे मामले से मुस्लिमों की भावनाएं जुड़ी थीं। यही कारण है कि अरब या दूसरे मुस्लिम देशों के आज तक इजरायल से राजनयिक रिश्ते नहीं हैं। कई मुस्लिम देशों ने यहूदियों और इजरायलियों के आने पर अपने यहां रोक लगाई हुई है।
आइंस्टीन ने नेहरू को लिखी थी 4 पन्नों चिट्ठी
महान वैज्ञानिक आइंस्टीन भी यहूदी थे। दूसरे यहूदियों की तरह वह चाहते थे उनका एक अलग यहूदी राष्ट्र हो। जहां दुनियाभर में सताए यहूदियों को जगह मिल सके। यूरोप में यहूदियों पर हुआ अत्याचार किसी से छुपा नहीं था। नेहरू से भी नहीं। 1947 में आइंस्टीन ने नेहरू को एक चिट्ठी लिखी थी। यह 4 पन्नों की थी। इसमें उन्होंने यहूदियों पर हुए अत्याचार का जिक्र किया था। वह इस पूरे मसले पर नेहरू की झिझक को भी समझ रहे थे। वह चाहते थे इजरायल की मान्यता में भारत उसके साथ खड़ा दिखे।
महान वैज्ञानिक आइंस्टीन भी यहूदी थे। दूसरे यहूदियों की तरह वह चाहते थे उनका एक अलग यहूदी राष्ट्र हो। जहां दुनियाभर में सताए यहूदियों को जगह मिल सके। यूरोप में यहूदियों पर हुआ अत्याचार किसी से छुपा नहीं था। नेहरू से भी नहीं। 1947 में आइंस्टीन ने नेहरू को एक चिट्ठी लिखी थी। यह 4 पन्नों की थी। इसमें उन्होंने यहूदियों पर हुए अत्याचार का जिक्र किया था। वह इस पूरे मसले पर नेहरू की झिझक को भी समझ रहे थे। वह चाहते थे इजरायल की मान्यता में भारत उसके साथ खड़ा दिखे।
हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इसमें अपनी मजबूरी जताई थी। नेहरू अरब देशों को नाराज नहीं करना चाहते थे। अन्य अरब देशों की तरह भारतीय मुस्लिमों की भावनाएं भी फलस्तीन विभाजन के खिलाफ थीं। आइंस्टीन के खत का जवाब देते हुए नेहरू ने यहूदियों के लिए सहानुभूति होने का जिक्र किया था। लेकिन, यह भी कहा था कि वह अरब के लोगों के साथ भी संवेदना रखते हैं। नेहरू ने सवाल करते हुए पूछा था कि फलस्तीन में इतना शानदार काम करने के बावजूद भी आखिर यहूदी अरब के लोगों का भरोसा क्यों नहीं जीत पाए। क्यों वे उनकी मर्जी के बगैर यहूदी राष्ट्र के लिए मजबूर करना चाहते हैं।