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रूस-चीन एक तरफ बाकी अलग, मेहमानों में ऐसी कड़वाहट, मोदी भी मनाने में हो गए फेल

नई दिल्ली: बहुमत वाली सरकार और कई दलों को साथ लेकर चलने वाली गठबंधन सरकार का फर्क भारत के लोग समझ चुके हैं। कई दलों वाली ‘खिचड़ी’ सरकार में फैसले लेना आसान नहीं होता, इसी तरह से बहुपक्षीय संगठन में आम सहमति बनाना मुश्किल होता है। जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक दिल्ली में हुई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में मतभेद भुलाकर वैश्विक चुनौतियों के लिए काम करने की अपील की लेकिन दो देश अलग ही लाइन पर खड़े हो गए। नतीजा यह हुआ कि साझा बयान पर सहमति ही नहीं बन पाई। मुद्दा बना यूक्रेन संकट और यह प्रतिष्ठित समूह दो गुटों में बंटा दिखा। एक तरफ अमेरिका और पश्चिमी देश तो दूसरी तरफ रूस-चीन अलग खड़े रहे। पिछले दिनों जी-20 के वित्त मंत्रियों की बैठक में भी साझा बयान सामने नहीं आया था। लगातार दो मंत्रिस्तरीय बैठकों में आम सहमति न बन पाने से आगामी बैठकों और इसी साल सितंबर में होने वाले शिखर सम्मेलन को लेकर भी सवाल खड़े हो गए हैं। एक तरफ है अमेरिका और उसके सहयोगी देश तो दूसरी तरफ रूस-चीन का गठजोड़ है।

विदेश मंत्री जयशंकर ने बैठक के बाद बताया कि करीब 95 प्रतिशत मुद्दों पर सहमति बन गई थी लेकिन कुछ देशों के विचारों में काफी अंतर था। दो बिंदुओं पर मतभेद ज्यादा था। भारत ने काफी प्रयास किए लेकिन रूस-चीन बाकी देशों से अलग ही रहे। यूक्रेन पर एक मत न होने से ही संयुक्त बयान नहीं आया।

  • यह मेजबान भारत के प्रयासों की कमी नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों के बीच बढ़ते मतभेद का नतीजा है - संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस के प्रवक्ता

2 पैरे पर अटक गई सारी बात

विदेश मंत्री जयशंकर ने पत्रकारों को बताया कि यूक्रेन संघर्ष को लेकर देशों में काफी मतभेद थे। हालांकि ज्यादातर मुद्दों, खासतौर से विकासशील देशों से जुड़ी चिंताओं पर सहमति बन गई। जयशंकर ने कहा, ‘अगर सभी मुद्दों पर सबके विचार एकसमान होते तो साझा बयान अवश्य जारी होता, लेकिन यूक्रेन संघर्ष से जुड़े मुद्दों पर मतभेद हैं।’ हालांकि जयशंकर ने दो पैराग्राफ का विरोध करने वाले देशों के नाम नहीं लिए लेकिन अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने साफ बताया कि रूस और चीन ने संयुक्त प्रेस बयान का समर्थन नहीं किया। उन्होंने कहा कि यूक्रेन पर मतभेद थे। कई राजनयिकों ने भी कहा कि यूक्रेन संघर्ष को लेकर अमेरिका की अगुआई में पश्चिमी देश और रूस-चीन के बीच गहरी खाई दिखी। जयशंकर ने कहा कि इस पर विचार दो ध्रुवों में बंटे थे।

दरअसल, दस्तावेज में यूक्रेन संघर्ष पर दो पैराग्राफ थे। रूस और चीन को छोड़कर सभी देश इस पर सहमत हुए। ये दो पैराग्राफ जी-20 के बाली सम्मेलन के घोषणापत्र से लिए गए थे। इनमें से एक पैराग्राफ में अंतरराष्ट्रीय कानून और बहुपक्षीय प्रणाली को कायम करने की बात कही गई है कि जो शांति और स्थिरता को सुरक्षा प्रदान करते हैं। इसमें कहा गया, ‘परमाणु हथियारों का उपयोग या इस्तेमाल की धमकी अस्वीकार्य है। संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान, कूटनीति और संवाद महत्वपूर्ण है। आज का युग युद्ध का नहीं होना चाहिए।’ बैठक में आतंकवाद की खुलकर निंदा की गई। जयशंकर ने कहा, ‘हमारी कोशिश है कि ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज सुनी जाए।’

रूस-चीन बोले, हम हस्ताक्षर नहीं करेंगे

इस बैठक की शुरुआत में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक वीडियो संदेश दिया था। उन्होंने आग्रह किया था कि दुनिया के सामने मौजूद ज्वलंत चुनौतियों पर आम सहमति बनाई जाए और भू-राजनीतिक तनाव पर मतभेदों से समूह के व्यापक सहयोग को प्रभावित न होने दिया जाए। हालांकि अमेरिका के विदेश मंत्री ने बताया कि रूस और चीन दो देश हैं, जिन्होंने जी-20 के विदेश मंत्रियों की बैठक में संयुक्त बयान जारी करने का समर्थन नहीं किया। रूस के हमले का जिक्र होने पर दोनों देश विरोध करने लगे।

ब्लिंकन ने बताया, ‘रूस और चीन ने साफ कह दिया कि वे हस्ताक्षर नहीं करेंगे।’ अमेरिकी मंत्री ने कहा कि जी-20 के लिए भारत के एजेंडे का अमेरिका खुलकर समर्थन करता है। साथ ही अमेरिका यूक्रेन का सहयोग करता रहेगा। जी-20 की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी के बयान का जिक्र करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि उनकी बात सही है कि बहुपक्षीय प्रणाली में चुनौतियां होती हैं। ब्लिंकन ने कहा, ‘कई मायनों में ये चुनौतियां सीधे रूस से आ रही हैं।’

भारत की तारीफ, अमेरिका पर भड़का रूस

उधर, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद संयुक्त बयान जारी नहीं होने के लिए अमेरिका को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने सख्त लहजे में कहा कि अमेरिका और ब्रिटेन यूक्रेन विवाद का शांतिपूर्ण समाधान नहीं चाहते हैं। उन्होंने बतौर जी-20 अध्यक्ष भारत की भूमिका को सराहा। लावरोव ने कहा कि भारत एक बड़ी वैश्विक शक्ति बनने का दावेदार है। चीन के विदेश मंत्री ने रूस के रुख का समर्थन किया। उधर फ्रांस, जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों के विदेश मंत्री भी यूक्रेन के मुद्दे पर अमेरिका के साथ खड़े दिखे।

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