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15 साल से मेडिकल लीव पर, फिर भी मांगी सैलरी हाइक, जानिए कोर्ट ने क्या कहा

नई दिल्ली: ब्रिटेन में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है। वहां 15 साल से सिक लीव पर चल रहे एक सीनियर आईटी वर्कर ने अपनी कंपनी को कोर्ट में घसीट लिया। उसका कहना था कि कंपनी ने पिछले 15 साल से उसकी सैलरी नहीं बढ़ाई। टेलिग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक इयान क्लिफर्ड दिग्गज आईटी कंपनी आईबीएम में काम करते हैं लेकिन पिछले 15 साल से वह बीमार चल रहे हैं। उनके लिंक्डइन प्रोफाइल के मुताबिक वह 2013 से मेडिकली रिटायर्ड हैं। उनका दावा था कि उनके साथ भेदभाव हुआ है और पिछले 15 साल से उनकी सैलरी नहीं बढ़ाई गई है। उन्होंने कंपनी को कोर्ट में घसीटा। लेकिन कोर्ट ने उनकी इस दलील को खारिज कर दिया। आईबीएम के हेल्थ प्लान के मुताबिक आईटी स्पेशलिस्ट क्लिफर्ड को सालाना 54,000 पाउंड यानी करीब 55,30,556 रुपये मिलते हैं और वह 65 साल की उम्र तक इतनी सैलरी पाने के हकदार हैं। लेकिन क्लिफर्ड की दलील थी कि महंगाई के इस दौर में यह सैलरी पर्याप्त नहीं है। क्लिफर्ड पहली बार सितंबर 2008 में सिक लीव पर गए थे। साल 2013 में उन्होंने कंपनी को अपनी परेशानी के बारे में बताया था। इस पर कंपनी ने उन्हें अपने डिसएबिलिटी प्लान में रखा था ताकि उन्हें डिसमिस होने से बचाया जा सके। इस प्लान के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति काम करने में सक्षम नहीं है तो वह कर्मचारी बना रहेगा और उसे काम करने की जरूरत नहीं है।

इस प्लान में आने वाले कर्मचारी को रिकवरी या रिटायरमेंट या रिटायरमेंट तक एग्रीड सैलरी की 75 फीसदी राशि मिलेगी। इस मामले में एग्रीड सैलरी 72,037 पाउंड थी। यानी 2013 से क्लिफर्ड को हर साल 25 परसेंट डिडक्शन के साथ 54,028 पाउंड मिलेंगे। उन्हें 30 साल से अधिक समय तक यह राशि मिलेगी। लेकिन फरवरी 2022 में क्लिफर्ड ने एम्प्लॉयमेंट ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने कंपनी पर डिसएबिलिटी डिस्क्रिमेशन का आरोप लगाया। उनका तर्क था कि इस प्लान का मकसद काम करने में अक्षम कर्मचारी को सिक्योरिटी देना था लेकिन अगर पेमेंट को हमेशा के लिए फ्रीज कर दिया जाएगा तो इसका मकसद हल नहीं होगा।


कोर्ट ने क्या कहा

लेकिन एम्प्लॉयमेंट ट्रिब्यूनल ने उनकी दलील को खारिज कर दिया। जज ने कहा कि क्लिफर्ड के साथ कोई भेदभाव नहीं हुआ है और उनका पूरा ध्यान रखा गया है। एक्टिव कर्मचारी की सैलरी में बढ़ोतरी हो सकती है लेकिन इनएक्टिव कर्मचारी की सैलरी में नहीं। दोनों में यह अंतर है। इसमें डिसएबिलिटी का मामला नहीं है। शिकायत यह है कि एनएक्टिव कर्मचारी को मिलने वाला बेनिफिट काफी नहीं है क्योंकि इसे 10 साल पहले फिक्स किया गया था। इसमें दम नहीं है क्योंकि इसका फायदा केवल अक्षम लोगों को ही मिलता है। अगर 50,000 पाउंड की राशि का अगले 30 साल तक आधा भी कर लिया जाए तब भी यह फायदेमंद होगा।

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