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लिव-इन में हैं तो क्या बच्चा गोद नहीं ले सकते? जज ने पूछा, सिर्फ पिता बचे हों तो क्या होगा

नई दिल्ली: सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने के मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि कोई भी हेट्रो कपल बच्चा गोद ले सकता है या फिर कोई अन्य भी गोद ले सकता है, लेकिन अगर दो बालिग लिव-इन में रह रहे हों तो वह गोद नहीं ले सकते? अडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने कहा कि अभी तक के कानून में ऐसा प्रावधान नहीं है कि लिव-इन रिलेशनशिप वाले गोद ले सकें।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से अडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी: शादी का आधार यह है कि आदमी और औरत के बीच यूनियन होगा और इसमें जेंडर अस्थिरता की इजाजत नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में तीसरे जेंडर को मान्यता दी है, लेकिन उनकी पहचान अलग है। बच्चे की सलामती सर्वोपरि है और उसे अनिश्चित स्थिति में नहीं रखा जा सकता है। बच्चों का विकास भी माता-पिता दोनों से होता है।

जस्टिस हीमा कोहली: आप जेंडर पार्ट को भूल जाएं अगर सिर्फ पिता बचे हों तो?

जस्टिस एस रवींद्र भट्ट: हम मातृत्व से आगे की बात कर रहे हैं हम पैरेंटहुड की बात कर रहे हैं। सिंगल पैरंट्स भी होते हैं अगर बच्चे के जन्म के समय मां की मौत हो जाए या किसी एक्सिडेंट में किसी एक की मौत हो जाए तब?

ऐश्वर्य भाटी: हेट्रोसेक्सुअल से पैदा हुआ बच्चा एक आदर्श स्थिति है। अगर बच्चे नहीं हुए तो कानून ने एक विकल्प दिया है। गोद लेने का उद्देश्य यह है कि विधवा, तलाकशुदा और छोड़ी गई महिला के लिए एडॉप्शन प्रक्रिया है।

चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़: लेकिन कानून कई कारणों के आधार पर गोद लेने की इजाजत देता है। कोई सक्षम भी है तो भी तो भी एडॉप्शन की इजाजत है। कानून मान्यता देता है। एक आदर्श परिवार अलग बात है। हेट्रो में अगर एक की मौत हो जाए तो फिर क्या?

अडिशनल सॉलिसिटर जनरल भाटी: कानून बच्चे के नजरिए से देखता है। आपके कई जजमेंट हैं जिसमें व्यवस्था दी गई है कि एडॉप्शन का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है।

चीफ जस्टिस: आपका केस यह है कि हेट्रो अगर शादीशुदा है तो उन्हें एडॉप्शन का अधिकार है?

भाटी: बिल्कुल।

चीफ जस्टिस: अगर दो लोग लिव इन में रहते हैं तो भी वह बच्चा गोद नहीं ले सकते? अगर हेट्रो लिवइन में हों तो भी गोद नहीं ले सकते।

भाटी: अभी के कानून के तहत तो नहीं ले सकते। हेट्रो शादीशुदा कपल गोद ले सकते हैं। एक शख्स भी गोद ले सकता है। कई शर्तें तय हैं।


चीफ जस्टिस: लिव इन में रहने वाले कपल गोद नहीं ले सकते हैं। इसलिए वह गोद नहीं ले सकते हैं कि वह लिव इन में हैं। ये हमारा सवाल है?
जस्टिस कोहली: फिर तो कोई गोद ले ले और बाद में लिवइन में रहने लगे।

भाटी: ऐसे में गोद लेने की प्रक्रिया रद्द करने का भी प्रावधान है।

जस्टिस कोहली: सिंगल पैरंट्स हों तो तब क्या होगा?

ऐश्वर्य भाटी: अलग-अलग मसला है जैसे उम्र और जेंडर आदि इन शर्तों पर गोद लिया जा सकता है। लिवइन को गोद लेने की इजाजत नहीं।

चीफ जस्टिस: यानी लिवइन में रहने वाले गोद नहीं ले सकते?

भाटी: वह गोद इसलिए नहीं ले सकते क्योंकि वह कभी भी रिलेशनशिप से बाहर जा सकते हैं। बच्चे का भविष्य अनिश्चित नहीं किया जा सकता है।

चीफ जस्टिस: आप कह रहीं है कि सेम सेक्स को मान्यता नहीं है तो उन्हें गोद लेने का अधिकार नहीं है क्योंकि बच्चों को एक स्टेबल फैमिली चाहिए।

भाटी: जब बच्चों के अधिकार की बात हो तो सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए। सेम सेक्स मैरिज के मामले में बच्चों के नजरिए से मामले को देखना चाहिए। गोद लेने के नियम, सरोगेसी लॉ आदि पर विपरीत असर होगा।

एडवोकेट पात्रा: बिना पर्सनल लॉ को देखे इस मामले को उठाया नहीं किया जा सकता है।

एडवोकेट संजीवनी अग्रवाल: शादी का अधिकार यूनिवर्सल है लेकिन मौलिक अधिकार नहीं है।

एडवोकेट शशांक झा: शादी प्राइवेट मसला नहीं है बल्कि सामाजिक मसला है।

याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंघवी: स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होमोसेक्सुअल को शादी का अधिकार मिले।

चीफ जस्टिस: आपकी दलील है कि कोई भी शादी की मान्यता हो या शादी संस्था की बात हो उसमें सेम सेक्स को बाहर रखना संविधान का उल्लंघन है। वहीं दूसरे पक्ष की दलील है कि शादी का मतलब ही हेट्रोसेक्सुअल का यूनियन है।

सिंघवी: मनमाना और भेदभावपूर्ण तरीके शादी की मान्यता से समलैंगिक को बाहर रखा जा रहा है और उसे हम चुनौती दे रहे हैं।

चीफ जस्टिस: आपकी चुनौती है कि कोई भी शादी की मान्यता अगर हो रही है और वह सिर्फ मेल और फीमेल तक सीमित रखी जा रही है तो वह गैर-संवैधानिक है?

सिंघवी: अगर आप स्पेशल मैरिज एक्ट देखें तो सेम सेक्स कपल उससे बाहर हैं और यह संविधान के अनुच्छेद-14,15 और 21 के तहत गैर-संवैधानिक है।


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