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कंगाली, आतंकवाद, सेना और शिया-सुन्नी विवाद… हर तरह से नाकाम हो चुका है पाकिस्तान, सबूत देख लें

इस्लामाबाद: पाकिस्तान के आर्थिक हालात किसी से छिपे हुए नहीं हैं। जिन्ना के सपनों वाला यह देश आज डिफॉल्ट होने के कगार पर है। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 20 जनवरी को 4.601 अरब डॉलर से घटकर 3.678 अरब डॉलर हो चुका है। इतने पैसों से सिर्फ तीन हफ्तों तक का खर्च चलाया जा सकता है। पाकिस्तान सरकार देश को आर्थिक संकट से निकालने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा ही रही थी कि रही-सही कसर उनके खुद के पाले गए आतंकवादियों ने पूरी कर दी। सोमवार दोपहर को तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के आत्मघाती हमलावर ने पेशावर के पुलिस लाइन इलाके की मस्जिद में खुद को उड़ा लिया। इस हमले में 44 नमाजियों की मौत हो गई, जबकि 157 से अधिक लोग घायल हुए हैं। इस्लाम के नाम पर बने देश में इबादत के समय अपने ही धर्म के सिरफिरों का हमला मामले की गंभीरता को बताता है।

पाकिस्तान कभी भी हो सकता है डिफॉल्ट

पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड नीचे है। 20 जनवरी को पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (एसबीपी) का विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 3.678 अरब डॉलर रह गया। विदेशी मुद्रा भंडार में कमी के कारण पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक ने ऑफिशियल एक्सचेंज रेट से न्यूनतम दर की लिमिट को हटा दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि बाजार में पाकिस्तानी रुपये की कीमत 255.43 अमेरिकी डॉलर पर आ गया। फिर 27 जनवरी को केंद्रीय बैंक ने रुपये को और गिरने दिया और एक डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया 269.50 तक पहुंच गया है। ऐसे में पाकिस्तान के सामने विदेशी कर्जों की किश्ते चुकाने के लिए भी पैसे नहीं बचे हैं। अगर पाकिस्तान अपने कर्जों को नहीं चुका पाया तो उसे डिफॉल्ट घोषित कर दिया जाएगा।

खुद के पैदा किए आतंकवाद को झेल रहा पाकिस्तान

पाकिस्तान लंबे समय से खुद के पैदा किए गए आतंकवाद का दंश झेल रहा है। बड़ी बात यह है कि इसके बावजूद पाकिस्तानी हुक्मरानों को अभी तक अपनी गलती का एहसास नहीं हो सका है। पाकिस्तान में सक्रिय तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने तो पाकिस्तानी सेना और सरकार को तबाह कर रखा है। एक महीने की शांति वार्ता विफल होने के बाद टीटीपी के लड़ाकों ने पाकिस्तानी सेना पर हमले तेज कर दिए हैं। चंद दिनों पहले ही टीटीपी ने पाकिस्तान के बन्नू पुलिस कैंप पर कब्जा कर लिया था। इतना ही नहीं, बलूचिस्तान में चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) के खिलाफ बलोच लिबरेशन आर्मी और बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट हथियार उठाए हुए हैं। पाकिस्तान के स्वात घाटी इलाके में आईएसआईएस के भी एक्टिव होने की खबरें हैं।

राजनीतिक अस्थिरता ने रही-सही कसर पूरी की

पाकिस्तान में पिछले कई दशकों से कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी है। किसी प्रधानमंत्री को कार्यकाल के दौरान बम से उड़ा दिया गया तो किसी का सेना ने तख्तापलट कर दिया। पाकिस्तानी राजनेताओं के ही जुबानी, जो बचा उसे विदेशी ताकतों ने गद्दी से उतार फेंका। ऐसे में नई सरकार को देश के लिए एक मुक्कमल नीति लागू करने, उस पर अमल करने और देश को आगे बढ़ाने का मौका ही नहीं मिला। जो सरकार बनी भी, उसमें शामिल नेताओं ने भविष्य को सोच इतना घोटाला किया कि देश के विकास की जगह उनका अपना विकास हो गया। विदेशों में कोठियां खरीद ली और अपने परिवार को वहीं शिफ्ट कर दिया। आज पाकिस्तान के अधिकतर नेताओं के विदेशों में घर हैं। इनमें इमरान खान और नवाज शरीफ का नाम भी शामिल है।

शिया-सुन्नी विवाद में झुलसा पाकिस्तान

पाकिस्तान की स्थापना ही इस्लाम के नाम पर हुई थी। लेकिन, अब इस देश में इस्लाम को मानने वाले लोग अपने ही धर्म के आताताइयों से असुरक्षित हैं। पाकिस्तान में शिया-सुन्नी विवाद काफी पुराना है। इसे लेकर कई बार व्यापक स्तर पर दंगे हो चुके हैं। इसके अलावा अहमदिया, हजारा जैसे अल्पसंख्यक समुदायों को सुन्नी बहुल देश में इस्लाम का अंग नहीं माना जाता है। यही कारण है कि अहमदियों को कुरान रखने पर भी सजा दी जाती है। अधिकतर अल्पसंख्यकों को ईशनिंदा के झूठे मामलों में फंसाकर परेशान किया जाता है।

सरकार नहीं, सेना ही सर्वेसर्वा

पाकिस्तान के बारे में एक कहावत मशहूर है कि ”हर देश के पास एक सेना है, लेकिन पाकिस्तान में सेना के पास एक देश है।” यह कोई जुमला नहीं, बल्कि पाकिस्तान के बारे में एक लाइन में परिचय है। पाकिस्तान शुरू से ही सेना के अधीन रहा है। यहां हर मौके पर तख्तापलट हुए हैं। यहां तक कि नागरिक सराकर के प्रमुख को बिना उचित कोर्ट ट्रायल के फांसी पर भी लटका दिया गया है। पाकिस्तान में हर चुनाव के बाद विपक्षी पार्टियों का एक ही आरोप होता है कि सेना ने सरकार बनाने में मदद की। यही कारण है कि अब अमेरिका जैसा देश भी नागरिक सरकार से ज्यादा पाकिस्तानी सेना के साथ संबंध को मजबूत कर रहा है।

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