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डिनर में क्या खाएं… क्यों इतना मुश्किल है इस सवाल का जवाब? कई साल में वैज्ञानिकों को समझ आई असली समस्या

मेलबर्न : एक व्यस्त दिन के बाद, आपकी साथी आपको मैसेज भेजती है, ‘चलो खाना बाहर से मंगा लेते हैं, मेरा खाना बनाने का मन नहीं है।’ आप फूड डिलीवरी ऐप खोलते हैं और उपलब्ध कई रेस्तरां और व्यंजनों को देखना शुरू करते हैं। थाई, पिज़्ज़ा, बर्गर, कोरियन, लेबनीज… कहीं मुफ्त डिलीवरी का ऑफर तो किसी रेस्तरां की आपके घर से दूरी… जल्द ही खाने की एक्साइटमेंट यह तय करने की असमर्थता में बदल जाती है कि क्या ऑर्डर करना है। साथ ही आपकी साथी भी इसमें ज्यादा मदद नहीं कर पाती।

यह स्थिति जानी पहचानी है? आप जिस चीज का अनुभव कर रहे हैं, उसे ‘विकल्प की अधिकता’ कहा जाता है। यह स्थिति कभी-कभी ऐसी स्थिति में तब्दील हो जाती है जब आप फैसला नहीं ले पाते हैं (यानी जब आप हार मान लेते हैं और इसके बजाय एक सैंडविच बना लेते हैं) और अंततः हम लिए गए फैसले से समग्र रूप से कम संतुष्टि की ओर जाते हैं। मनोविज्ञान के विद्वानों ने वर्षों से इस स्थिति का अध्ययन किया है और आपके जीवन को थोड़ा आसान बनाने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं। हालांकि पहले हमें इसे सुलझाने के लिए इसे समझने की जरूरत है।


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