अनुभव सिन्हा बोले- मेरी फिल्म ‘भीड़’ सरकार विरोधी नहीं, सामाजिक सरोकारों के पीछे की संवेदना है
आज से तकरीबन 20-21 साल पहले आई तुम बिन के बाद आपको पहले भी कहीं देखा है, दस, तथास्तु, कैश और रा.वन तक का अल्हड़ फिल्मकार मुल्क के बाद थप्पड़, आर्टिकल 15 और अनेक तक आते-आते उद्दंड और बेबाक बन जाता है। हम बात कर रहे हैं, जाने-माने फिल्मकार अनुभव सिन्हा की। इन दिनों वे चर्चा में हैं अपनी नई फिल्म भीड़ को लेकर। इस विशेष मुलाकात में वे अपनी फिल्म के ब्लैक एंड वाइट होने, अपने कलाकार दोस्तों, अपने ट्रांसफॉर्मेशन, फिल्म को एंटी गवर्नमेंट कहलाने, बॉयकॉट ट्रेंड जैसे मुद्दों पर दिल खोलकर बात करते हैं।
कोरोना, लॉकडाउन और पलायन के दौर से हर कोई कहीं न कहीं प्रभावित हुआ है, मगर आपको इस विषय पर फिल्म बनाने का खयाल कब और क्यों आया? क्या आपका भी कोई दर्द जुड़ा है?
-बहुत सारी बिखरी हुई कहानियां थीं, जो परेशान कर रही थीं। कोई एक लम्हा तो नहीं याद कि फलां हादसे या घटना से कहानी का खयाल आया, मगर हमारे आस -पास जो हो रहा था, उससे एक बेचैनी-सी भर गई थी, मेरे अंदर। उसी बेचैनी ने नई कहानी को जन्म दिया। बहुत सारी घटनाएं थीं, जिसमें कुछ लोग ट्रेन के नीचे आकर मर गए थे, एक इंसिडेंट ऐसा था, जब एक भूखा आदमी गाड़ी से कुचले हुए जानवर का गोश्त खा रहा था। एक बच्चा सूटकेस पर सोता हुआ जा रहा था। ऐसे अनगिनत इंसिडेंट थे, जिन्होंने मुझे झकझोर कर रख दिया था। जहां तक व्यक्तिगत जिंदगी की बात है, तो हम अपने कमरों में बंद थे। दोस्तों से फोन पर बातें करते थे। जो दूसरे लोग करते थे, जैसे सिलेंडर या दवाइयों की व्यवस्था, वो करने की कोशिश किया करते थे।
मुद्दों और सामाजिक सरोकार के विषयों वाली फिल्मों के प्रति आप काफी संवेदनशील है और मुखर भी।
एक तरफ आपकी फिल्म का ट्रेलर काफी पसंद किया जा रहा है और दूसरी तरफ इस फिल्म को कुछ लोग एंटी गवर्नमेंट कह रहे हैं?
-जो लोग भी मेरी इस फिल्म को एंटी गवर्नमेंट कह रहे हैं, उन्हें आप बता दें कि ये सरकार विरोधी फिल्म नहीं है और इस फिल्म को जिसने बनाया है, ये बात वो कह रहा है। अब मैं आपको बता दूं कि हफ्ते भर में मैं दो -तीन इवेंट्स पर गया हूं और लोगों ने मुझे ज्यादा देर तक गले लगाया है। मैं उनकी भावना को समझ सकता हूं। आम तौर पर आप जब हाथ मिलाते हैं या गले लगते हैं, तो उसका एक वक्फा होता है, मगर यहां मुझे ज्यादा देर तक गले लगाया जा रहा है। उनका यह एप्रिशियेशन मुझे हिम्मत देता है।
जब भी इस तरह की रियलिस्टिक अप्रोच की फिल्में आती हैं, तो विरोध क्यों होता है?
-असल में सच की एक क्वालिटी होती है, वो सारे एंगल्स से दिखता नहीं है। एक खास जगह जाकर खड़ा होना पड़ता है। फिर ये आप तय करते हैं कि आपको वहां खड़ा होना है या नहीं? होता वो सच ही है। मैं उन लोगों को अपनी फिल्म और कहानियों के माध्यम से उस एंगल पर ले जाता हूं और कहता हूं, देखो एक सच ये भी है, जितना दिख जाए आपको।
पहले जो फिल्म का ट्रेलर आया था, मुझे पीएम की आवाज थी, मगर अब दूसरे ट्रेलर में वो आवाज बदल दी गई है? क्या सेंसर बोर्ड के सजेशन पर ये हुआ?
-हमारे काम करने के कई तरह के पहलू हैं और ये उसका एक हिस्सा है। मैं नहीं चाहता वो किसी और की जानकारी में जाए, वो कोई ऐसी बात नहीं है। वरना आपको तो पता ही है कि मैं अपनी आवाज और टेक को लेकर ट्विटर पर भी मैंने आज तक परवाह नहीं की, तो आज क्यों करूंगा? मगर वो फिल्म से बहुत नीचे की बात है।
-ऐसा नहीं है कि हमारी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर नहीं चल रही, पठान ने रिकॉर्ड ब्रेक कमाई की, तो तू झूठी मैं मक्कार सौ करोड़ करने जा रही है। रानी की फिल्म मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे अच्छा बिजनेस कर रही है। हमेशा से ही इतनी ही फिल्में चलती थीं, जो चेंज हुआ है, वो ये है कि पहले एक प्रकार की फिल्मों का एक मिनिमम हुआ करता था। मसलन अगर हम इस तरह की फिल्म बनाएंगे, तो वो कम से कम 20 करोड़ तो करेगी ही। अब वो मिनिमम बदल गया है। जब दर्शक फिल्म नहीं देखना चाहते, तो वे नहीं देखते। जो फिल्मों की कमाई की मिनिमम गारंटी थी, वो खत्म हो गई। वो गणित बदल गया।
बॉयकॉट ट्रेंड पर क्या कहना चाहेंगे?
-ऐसा नहीं है कि बॉयकॉट से इंडस्ट्री को कोई फर्क नहीं पड़ा। बॉयकॉट ट्रेंड को लेकर एक तवील और मुसलसल ट्रेंड रहा, जिसका भी रहा, उसका बॉलीवुड को बहुत नुकसान हुआ।