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तलाक के लिए 6 महीने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा, जानें सुप्रीम कोर्ट ने आज क्या दिया फैसला

नई दिल्ली: कभी-कभार शादियां चल नहीं पातीं और बात तलाक तक पहुंच जाती है। हालांकि आगे सब कुछ झटपट नहीं होता। आज कपल के तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि जीवनसाथियों के बीच दरार नहीं भर पाने के आधार पर वह किसी भी शादी को खत्म कर सकता है। SC ने साफ कहा कि पार्टियों को फैमिली कोर्ट भेजने की जरूरत नहीं है, जहां उन्हें 6 से 18 महीने तक का इंतजार करना पड़ सकता है। जस्टिस एस के कौल की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने साफ कहा कि SC को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत इसका अधिकार है। यह आर्टिकल शीर्ष अदालत के सामने लंबित किसी भी मामले में ‘संपूर्ण न्याय’ के लिए आदेश से संबंधित है। यह फैसला 2014 में दायर शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन केस में आया है, जिन्होंने भारतीय संविधान के आर्टिकल 142 के तहत तलाक मांगा था।

वैवाहिक कानूनों के तहत तलाक के मामले में समझौते की गुंजाइश खत्म होने पर अदालत जरूरी 6 महीने के वेटिंग पीरियड को दरकिनार कर शादी को तुरंत भंग कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट

अभी हिंदू मैरिज एक्ट के तहत तलाक की प्रक्रिया क्या है?
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13बी में पारस्परिक सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया बताई गई है। सेक्शन 13(बी) 1 कहता है कि दोनों पार्टियां जिला अदालत में अपनी शादी को खत्म करने के लिए याचिका दे सकती हैं। इसमें आधार यह होगा कि वे एक साल या उससे भी अधिक समय से अलग-अलग रह रहे हैं या वे साथ नहीं रह सकते या पारस्परिक तरीके से शादी को खत्म करने पर सहमत हुए हैं।

सेक्शन 13 (बी) 2 में कहा गया है कि तलाक चाहने वाली दोनों पार्टियों को अर्जी देने की तारीख से 6 से 18 महीने का इंतजार करना होगा। छह महीने का समय इसलिए दिया जाता है जिससे मान-मनौव्वल का समय मिले और वे अपनी याचिका वापस ले सकें।

इस अवधि के बाद कोर्ट दोनों पक्षों को सुनता है और अगर संतुष्ट होता है तो वह जांच कर तलाक का आदेश जारी कर सकता है। आदेश जारी होने की तारीख से शादी खत्म मानी जाएगी। हालांकि ये प्रावधान तब लागू होते हैं जब शादी को कम से कम एक साल का समय बीत चुका होता है।

किस आधार पर हो सकता है तलाक
एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर, क्रूरता, छोड़ने, धर्म परिवर्तन, मानसिक विकार, कुष्ठ रोग, यौन रोग, संन्यास, मृत्यु की आशंका जैसे आधार पर किसी भी जीवनसाथी की तरफ से तलाक मांगा जा सकता है। काफी मुश्किल और अनैतिकता की अपवाद वाली स्थिति में तलाक की अर्जी शादी को एक साल हुए बगैर, सेक्शन 14 के तहत स्वीकृत की जाती है।

सेक्शन 13 (बी) 2 के तहत छह महीने की अनिवार्य अवधि से भी छूट दी जा सकती है। इसके लिए फैमिली कोर्ट में एक अप्लीकेशन देना होगा। 2021 में अमित कुमार बनाम सुमन बेनीवाल केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘जहां थोड़ी भी सुलह की उम्मीद है तलाक की अर्जी की तारीख से छह महीने का कूलिंग पीरियड दिया जाना चाहिए। हालांकि अगर सुलह-समझौते की थोड़ी भी संभावना नहीं है तो दोनों पक्षों की तकलीफ को बढ़ाना बेकार होगा।’

तलाक की प्रक्रिया में क्या दिक्कत है?
तलाक की प्रक्रिया शुरू करने के लिए दोनों पक्ष फैमिली कोर्ट पहुंच सकते हैं। वैसे, इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है और यह लंबी भी है। ऐसे में कोर्ट के सामने बड़ी संख्या में केस पेंडिंग हो जाते हैं। अगर पति-पत्नी जल्दी तलाक चाहते हैं तो वे शादी को खत्म करने के लिए आर्टिकल 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।


आर्टिकल 142 की उपधारा 1 के तहत सुप्रीम कोर्ट को विशेष अधिकार दिए गए हैं। इसके जरिए शीर्ष अदालत अपने सामने आए किसी भी मामले में पूर्ण न्याय के लिए आवश्यक आदेश दे सकती है। आज का आदेश भी इसी के तहत आया है और कोर्ट ने पति-पत्नी का तलाक मंजूर कर लिया। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम ऐसी तमाम याचिकाओं के लिए नजीर बनेगा।

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