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पापा के जाने के बाद लता दीदी पिता बन गईं, गाने के लिए उर्दू सीखी- उषा मंगेशकर

ये बात तो जग विदित है कि लता मंगेशकर को अपने भाई-बहनों से अगाध और अटूट प्रेम रहा। यही वजह है कि उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन संगीत और परिवार को समर्पित कर दिया। उनके पांच भाई-बहनों में जानी-मानी गायिका उषा मंगेशकर उनकी सबसे लाड़ली बहन रहीं। आज हम आपको उनकी इस सबसे प्रिय बहन की जुबानी उन किस्सों से रूबरू कराने जा रहे हैं, जो उनकी किशोरावस्था से लेकर उनकी अंतिम विदाई तक उनके साथ रहीं 


पहली कमाई से सबके लिए कपड़े लाईं

लता दीदी के साथ मेरा रिश्ता बहुत गहरा था। थीं तो वह हमारी बड़ी बहन, लेकिन मेरे लिए वह बिलकुल मां जैसी थीं। जब उन्होंने अपनी फिल्म साइन की, मंगला गौर तो मेरी उम्र 6-7 साल के करीब रही होगी। वह अपने साथ मुझे भी लेकर गई थीं। वह अपने हर प्रोग्राम, रेकॉर्डिंग और फिल्म के शॉट पर हम भाई-बहनों को साथ लेकर जाती थीं। जब उनको पहली मर्तबा पैसे मिले, वह थी तो छोटी रकम, लेकिन लता दी हम सबके लिए कपड़े लाईं। मेरे लिए लाल रंग का शॉर्ट फ्रॉक था। हमारा बचपन काफी मुश्किलों में गुजरा। लेकिन, लता दीदी ने हमें कभी इसका अहसास नहीं होने दिया। पिताजी के गुजरने के कुछ ही दिन बाद दीदी ने मां से कहा कि मैं काम करूंगी, तुम बिलकुल चिंता मत करो। मुझे तो पिताजी के बारे में कुछ याद नहीं।


वह स्कूल सिर्फ एक दिन गई थीं

हम लोग खेलकूद में लगे रहते और दीदी अमानत अली खां साहब के साथ गाना सीखतीं। हालांकि, अमानत साहब से उन्होंने कुछ ही दिन सीखा। मुंबई आने के बाद वह यहीं रियाज करने लगीं। उनकी याददाश्त बहुत अच्छी थी। वह चीजों को बड़ी जल्दी पकड़ लेती थीं। उनके सिर पर भगवान का हाथ था। कोई भी गाना सामने आ जाए, वो फटाक से गा लेती थीं।

पहला सुपरहिट गाना

उनका पहला सुपरहिट गाना था महल फिल्म का- आएगा आने वाला। फिर तो उनके पास बड़े-बड़े म्यूजिक डायरेक्टर्स की लाइन लग गई। उसके बाद का सफर तो हर किसी को मालूम है। दीदी के पसंदीदा म्यूजिक डायरेक्टर जयदेव जी थे। वह मदन मोहन को भाई मानती थीं। आरडी बर्मन, नौशाद साहब और सज्जाद हुसैन के साथ काम करना भी उन्हें काफी पसंद था।

गाने के लिए उर्दू सीखा

लता दी हर गाने को बड़ी आसानी से गा लेती थीं। उन्हें जब लगा कि गाने को और निखारने के लिए उर्दू भी आनी चाहिए, तो उन्होंने उर्दू भी सीखी। हिंदी की भी शिक्षा ली। फिल्म जगत में बंगाल के लोगों से बातचीत करके वह बंगाली भी सीख गईं। यह सब इसलिए भी बड़ी बात लगती है कि वह स्कूल सिर्फ एक दिन गई थीं। उनका संगीत का ज्यादा रियाज तो हम भाई-बहनों को सिखाकर ही हो गया


दीदी ने संतोषी माता के व्रत रखे थे

मेरा ‘जय संतोषी मां’ फिल्म का गाना बहुत फेमस हुआ। दीदी ने कहा कि वह उस फिल्म को देखना चाहती हैं, तो हमने घर में उन्हें वह फिल्म दिखाई। दीदी ने संतोषी माता के पांच शुक्रवार के व्रत पकड़े थे। उन्हें अच्छे से पूरा भी किया। उन्होंने पूरे घर को हिदायत दे रखी थी कि कोई भी खट्टा नहीं खाएगा। मैंने दीदी के साथ एक गाना रेकॉर्ड किया, जो लोगों को काफी पसंद आया- अपलम, चपलम…। इस गाने में अगर कोई मुश्किल चीज आती, तो मैं कहती थी दीदी, इसे तू गा ले, मैं नहीं गाऊंगी। ऐसे करके हमने गाना रेकॉर्ड किया। लेकिन, हमारी आवाज बहुत मिलती थी। इसलिए वह गाना काफी अच्छा बन गया।

ऐसी बहन नसीबवालों को ही मिलती है

दीदी के शादी न करने के फैसले की बात होती है। मुझसे भी पूछा जाता है कि क्या मैंने कभी उनसे इस बारे में बात की, क्योंकि मैं उनकी सबसे लाडली बहन थी। लेकिन, हम सभी उनका बहुत सम्मान करते थे। मैं उनसे काफी छोटी भी थी, करीब 6-7 साल। ऐसे में उनसे इस तरह का सवाल पूछना काफी मुश्किल था। और मैं कभी पूछ भी नहीं पाई।


दीदी मेरे अंदर है…

दीदी के गुजरने के बाद बहुत सूनापन लगता है। लेकिन, हम सब अपने आपको संभाल लेते हैं। मैं कभी यह नहीं सोचती कि दीदी हमारे बीच नहीं हैं। जब बाहर होती हूं, तो मन को समझा देती हूं कि दीदी अंदर हैं। और अंदर होती हूं, तो मन को समझा देती हूं कि दीदी बाहर हैं। दीदी से जुड़े मेरे अंदर न जाने कितने भावनात्मक पल हैं। पिताजी तो बचपन में ही गुजर गए थे, जब मां भी हमें छोड़कर गईं, तो दीदी ने कहा कि अब मैं तुम लोगों की मां बनूंगी। हमें दीदी से मां-बाप, दोनों का प्यार मिला। ऐसी बहन नसीबवालों को ही मिलती है।

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