पाकिस्तान फिर भीख मांग रहा लेकिन हमें छोड़नी होगी आदत…दोस्तों ने छोड़ा साथ तो शहबाज शरीफ को आई अक्ल

इस्लामाबाद: आर्थिक संकट में फंसे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने रविवार को यह बात मानी कि उनका देश बड़ी वित्तीय चुनौती का सामना कर रहा है। शरीफ ने इसके साथ ही यह भी कहा कि अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) के साथ सात अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज के लिए हर नियम को देखा जा रहा है। आईएमएफ का एक प्रतिनिधिनदल इस समय पाकिस्तान में है और नौ फरवरी को देश के भविष्य पर फैसला लिया जाएगा। इस दल का नेतृत्व नैथन पोर्टर कर रहे हैं। शहबाज ने जो कुछ कहा कि उसके मुताबिक देश जहां कहीं से भीख मांग सकता है, मांग रहा है।
शरीफ सरकार ने पिछले हफ्ते से ही आईएमएफ के साथ बातचीत जारी रखी हैं। पाकिस्तान को बेलआउट पैकेज का रिव्यू करना जरूरी है और वह तभी कंगाली से बच सकता है। यह बात भी काफी अहम है कि आईएमएफ के रिव्यू के साथ ही शहबाज सरकार ने एलपीजी के दामों में 30 फीसदी का इजाफा कर दिया है। साथ ही बिजली की कीमतों में भी कम से कम छह रुपए प्रति यूनिट इजाफे का फैसला किया है। पिछले हफ्ते शहबाज शरीफ ने कहा था कि आईएमएफ के प्रतिनिधिदल की तरफ से वित्त मंत्री इशाक डार और उनकी टीम के सामने बहुत ही मुश्किल स्थिति पेश की जा रही है।
शहबाज ने कहा कि आईएमएफ हर नाजुक और सख्त नियम को देख रहा है, चाहे वह वित्त हो, वाणिज्य हो या फिर बिजली सेक्टर हो, वह हर समय सबकुछ देख रहे हैं और हर छूट पर उनकी नजर है। प्रधानमंत्री शहबाज के मुताबिक देश की इस समय भीख मांग रहा है। उनकी मानें तो हमेशा के लिए इस स्थिति को रोकना पड़ेगा। शहबाज की मानें तो नागरिकों को जिंदा रहना होगा लेकिन सिर्फ उस तरह से जैसे बाकी देश के लोग रहते हैं न कि हर समय भीख मांगकर गुजरा करना है।
भीख मांगने की गंदी आदत
शहबाज के मुताबिक 75 साल हो गए हैं औ देश की स्थिति ऐसी ही है और अब इसे बदलना होगा। प्रधानमंत्री शहबाज ने कहा कि अब भीख मांगने की बुरी आदत छोड़नी होगी जिसकी लत देश को लग चुकी है। मगर यह सिर्फ तभी हो सकेगा जब जनता महंगाई से लड़ेगा और साथ ही अपने संसाधनों को पैदा करने की कसम खाएगी। पाकिस्तान ने 22 बार आईएमएफ से कर्ज लिया है। पाकिस्तान के हालात ऐसे हैं कि यहां की सबसे बड़ी रिफाइनरी को बंद हो गई है। देश में डॉलर खत्म हो गया है और अब जब तक कच्चा तेल नहीं आता तब तक कुछ नहीं हो सकता है। आईएमएफ की तरफ से जो कर्ज मांगा गया है, वह इस स्थिति में नाकाफी है। विशेषज्ञों का कहना है कि आईएमएफ का यह कर्ज ऊंट के मुंह में जीरा वाली कहावत है।