जुमा-जामी या जामा…. क्या है सही नाम, इलाहाबाद HC ने पूछा; संभल मस्जिद के नाम पर भी विवाद

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में संभल मस्जिद के मामले की सुनवाई के दौरान प्रबंध समिति जामी मस्जिद संभल की पुनरीक्षण याचिका की सुनवाई के दौरान एएसआई के अधिवक्ता मनोज कुमार सिंह ने आपत्ति जताई की कि एएसआई के दस्तावेजों में मस्जिद का नाम जुमा मस्जिद लिखा है. सेक्रेटरी आफ स्टेट व मस्जिद के मुतवल्ली के बीच 1927 में हुए करार में भी जुमा मस्जिद का जिक्र है.
उन्होंने कहा कि याचिका जामी मस्जिद के नाम दाखिल है. पिछली तिथि पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी से पूछा था कि असली नाम क्या है तो उन्होंने कहा जामा मस्जिद है. वह संशोधन अर्जी देंगे. किंतु कोई संशोधन अर्जी नहीं आई. यह सवाल अभी भी कायम है कि संभल मस्जिद जामा मस्जिद है या जामी मस्जिद या जुमा मस्जिद.
उन्होंने कहा कि यदि गलत नाम से याचिका दायर है और नाम संशोधित नहीं किया गया तो इसी आधार पर याचिका खारिज की जा सकती है. अगली सुनवाई पर यह मुद्दा फिर से उठ सकता है.
संभल मस्जिद नाम विवाद: जामी, जामा या जुमा?
फिलहाल महाधिवक्ता ने संभल मस्जिद को विवादित मस्जिद ढांचा कहा है. हरिशंकर जैन ने भी ऐसी ही मांग की थी और कहा था कि मस्जिद नहीं विवादित ढांचा कहा जाए. अधीनस्थ अदालत में कथित मस्जिद, मंदिर है या मस्जिद यही विवाद चल रहा है.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हिंदू वादियों के वकील की मौखिक दलील को स्वीकार कर लिया है, जिसमें संभल शाही जामा मस्जिद को ‘विवादित संरचना’ के रूप में संदर्भित करने की बात कही गई थी. हालांकि, न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल द्वारा पारित लिखित आदेश में इसे ‘विवादित मस्जिद’ कहा गया है.
इससे पहले मंगलवार को न्यायालय मस्जिद प्रबंधन समिति की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें मस्जिद की सफेदी और सफाई की अनुमति मांगी गई थी. मस्जिद समिति ने 27 फरवरी को उच्च न्यायालय का रुख किया था. जब न्यायालय आदेश सुना रहा था, तब हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ सर्वोच्च न्यायालय के वकील हरि शंकर जैन ने न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ से मस्जिद को ‘विवादित संरचना’ करार देने कहा था.
जानें कोर्ट में सुनवाई के दौरान क्या हुआ था
न्यायालय ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया और उनके स्टेनोग्राफर को मंगलवार को पारित आदेश में ‘विवादित मस्जिद की संरचना’ शब्द का उपयोग करने का निर्देश दिया था.
जैन ने तर्क दिया कि यह एक कानूनी प्रक्रिया है और जब विवादित ढांचे के बारे में कोई मामला होता है, तो अदालत के निर्णय तक इसे मस्जिद या कुछ और नहीं कहा जा सकता. एडवोकेट जनरल अरुण कुमार मिश्रा ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि राज्य के अधिकारियों द्वारा विवादित मस्जिद के ढांचे में और उसके आसपास कानून और व्यवस्था बनाए रखी गई थीय