खेल

सादगी तो हमारी जरा देखिए… यूंही नहीं धोनी के पीछे भागे सुनील गावस्कर, ऑटोग्राफ के पीछे की कहानी समझिए

नई दिल्ली: नई पीढ़ी जो एमएस धोनी, विराट कोहली और रोहित शर्मा को खेलते देख जवान हुई है या हो रही है उन्हें इस बात का कभी आभास नहीं हो सकता है कि सचिन तेंदुलकर होने के मायने क्या हुआ करते थे। तेंदुलकर के दौर में जवान हो रही पीढ़ी को भी ये अंदाजा ठीक से नहीं होगा कि सुनील गावस्कर अपने दौर में क्या मायने रखते थे, लेकिन, तेंदुलकर ने हमेशा माना उनके आदर्श गावस्कर रहें और वो उनकी तरह ही बनना चाहते थे। राहुल द्रविड़ भी हमेशा यही कहते आए हैं। धोनी ने कभी भी अपने आदर्श को लेकर तेंदुलकर का नाम वैसी भक्ति स्वरूप नहीं लिया, जैसा कि तेंदुलकर ने गावस्कर के लिए किया या फिर वीरेंद्र सहवाग ने तेंदुलकर के लिए या आने वाली पीढ़ी के खिलाड़ी कोहली के लिए करेंगे। बावजूद इसके धोनी के मन में हमेशा से तेंदुलकर के लिए खास सम्मान रहा और गावस्कर तो गावस्कर थे ही।

बच्चों की तरह भागे थे सनी!

    अगर इस संदर्भ में आप उन तस्वीरों को देखें और ये सोचे कि क्या कभी ऐसा मुमकिन भी हो सकता था कि गावस्कर एक फैंस की तरह ऑटोग्राफ लेने के लिए बीच मैदान में कमेंट्री छोड़कर एक खिलाड़ी के पीछे भागेगें! और उस ऑटोग्राफ को लेने के बाद उनके चेहरे पर वही खुशी होगी जो किसी मासूम बच्चे के चेहरे पर होती है। ऐसी खुशी जब अपने हीरो से साक्षात मुलाकात हो, लेकिन आप ये सोच रहें होंगे कि गावस्कर को ऐसा करने की क्या जरूरत पड़ गई?

    क्यों पड़ गई ऑटोग्राफ की जरूरत?
    गावस्कर ने ना जाने कितने ही मैच धोनी को खेलते हुए कमेंटेटर के तौर पर कवर किया और हजारों मुलाकातें भी हुई होंगी, उसके बावजूद गावस्कर जैसा दिग्गज भी एक आम फैन की भूमिका में कैसे नजर आ सकता है? और इसकी सिर्फ एक ही वजह है और वो है धोनी की सादगी। धोनी ने अपनी क्रिकेट और विकेटकीपिंग और कप्तानी से करोड़ों फैंस का दिल तो जीता है, लेकिन दिग्गज खिलाड़ियों को उन्होंने अपनी सादगी से अपना मुरीद बनाया है।
    निजी अनुभव के दम पर ये लेखक दावा कर सकते हैं कि धोनी से ज्यादा विनम्र सुपर स्टार भारत तो क्या शायद दुनिया में ही कम हों। सादगी के अलावा धोनी की एक और खासियत ये है कि वो महान से महान हस्तियों के सामने भी भावना में नहीं बहतें हैं। अगर धोनी की जगह कोई और खिलाड़ी होता तो शायद गावस्कर की पहल को लेकर झिझकता, हंसता या फिर खुद ही हाथ जोड़कर ऐसे प्रणाम करता कि- अरे, आपको ऐसे करने की क्या जरूरत है… लेकिन, धोनी के लिए वो लम्हा भी सिर्फ वैसी ही रहा है जैसा कि उनकी क्रिकेट रहती है… बिना किसी ओत-प्रोत वाली भावना से रहित… बस, एक दिग्गज का अभिवादन स्वीकार किया, चिर-परिचित मुस्कान बिखेरते हुए आगे बढ़ गए…

    अगली बायोपिक में सीन पक्का
    !
    धोनी के जीवन पर अगर दूसरी बार कोई फिल्म बनती है तो शायद गावस्कर वाला ये लम्हा भी दिखे। उस फिल्म में धोनी ने ये माना था कि किस तरह से वो युवराज सिंह की आभा में अभिभूत थे क्योंकि वो बिहार से आते थे और उन्होंने इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने का सपना तक भी नहीं देखा। करीब दो दशक बाद गावस्कर जैसे दिग्गज का धोनी के सामने एकदम अभिभूत सा होना वाला लम्हा अपने आप में ना जाने कितनी बातें कह गया।

    Related Articles

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    Back to top button