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कार गायब, GPS भी फेल, लोकेशन का पता तक नहीं चलता! हाईटेक हुए दिल्‍ली के चोर

नई दिल्‍ली: लाजपत नगर में रहने वाले शिशिर पांडेय (काल्‍पनिक नाम) ने पिछले साल 20 लाख रुपये की कार खरीदी। चोरी न हो जाए इसके लिए अलार्म सिस्‍टम, जीपीएस ट्रैकर लगवाया। तीन दिन पहले उनकी कार चोरी हो गई। वह कार की लोकेशन तक ट्रैक नहीं कर पा रहे थे। ये सिर्फ शिशिर की नहीं, दिल्‍ली के कई कार मालिकों की आपबीती है। दिल्‍ली के कार चोरों के आगे अब जीपीएस फेल है। वो इलेक्‍ट्रॉनिक जैमर लगाकर सिग्‍नल जाम कर देते हैं। नतीजा आपकी कार अलर्ट नहीं कर पाती, न ही उसकी लोकेशन पता चलती है। पुलिस ने दिल्‍ली के शातिर वाहन चोरों की नई तरकीब का खुलासा किया है। ये लोग दिल्‍ली से कारें चुराकर उन्‍हें अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और पूर्व चंपारण जैसी दूर-दराज की जगहों में भेज देते थे। अभी तक इनके पास से 12 कारें, एक इलेक्‍ट्रॉनिक जैमर, अलग-अलग कारों के मॉडल्‍स की 345 चाभियां, चाभी बनाने वाली मशीन और दो प्रोग्रामिंग मशीनें मिली हैं।

ये चोर काफी हाईटेक तरीके से कार उड़ाते हैं। आपस में बातचीत के लिए ये लोग वॉकी-टॉकी का इस्‍तेमाल करते थे। डीसीपी (द्वारका) हर्ष वर्धन ने गैंग के चार सदस्‍यों की गिरफ्तारी कन्‍फर्म की। बाकी सदस्‍यों की तलाश जारी है। वर्धन के मुताबिक, इन कार चोरों के पास से तीन पिस्‍टल, 14 काट्रिज भी मिली हैं।

जीपीएस ट्रैकर लगी कारें कैसे चुराता था यह गैंग

दिल्‍ली पुलिस के हत्थे चढ़े सुनील और मंजीत ने कार चोरी की मॉडस ऑपरेंडी समझाई। ये दोनों जैमर्स के जरिए चोरी की कारों का सिग्नल ब्लॉक कर देते। एक बार यह गाड़ियां अरुणाचल पहुंच जातीं तो इंजिनियर्स से जीपीएस निकलवा दिया जाता। फिर इन कारों को टैक्सी बनाकर चलाया जाता। इन दो चोरों के मुताबिक कई और गैंग भी ऐसे जैमर्स का यूज कर रहे हैं। जिन कारों में जीपीएस नहीं होता, उनके मालिक भी मार्केट से 5,000 रुपये में लगवा सकते हैं। इससे कार चोरों के लिए मुश्किल खड़ी हो गई। उन्हें इसकी काट निकालनी ही थी। पुलिस के अनुसार, ‘आरोपियों ने दावा किया कि जैमर्स करीब 1 लाख रुपये के आते हैं और प्रोग्रामिंग मशीन 1.8 लाख रुपये की आती है। चाबी बनाने वाली मशीन करीब 1.6 लाख रुपये की एक आती है।’

दिल्‍ली से बिहार, अरुणाचल तक मिले तार

शातिर कार चोरों के इस गैंग का भांडा एसीपी राम अवतार, इंस्‍पेक्‍टर कमलेश और अन्य की टीम ने फोड़ा। द्वारका और आसपास के इलाकों से कार चोरी की ताजा घटनाओं से जुड़ी सीसीटीवी फुटेज खंगाली गईं। लोकल इन्‍फॉर्मर्स से भी सुराग जुटाए गए। पुलिस ने सबसे पहले द्वारका के सेक्टर 26 से सुनील और उसके एक साथी मंजीत को पकड़ा। फिर उनके ठिकाने से छह चोरी की कारें बरामद हुईं। कार चोरी के कई औजार भी मिले। इन दोनों से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस ने पूर्वी चंपारण में रेड मारी। वहां से इनके हैंडलर अमजद खान को पकड़ा गया। खान ने पुलिस को अरुणाचल प्रदेश के साथी नकुलम बिसई तक पहुंचाया।

बिसई ट्रेवल एजेंसी चलाता है और चोरी की कारें को टैक्सियों की तरह इस्तेमाल करता था। बिसई अपने साथियों की जरूरत के हिसाब से खान को कार का मेक, मॉडल और कलर बताता था। खान यह जानकारी सुनील और मंजीत को देता। ये दोनों दिल्‍ली से कारें चुराते।
किडनैपर्स और ट्रैफिकर्स न करने लगे जैमर्स का यूज, दिल्‍ली पुलिस को डर
पुलिस ने कहा कि जीपीएस जैमर्स आमतौर पर सिलेब्रिटीज या राजनेता यूज करते हैं जिन्‍हें लगता है कि उनकी जान को खतरा है या कोई पीछा कर रहा है। अगर किसी ने कोई ट्रैफिक डिवाइस प्‍लांट की होगी तो जैमर उसे रोकता है। लेकिन पिछले कुछ साल में कार चोरों ने इनका इस्तेमाल पुलिस के पंजे से बचने के लिए किया है। पुलिस को डर है कि कार चोरों की तरह किडनैपर्स और ह्यूमन ट्रैफिकर्स भी ऐसे डिवाइसेज का इस्तेमाल कर सकते हैं। पोर्टेबल जीपीएस जैमिंग डिवाइस से 25 वर्ग मीटर तक के एरिया में जीपीएस सिग्नल को जाम किया जा सकता है।

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