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क्‍या सरकार बीच में बदल सकती है भर्ती प्रक्रिया? ‘अग्निपथ’ मामले में दिल्‍ली हाईकोर्ट के आदेश से समझ‍िए

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि केंद्र की अग्निपथ योजना ‘जनहित’ के दायरे में आती है। उम्मीदवार नई नीति पेश किए जाने से पहले जारी अधिसूचना के तहत शुरू की गई प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी के आधार पर भर्ती किए जाने का कोई दावा पेश नहीं कर सकते। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने पूर्व के कुछ विज्ञापनों के तहत सशस्त्र बलों के लिए भर्ती प्रक्रिया के संबंध में याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि यदि जनहित में हो तो सरकार बीच में ही भर्ती प्रक्रिया में बदलाव कर सकती है।


अदालत ने याचिकाकर्ताओं की इस दलील को खारिज कर दिया कि उन्होंने अवसर खो दिया और नीति में अचानक बदलाव होने से उन्हें नुकसान हुआ। अदालत ने कहा कि इस मामले में सरकार को उसके द्वारा शुरू की गयी भर्ती प्रक्रिया को लेकर बाध्य नहीं किया जा सकता।

    अदालत ने कहा कि इस योजना का उद्देश्य सशस्त्र बलों के लिए भर्ती की उम्र कम करना था जो इसे ‘अधिक चुस्त, फुर्तीला तथा सीमा सुरक्षा के लिए फायदेमंद बना देगा’ तथा ऐसे उद्देश्य मनमाने या दुर्भावनापूर्ण नहीं कहे जा सकते।


    पीठ ने कहा, ‘यह अदालत इस स्पष्ट निष्कर्ष पर पहुंची है कि विवादित योजना (अग्निपथ) मनमानी नहीं है। इसके विपरीत यह ‘जनहित’ के दायरे में आती है… यदि जनहित में हो तो सरकार भर्ती प्रक्रिया को बीच में ही रोक सकती है।’

    उसने कहा, ‘यह भी कहा जाता है कि इस विवादित योजना में सैनिकों की औसत आयु कम करने से हमारे सशस्त्र बल अन्य देशों के बराबर होंगे क्योंकि दुनियाभर में सशस्त्र बलों की औसत आयु 26 साल है।’

    केंद्र ने पिछले साल 14 जून को अग्निपथ योजना शुरू की थी, जिसके तहत सशस्त्र बलों में युवाओं की भर्ती के लिए नियम निर्धारित किए गए हैं। इन नियमों के अनुसार, साढ़े 17 से 21 वर्ष की उम्र के लोग आवेदन करने के पात्र हैं और उन्हें चार साल के लिए सशस्त्र बलों में भर्ती किया जाएगा। चार साल के बाद इनमें से 25 प्रतिशत को नियमित सेवा का मौका दिया जाएगा।

    योजना के ऐलान के बाद कई राज्यों में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए थे। बाद में सरकार ने साल 2022 के लिए भर्ती की अधिकतम उम्र सीमा बढ़ाकर 23 वर्ष कर दी थी।

    अदालत ने उन उम्मीदवारों को भी कोई राहत नहीं दी जिनके नाम चयन सूची में आए थे लेकिन उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं मिले।

    भारतीय सेना और वायु सेना के लिए साझा प्रवेश परीक्षा (सीईई) और 2019 की एक अधिसूचना के तहत कई याचिकाएं दायर करने वाले लोगों ने उच्च न्यायालय में शिकायत की थी कि कई पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया ‘अंतिम समय’ में रोक दी गयी और अग्निपथ योजना लाने के आधार पर इसे रद्द कर दिया गया जिससे उनकी भर्ती अमान्य हो गयी।

    अदालत ने कहा कि यह अच्छी तरह स्थापित है कि जो उम्मीदवार नियुक्ति पत्र जारी किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं वे महज रोजगार पाने का अधिकार नहीं जता सकते।

    अदालत ने यह भी कहा कि उसे याचिकाकर्ताओं की इस दलील में कोई दम नहीं दिखा कि अगर भारतीय नौसेना पहले की अधिसूचना के तहत भर्ती जारी रख सकती है तो भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना भी ऐसा कर सकती है।

    अदालत ने कहा कि भारतीय नौसेना के लिए भर्ती प्रक्रिया श्रमबल की कमी को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय हित में जारी है।

    उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं की उस दलील को भी खारिज कर दिया कि उन्हें उन उम्मीदवारों के बराबर रखा जाए जिनकी रैलियों के जरिए भर्ती हुई।

    उसने कहा, ‘भारतीय सेना के संबंध में सशस्त्र बलों में आदिवासी और पर्वतीय इलाकों के लोगों की संख्या बढ़ाने के लिए रैली भर्ती की जाती है ताकि जनसांख्यिकीय संतुलन बना रहे।’

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