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विश्‍व मातृभाषा दिवस आज, ऐसे शुरू हुआ इसे मनाए जाने का सिलसिला

नई दिल्‍ली: हर साल आज का दिन विश्‍व मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है। साल 1999 में यूनेस्को ने 21 फरवरी को विश्‍व मातृभाषा दिवस के तौर पर मनाने का ऐलान किया था। बांग्‍लादेश की पहल पर इसे मनाने की शुरुआत हुई थी। 2000 से पूरी दुनिया मातृभाषा दिवस मनाने लगी। पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मातृभाषा पर कई दिल छू लेने वाली बातें बोली थीं। ‘मन की बात’ की 86वीं कड़ी में पीएम ने कहा था कि मां और मातृभाषा मिलकर जीवन को मजबूती देते हैं। कोई भी इंसान अपनी मां और मातृभाषा को न छोड़ सकता है। न ही इसके बगैर तरक्‍की कर सकता है।


विश्‍व मातृभाषा दिवस का इतिहास बेहद दिलचस्‍प है। बांग्लादेश में 21 फरवरी उस दिन की वर्षगांठ है जब बांग्लादेश के लोगों ने बांग्ला भाषा की मान्यता के लिए संघर्ष किया था। तब वह बांग्‍लादेश नहीं, बल्कि पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था। 1947 में जब पाकिस्‍तान बना तो भौगोलिक रूप से वह दो हिस्‍सों – पूर्वी पाकिस्‍तान और पश्चिमी पाकिस्‍तान – में बंटा था। पूर्वी पाकिस्‍तान ही बाद में बांग्‍लादेश बन गया। ये दोनों हिस्‍से सांस्‍कृतिक और भाषायी रूप से बिल्‍कुल अलग थे। भारत इन दोनों को अलग करता था।

1948 में पाकिस्‍तान सरकार ने उर्दू को पाकिस्‍तान की राष्‍ट्रीय भाषा घोषित किया। इसके उलट पूर्वी पाकिस्‍तान में ज्‍यादातर लोग बांग्‍ला बोलते थे। बांग्‍ला के मातृभाषा होने कारण पूर्वी पाकिस्‍तान के लोगों ने विरोध किया। उनकी मांग थी कि उर्दू के अलावा बांग्‍ला को कम से कम एक और राष्‍ट्रीय भाषा का दर्जा मिले। इस मांग को सबसे पहले 23 फरवरी 1948 में धीरेंद्रनाथ दत्‍त ने उठाया था।

इस विरोध को पाकिस्‍तान सरकार ने पुरजोर तरीके से कुचलने की कोशिश की। 21 फरवरी 1952 को पुलिस ने इसकी मांग के समर्थन में जुटी रैलियों पर खुलेआम गोल‍ियां बरसाई थीं। इसमें कई लोगों की मौत हो गई थी। सैकड़ों घायल हो गए थे। इतिहास में इससे पहले शायद ही हुआ था जब लोगों ने अपनी मातृभाषा के लिए जान गंवाई थी। बांग्‍लादेशियों की ओर से भाषा आंदोलन को श्रद्धांजलि देने के लिए ही यूनेस्‍को ने इसे मनाने का ऐलान किया था।

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