नेतन्याहू की राह पर शहबाज! क्या इजरायल की तरह पाकिस्तान में भी घटेंगी न्यायपालिका की शक्तियां

इस्लामाबाद: पाकिस्तान इन दिनों इजरायल की तरह न्यायपालिका की शक्तियों में कटौती का मन बना रहा है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने मंगलवार को कहा कि यदि संसद ने प्रधान न्यायाधीश की शक्तियों को कम करने के लिए कानून नहीं बनाया, तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा। शहबाज शरीफ का यह बयान ऐसे समय आया है, जब पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीशों ने देश के शीर्ष न्यायाधीश की स्वत संज्ञान लेने की शक्तियों पर सवाल उठाया। इजरायल में भी ऐसे ही न्यायपालिका की शक्तियां कम करने को लेकर बने कानून पर बवाल मचा हुआ है। जिसके बाद विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए नेतन्याहू सरकार ने कानून को निलंबित करने का फैसला किया है।
संसद में सुप्रीम कोर्ट के असीमित अधिकार पर चर्चा
संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए, शरीफ ने उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति मंसूर अली शाह और न्यायमूर्ति जमाल खान मंडोखैल के असहमतिपूर्ण फैसले के बारे में विस्तार से बात की, जिन्होंने प्रधान न्यायाधीश के किसी भी मुद्दे पर कार्रवाई के लिए स्वत: संज्ञान लेने और विभिन्न मामलों की सुनवाई के लिए पसंद की पीठों का गठन करने के असीमित अधिकार की आलोचना की। उनका फैसला प्रधान न्यायाधीश उमर अता बंदियाल द्वारा 22 फरवरी को पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों में चुनावों के बारे में स्वत: संज्ञान लेने के मामले के बारे में था।
न्यायपालिका पर नियंत्रण चाहते हैं शहबाज
प्रधान न्यायाधीश की शक्ति को सीमित करने के लिए नए कानूनों की आवश्यकता के बारे में शरीफ ने कहा कि यदि कानून पारित नहीं किया गया, तो ”इतिहास हमें माफ नहीं करेगा। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार ने बताया कि इस बीच, पाकिस्तान के मंत्रिमंडल ने मंगलवार को एक कानून के मसौदे को मंजूरी दे दी है, जिसमें पाकिस्तान के प्रधान न्यायाधीश की विवेकाधीन शक्तियों को कम करने का प्रावधान है।
इजरायल में भी बना था न्यायिक सुधार कानून
इजरायल में भी न्यायपालिका की शक्तियों को कम करने के लिए न्यायिक सुधार कानून बनाया गया था। लेकिन, इसका व्यापक स्तर पर विरोध हुआ। इस कानून के लागू होने के बाद इजरायली संसद के पास कोर्ट के फैसले को पलटने की शक्ति आ गई थी। इसका फायदा पीएम नेतन्याहू को ज्यादा होना था। जिसके लेकर लोगों का कहना था कि इससे लोकतंत्र कमजोर हो जाएगा। विरोध बढ़ने के बाद इजरायली सरकार बैकफुट पर आ गई और कानून को निलंबित करना पड़ा है।