क्या विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी पर दबाव डालने में कामयाब हो पाएगा? 2024 से पहले की सियासत समझिए
नई दिल्ली: क्या विपक्षी दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी पर दबाव डालने में कामयाब होंगे? विपक्षी नेताओं के खिलाफ जांच एजेंसियों के बढ़ते शिकंजे पर बढ़ रही राजनीति को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी आक्रामक रणनीति में बदलाव करने पर विचार कर सकते हैं? ये सवाल ऐसे समय में उठे हैं जब पिछले कुछ दिनों से यह मुद्दा राजनीति के केंद्र में आ गया है। विपक्षी दल कानून के रास्ते से लेकर संसद के अंदर से बाहर तक इस मुद्दे पर आर-पार लड़ने के मूड में हैं और वह झुकने के बजाय हमलावर मूड में हैं। पीएम मोदी ने भी इस पर किसी तरह नरम पड़ने के संकेत नहीं दिए हैं। शुरुआत में विपक्षी हमले पर चुप रहने के बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मसले पर आक्रामक रूप से मुखर हो गए हैं। यह काउंटर हमला विपक्ष के लिए भी हैरानी भरा रहा।
पिछले दिनों बीजेपी मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में पीएम मोदी ने कहा कि जो लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, उन पर ऐक्शन होता है तो वह न्यायिक प्रणाली पर हमला करते हैं। कोर्ट कोई ऐक्शन लेता है तो उस पर हमला होता है। उन्होंने विपक्ष के आरोपों पर पलटवार करते हुए कहा कि कुछ लोगों ने मिलकर भ्रष्टाचारी बचाओ अभियान छेड़ा हुआ है। उन्होंने 2024 के लिए अपना चुनावी दांव भी बनाने के संकेत दिए और कहा कि भ्रष्टाचार में लिप्त जितने भी चेहरे हैं, वह एक साथ एक मंच पर आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि 9 साल में बीजेपी की सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाया। भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों की जड़ें हिलाकर रख दी हैं। पीएम मोदी ने पीएमएलए एक्ट का बचाव करते हुए कहा कि इसी एक्ट के तहत पिछले 9 साल में बीजेपी सरकार ने 1 लाख 10 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की है।
पीएम मोदी ने साफ संकेत दिया कि विपक्ष के हमले पर वह दबाव में आने की बजाय उसे अपना सियासी हथियार बनाएं। एक अन्य सभा में कहा कि आजादी के बाद पहली बार इस तरह भ्रष्टाचार पर चोट हो रही है। इससे जनता खुश है। मोदी ने कहा कि मैं जहां जाता हूं लोग कहते हैं मोदी जी रुकना मत। अब हम इतना सारा करेंगे तो कुछ लोग तो नाराज होंगे ही, अपना गुस्सा भी निकालेंगे। लेकिन इनके झूठे आरोपों से न देश झुकेगा न भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई थमने वाली है।
इस मुद्दे पर विपक्ष की रणनीति अब कहीं से झुकने की नहीं है। उनका मानना है कि अगर सामूहिक दबाव बनाया गया तो वह पूरे मुद्दे को अपने पक्ष में मोड़ सकते हैं। विपक्षी दलों का यह भी मानना है कि बाकी मसले पर वह अलग-अलग होकर लड़ सकते हैं लेकिन यहां उन्हें एक होना होगा। वे हुए भी। कानूनी प्रक्रिया से लेकर सियासी जंग तक वे अब एक हो रहे हैं।