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अब तो न्यूक्लियर फैमिली भी टूट रही, शादी का कॉन्सेप्ट ही खत्म हो जाएगा! राजनाथ सिंह को क्‍यों सताने लगी चिंता

नई दिल्‍ली: ’जाने-अनजाने ही सही, लोग अपने घर-परिवार से दूर होते जा रहे हैं। लोग शहरों में कमाने गए, वहां अच्छे से सेट होने के बाद वहीं रहने लग गए। कभी जरूरतों तो कभी मजबूरियों के चलते बूढ़े मां-बाप गांव में ही रह गए।’ भारत में संयुक्त परिवारों की घटती संख्या से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बेहद चिंतित हैं। उन्‍होंने शुक्रवार को एक कार्यक्रम में अपनी चिंता जाहिर की। सिंह ने कहा कि अब तो एकल परिवार (न्यूक्लियर फैमिली) भी टूटने लगे हैं… अगर इस रफ्तार को रोका नहीं गया तो वह दिन दूर नहीं जब समाज में विवाह का कॉन्सेप्ट ही खत्म हो जाएगा। रक्षा मंत्री ने कहा कि ग्लोबलाइजेशन के बाद जिस प्रकार से वर्क कल्चर बदला है, उससे समाज पर जाने-अनजाने में नकरात्‍मक प्रभाव यह पड़ा है कि लोग अपने घर-परिवारों से दूर होते जा रहे हैं। सिंह ने कहा, ‘मैं कहीं एक लाइन पढ़ रहा था कि पेड़ गांव में ही रह जाता है और फल शहर जाता है… यह लाइन हमारे वर्तमान समाज को बड़े बारीकी से व्यक्त करती है।’

सिंह ने कहा कि ‘वेस्‍टर्न कल्चर के प्रभाव में आकर जॉइंट फैमिलीज खंडित हुईं और समाज में न्यूक्लियर फैमिलीज का चलन बढ़ा। कुछ लोगों ने तर्क भी दिया कि जॉइंट फैमिलीज में नवदंपती को जरूरी स्‍पेस नहीं मिल पाता है। इसका हल आया कि समाज में न्यूक्लियर फैमिलीज बननी शुरू हुईं। लेकिन सामाजिक बदलावों की अपनी एक गति होती है… एक दिशा होती है जो शुरू होने के बाद उसी ओर आगे बढ़ती रहती है।’

जगह-जगह दिखने लगी सिंगल पैरेंटिंग: राजनाथ

न्यूक्लियर फैमिलीज तक तो फिर भी ठीक था पर अनेक ऐसे कारण समाज में पनपने लगे जिसके चलते न्यूक्लियर फैमिलीज भी टूटीं और सब-न्यूक्लियर फैमिलीज की तरफ समाज आगे बढ़ा। अब जगह-जगह सिंगल पैरेंटिंग भी दिखाई देने लगा है। अगर बदलाव की इस गति को नहीं रोका गया तो वह दिन दूर नहीं जब समाज में विवाह की संकल्पना ही खत्‍म हो जाए और लोग सिंगल हाउसहोल्‍ड के रूप में दिखाई देने लगें।
सिंह ने कहा कि यह पसंद की स्वतंत्रता का मामला प्रतीत हो सकता है, लेकिन वास्तव में यह मनुष्य को अकेलेपन की ओर धकेलने वाला एक बड़ा सामाजिक संकट है जिससे बचने की आवश्यकता है। कई चिकित्सा अध्ययन बताते हैं कि अकेलापन व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं का मूल कारण है। हमें आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है कि क्या हम तथाकथित आधुनिकता के नाम पर अपनी सामाजिक भलाई को नष्ट कर रहे हैं।

सिंह ने कहा कि लोग काम की तलाश में अपने मूल स्थानों से शहरी केंद्रों और अन्य स्थानों पर जाते हैं। अपनी जड़ों से कटे हुए, वे अकेला और असुरक्षित महसूस करते हैं जो उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। वह शुक्रवार को राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान अकादमी (एनएएमएस) के 63वें स्थापना दिवस पर वर्चुअली बोल रहे थे।

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