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ऑपरेशन रोमियो’ में अपने रोल को देख Sharad Kelkar को होने लगी थी खुद से नफरत, कहा- लगा जूते पड़ेंगे

छोटे पर्दे पर कई यादगार भूमिकाएं करने वाले अभिनेता शरद केलकर ने जब फिल्मों का रास्ता चुना, तो बड़े पर्दे पर भी अपने अभिनय की छाप छोड़ी। बाहुबली में प्रभास की आवाज से मंत्रमुग्ध करने वाले शहद जल्द रीज होने वाली दशहरा में साउथ के बड़े स्टार नानी को आवाज देते दिखेंगे। फैमिली मैन में लोकप्रियता हासिल करने के बाद वे चर्चा में हैं अपनी नई फिल्म ‘चोर निकल के भागा’। उनसे एक बातचीत।

‘चोर निकल के भागा’ में आपके लिए क्या अलग और खास रहा?

-हमेशा से फिल्में कहानी पर निर्भर करती हैं। कहानी बहुत कमाल की है और उसमें काफी उतार-चढ़ाव हैं। मेरा रोल काफो दिलचस्प है। इसमें काफी टर्न और ट्विस्ट हैं और इसमें मुझे कुछ अलग करने का मौका मिला। एक हाइएस्ट और हाइजैक के बीच की कहानी है, जो लोगों को पसंद आ रही है। यह एक फास्ट पेस्ड फैमिली एंटेरटेनिंग फिल्म है। इस जॉनर में हिंदुस्तान में फिल्में अच्छी नहीं बनती हैं। रेस और धूम जैसी कुछ गिनी-चुनी फिल्में बनी हैं, जो बड़े स्केल पर रही हैं। हमारी फिल्म की खासियत यही है कि इसकी काफी इंट्रेस्टिंग कास्ट है। यामी गौतम और सनी कौशल के साथ काम करके काफी मजा आया।

शरद आप पिछले दिनों ‘ऑपरेशन रोमियो’ और ‘कोड नेम तिरंगा’ में अपनी नकारात्मक भूमिकाओं के कारण काफी सराहे गए

-सच कहूं तो ‘ऑपरेशन रोमियो’ मेरे करियर की बहुत मुश्किल फिल्म थी, क्योंकि उस फिल्म में मेरा जो निगेटिव किरदार था, उस नजरिए से मैंने कभी सोचा ही नहीं था। अमूमन आप जब कोई किरदार करते हैं, तो आप अपनी सोच और आस-पास के चरित्रों से अपने रोल को बुनते हैं, मगर इस चरित्र के लिए मेरे पास कोई रेफरेंस नहीं था। पूरी फिल्म रात पर आधारित है, तो हमारी नाईट शूट्स थीं लगातार। मैं बहुत परेशान हो गया था और एक दिन नाईट शूट के बाद कुछ घंटे सोने के पश्चात मैं निर्माता नीरज पांडे के पास चला गया और मैंने उनसे कहा, ‘सर ये फिल्म तो मेरे दिमाग पर असर कर रही है और मुझे लगता है कि इस फिल्म को देखने के बाद लोग मुझे रोड पर जूते मारेंगे। वे बोले, वाकई आपको ऐसा लग रहा है, फिर तो आप अच्छा कर रहे हो, करते रहो। मगर सच कहूं, तो ये फिल्म मेरे लिए काफी ट्रॉमेटिक थी। रोज मुझे लगता था कि ये किरदार करके मैंने बहुत गंदा काम किया है। मैं काम करके खुद से नफरत करने लगा था।

आप अपने व्यक्तित्व का ग्रे साइड क्या मानते हैं?

-मेरे तो बहुत सारे ग्रे एरियाज हैं। मैं तो पूरा ग्रे हूं। पहले तो एक बहुत बड़ा मुद्दा था। कुछ समस्याओं के कारण मैं बचपन से हकलाया करता था। मैं बात नहीं कर पाता था, तो अपने इमोशन कैसे दर्शाऊं? ऐसे में मैं बहुत चीखता-चिल्लाता था और बहुत मारपीट किया करता था। ये सिलसिला मेरी बेटी की पैदाइश तक जारी रहा, उसके पैदा होने के बाद मैं शांत हो गया। दूसरा ग्रे पहलू है कि मैं लोगों के नाम भूल जाता हूं और सोचता हूं कि कौन है ये? काम और खेलने के अलावा मैं बहुत आलसी आदमी हूं। मुझसे कोई काम मत बोली, मुझे बस सोने दो। बाकी मैं बहुत अच्छा आदमी हूं।

एक समय था, जब आप हकलाया करते थे और फिर एक ऐसा दौर आया जब आप ‘बाहुबली’ में प्रभास की आवाज से दुनियाभर में छा गए और अब साउथ के दूसरे सुपरस्टार नानी के लिए भी दशहरा में अपनी आवाज दी है, कैसे देखते हैं इस सफर को?

-मुझे याद है, मैंने बच्चन साहब का एक इंटरव्यू सुना था, जिसमें उन्होंने कहा था कि एक आर्टिस्ट अपनी डबिंग से अपनी परफॉर्मेंस अच्छी भी कर सकता है और बुरी भी। जब मैं टीवी किया करता था, तब तो डबिंग करने का वक्त ही नहीं मिलता था। आपको लैपटॉप पर ही अपनी आवाज देनी पड़ती थी, मगर जब मैंने आवाज और डबिंग की अहमियत को जाना, तो मुझे लगा कि ये मेरे लिए जरूरी है। मैंने बाकायदा डबिंग की ट्रेनिंग ली, मोना से। मैं उनके पास गया और मैंने कहा कि मुझे डबिंग सीखनी है, तो उन्होंने कहा, आप एक्टर हैं, आपको सीखने की क्या जरूरत है? वहां से मैंने डबिंग का आर्ट सीखा, जिसका मुझे काफी फायदा हुआ। एक अभिनेता के रूप में भी मैं अपने क्राफ्ट में काफी फर्क देख पाया। यह सिर्फ आवाज की बात नहीं है, यह आवाज के आरोह-अवरोह की बात है। अब जैसे दशहरा में नानी की आवाज डब करने का प्रस्ताव मेरे पास आया, तो मैंने पहले ट्रेलर मांगा, क्योंकि मैं जानता हूं कि नानी की आवाज भारी नहीं है, मगर पूरी फिल्म में शराबी किरदार हैं और मुझे नानी के लिए दारू पीकर डायलॉग बोलने वाली आवाज देनी थी, इसलिए मैंने उनकी आवाज डब की। वैसे भी नानी को मैं एक सच्चा परफॉर्मर

आप ओटीटी को गेम चेंजर मानते हैं?

-मेरे लिए तो ये बड़ा मिक्स-सा है। यह कुछ मायनों में अच्छा है, तो कुछ मायनों में बुरा भी है। ये मेरा व्यक्तिगत मत है। देखिए, ये अच्छी बात है कि बहुत सारा कॉन्टेंट देखने को मिल रहा है, विविधता बहुत है और वो भी कम पैसों में। मेरा ये मानना है कि जो फिल्में पेंडेमिक में आईं, सीधे डिजिटल पर। वो उस वक्त की मांग थी। मगर फिर लोगों को अपने घर के टीवी पर फिल्म देखने की आदत पड़ गई। अब उसकी सोच ये है कि मुझे तो फिल्म टीवी पर देखने को मिल ही जाएगी। इस कारण थिएटर में ऑडियंस फिल्म देखने नहीं जा रही और अगर दर्शक सिनेमा हॉल नहीं जाएगा, फिल्मों के एक बहुत बड़े बिजनेस के हाथ कट जाएंगे। ऐसे में इंडस्ट्री के लिए सर्वाइव करना मुश्किल हो जाएगा। कलाकारों के लिए ओटीटी काफी फायदेमंद रहा कि उन्हें बहुत सारा काम करने को मिला। मेकिंग, डायरेक्शन और राइटिंग में भी कई नई प्रतिभाएं सामने आईं।

आपने अपनी शुरुआत टीवी से की थी, मगर अब टीवी पर नजर नहीं आते?

-असल में टीवी के लिए जो साल भर की कमिटमेंट देनी पड़ती है, उसके लिए अब मेरे पास समय कहां है? फिर यहां ओटीटी और फिल्मों में काफी वैरायटी है। मुझे पता है कि अगर मैं टीवी पर जाऊंगा, तो बोर हो जाऊंगा, क्योंकि वहां मैं इतना ज्यादा कर चुका हूं। बीच में एक शार्ट फॉर्मेट का मौका मिला था, तो मैंने कोई लौट के आए और एजेंट राघव के रूप में किया था। इसलिए अब टीवी नहीं करता मैं। वैसे मैं अपने काम को बहुत इंजॉय करता हूं। मेरे लिए हर प्लैटफॉर्म अहम है, बस मुझे अभिनय का मौका मिलना चाहिए।

आपके लिए गाइडिंग फोर्स कौन हैं इंडस्ट्री में?

ऐसा कोई खास गाइडिंग फोर्स नहीं है। मैं तो एक्टिंग के मामले में खुद को चोर मानता हूं। जिस एक्टर के साथ काम करता हूं, उससे कुछ न कुछ चुराता जरूर हूं। जहां तक गाइडेंस की बात है, तो अपनी बीवी से पूछता हूं। उसे अपनी स्क्रिप्ट सुनाता हूं। वो पूरा नरेशन सुनती है और अपनी राय देती है। वो अगर मना करती है, तो 90 परसेंट मैं वो स्क्रिप्ट नहीं करता।

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