नई दिल्ली: किरेन रिजिजू से कानून मंत्रालय वापस लिया गया…आज सुबह जैसे ही टीवी चैनलों पर ब्रेकिंग फ्लैश हुई, लोगों को सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ उनकी टिप्पणी याद आने लगी। मन में सवाल उठने लगे कि क्या सुप्रीम कोर्ट से उलझने के कारण कानून मंत्री हटाए गए। क्या यह डिमोशन है? वैसे भू-विज्ञान मंत्रालय की भी अपनी महत्ता है लेकिन कानून मंत्रालय वापस लिया जाना भी बड़ा संदेश है। करीब दो साल पहले रविशंकर प्रसाद को हटाकर किरेन रिजिजू को कानून मंत्री की अहम जिम्मेदारी दी गई थी। आज सुबह अचानक राष्ट्रपति भवन से मोदी सरकार में बड़े फेरबदल का आदेश आया। रिजिजू को हटाकर राजस्थान के बड़े दलित नेता और कई मंत्रालय संभाल चुके अर्जुन राम मेघवाल को यह जिम्मेदारी दी गई है। रिजिजू को नया भूविज्ञान मंत्री बनाया गया है। यह फैसला क्यों लिया गया, इसकी दो प्रमुख वजहें हो सकती हैं।
1. मैसेज: SC से टकराव के मूड में नहीं सरकार
दरअसल, जब भी सरकार और सुप्रीम कोर्ट की बात होती है तो आम धारणा होती है कि SC कुछ कहता है तो उसे सरकार सुनती है। पलटवार जवाब देने या कहें कि खुलकर कुछ भी बोलने से बचा जाता रहा है। लेकिन हाल के महीनों में मोदी सरकार के मंत्री रिजिजू जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी कर रहे थे, उसने शायद सरकार को असहज कर दिया। हालात ऐसे बन गए कि सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ की गई टिप्पणी पर कार्रवाई की मांग की जाने लगी। हालांकि दो दिन पहले ही SC ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि उसके पास इससे निपटने के लिए व्यापक दृष्टिकोण है। रिजिजू ने कहा था कि जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पारदर्शी नहीं है। न्यायपालिका vs सरकार की बातें जब मीडिया में आतीं तो रिजिजू सफाई भी देते कि लोकतंत्र में मतभेद अपरिहार्य हैं। उन्होंने कहा था कि सरकार और न्यायपालिका के बीच मतभेदों को टकराव नहीं माना जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज कोई सरकार नहीं हैं… जजों की नियुक्ति का कॉलेजियम सिस्टम संविधान के लिए एलियन है… जजों के लंबी छुट्टी पर जाने से कोर्ट में मामले लंबित होंगे।
किरेन रिजिजू
रिजिजू जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली की खुलकर आलोचना करते रहे हैं। उन्होंने इसे संविधान से अलग भी करार दिया। कहा जाने लगा कि केंद्र सरकार जजों की नियुक्ति में अपनी भूमिका चाहती है। रिजिजू के कुछ प्रमुख बयान हैं जिससे आसानी से समझा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट को लेकर उन्होंने क्या-क्या कहा था।
– कॉलेजियम सिस्टम के विरोध में रिजिजू ने दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज आर.एस. सोढ़ी के इंटरव्यू का अंश ट्वीट किया। न्यायमूर्ति सोढ़ी (सेवानिवृत्त) कहते हैं कि कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है और सुप्रीम कोर्ट कानून नहीं बना सकता क्योंकि उसके पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है। सोढ़ी ने कहा था कि क्या आप संविधान में संशोधन कर सकते हैं? केवल संसद ही संविधान में संशोधन करेगी। लेकिन SC ने जजों की नियुक्ति का फैसला कर संविधान का अपहरण कर लिया। इसे सुप्रीम कोर्ट को खुली चुनौती के तौर पर देखा गया।…लेकिन, जब कोई जज बनता है तो उसे चुनाव का सामना नहीं करना पड़ता। जजों के लिए कोई सार्वजनिक जांच भी नहीं होती।
– रिजिजू ने कहा था कि भारतीय न्यायपालिका में कोई आरक्षण नहीं है। मैंने सभी जजों और विशेष रूप से कॉलेजियम के सदस्यों को याद दिलाया है कि वे पिछड़े समुदायों, महिलाओं और अन्य श्रेणियों के सदस्यों को शामिल करने के लिए नामों की सिफारिश करते समय ध्यान में रखें क्योंकि उनका न्यायपालिका में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रोहिंटन फली नरीमन ने कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ बोलने पर कानून मंत्री रिजिजू की आलोचना की थी। उन्होंने जजों की नियुक्ति में केंद्र के दखल को लोकतंत्र के लिए घातक बताया। कॉलेजियम के नामों को सरकार द्वारा कथित तौर पर लटकाने पर भी काफी विवाद हुआ। रिजिजू के बयानों को सुनकर विपक्ष कहने लगा कि सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को धमकाया जा रहा है।
2. राजस्थान में चुनाव है और…
मोदी कैबिनेट में फेरबदल की दूसरी बड़ी वजह राजस्थान से जोड़कर देखी जा रही है। राज्य में अगले कुछ महीनों में चुनाव होने हैं। राजस्थान में दलितों की आबादी 17 फीसदी है। अर्जुन राम मेघवाल दलितों के बड़े नेता माने जाते हैं। बीकानेर लोकसभा सीट से भाजपा सांसद का कद बढ़ाकर राजस्थान को संदेश देने की भी कोशिश की गई है। अब तक मेघवाल संस्कृति और संसदीय कार्य राज्यमंत्री थे। राजनीति में आने से पहले मेघवाल राजस्थान प्रशासनिक सेवा में थे। प्रमोशन हुआ तो मेघवाल चुरू के जिलाधिकारी भी रहे। वीआरएस लेकर राजनीति में आए और तीन बार लोकसभा चुनाव जीता।
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