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बूचड़खानों को पर्यावरण मंजूरी के दायरे में लाने के लिए दो महीने में हो फैसला…. NGT का केंद्र सरकार को निर्देश

नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को सभी बूचड़खानों को पर्यावरण मंजूरी व्यवस्था के दायरे में लाने के लिए दो महीने के भीतर फैसला लेने का निर्देश दिया है। एनजीटी एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें दावा किया गया कि मंत्रालय द्वारा मामले पर गठित एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के बावजूद बूचड़खानों की गतिविधियों के प्रतिकूल प्रभाव का मूल्यांकन और उपाय करने के लिए पर्यावरण नियामक ढांचे अपर्याप्त हैं।


एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ए के गोयल की पीठ ने मंत्रालय के जवाब का उल्लेख किया, जिसके अनुसार बूचड़खानों सहित 20,000 वर्ग मीटर से अधिक के निर्माण परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी आवश्यक है। मंत्रालय के जवाब में कहा गया कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को वायु और जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाने का अधिकार है और बूचड़खानों द्वारा लागू किए वाले कदमों के लिए अक्टूबर 2017 में एक आदेश जारी किया।


पीठ के तीन मई को पारित आदेश में कहा गया है कि ”विचार का मुद्दा यह है कि क्या पर्यावरण नियामक व्यवस्था में कोई बदलाव आवश्यक है।” पीठ में न्यायिक सदस्य के तौर पर न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल भी थे। पीठ ने कहा कि पर्यावरण मंजूरी प्रक्रियाओं को सुगम बनाने के लिए मंत्रालय द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने सभी बूचड़खानों के साथ-साथ मांस प्रसंस्करण की बड़ी इकाइयों को पर्यावरण मंजूरी व्यवस्था के तहत लाने का प्रस्ताव दिया था।

पीठ ने कहा कि समिति ने पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2006 में संशोधन करने की भी सिफारिश की थी, जिसमें सभी बूचड़खानों के लिए पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करने की आवश्यकता शामिल थी। मंत्रालय को 31 अगस्त तक कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हुए एनजीटी ने मामले को 14 सितंबर को आगे की कार्यवाही के लिए सूचीबद्ध किया।

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