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फिल्म चक्की के डायरेक्टर सतीश मुंडा से बातचीत

‘बत्ती गुल मीटर चालू’ के बाद एक फिर बिजली बिल की समस्या पर फिल्म ‘चक्की’आई है। यह फिल्म 7 अक्टूबर को थिएटर्स में रिलीज हो गई है। फिल्म में राहुल भट्ट व प्रिया बापट मुख्य किरदार में हैं, जबकि राईटिंग और डायरेक्शन सतीश मुंडा ने किया है। फिल्मेकिंग से लेकर इसके रोचक तथ्यों पर सतीश मुंडा ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत की है..

फिल्म की कहानी साल 2012 की है

मैं फिल्म इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया,पुणे में पढ़ रहा था। यह बात साल 2015 की है। एक दिन एक आर्टिकल मेरे हाथ लगी, जिसमें एक शख्स की कहानी थी। उसका छोटा-सा कारोबार था, पर अचानक उसका एक महीने का बिजली बिल तकरीबन डेढ़ लाख के आसपास आ गया। बिजली बिल नहीं भरने के चक्कर में उसके ऊपर केस हो गया और उसे जेल जाना पड़ा। लेकिन जेल से निकलने के बाद उसने इंसाफ पाने की ठान ली। उसका मानना था कि जो गलती उसने की ही नहीं उसके लिए सजा क्यों? वो इंसाफ पाने के लिए लड़ता रहा और दो-तीन साल बाद उसे इंसाफ मिला। गर्वमेंट ने माना कि उससे गलती हुई। बिजली विभाग की गलती से सारी चीजें हुई। यह आर्टिकल मुझसे कनेक्ट कर रहा था क्योंकि मैं भी कभी बिजली बिल को लेकर परेशान रहता था। मैंने फिल्म में बताया है कि यह कहानी 2012 की है।

रिसर्च में पाया कि 50 में से 20 बिजली बिल की समस्या से परेशान हैं

मैंने रिसर्च करना शुरू किया, तब बिजली विभाग के अलग-अलग दफ्तर में कई बार चक्कर काटना पड़ा। मैं लोगों को ऑब्जर्व करता था। देखा कि अगर 50 लोग समस्या लेकर आ रहे हैं तो उसमें 10 से 20 लोग ऐसे हैं, जिनकी बिजली बिल ज्यादा आने की ही समस्या थी। किसी का बिल ज्यादा आया है, किसी को मीटर का फॉल्ट हो गया है तो किसी का कनेक्शन कट गया है या फिर किसी के ऊपर एफआईआर हो गया है। खैर, रिसर्च में पाया कि यह कहानी मार्मिक है और लोगों से कनेक्ट करेगी, इसलिए इस पर काम करना शुरू किया।

बत्ती गुल मीटर चालू फिल्म की कहानी से क्यों अलग है ‘चक्की’

मैंने कहानी लिखते वक्त ‘बत्ती गुल मीटर चालू’फिल्म देखा तो महसूस किया कि उन लोगों ने हीरोइज्म पर ज्यादा फोकस किया है। एक लाल बत्ती जलती है, उससे लोगों से बिल वसूला जाता है। लेकिन मेरी फिल्म चक्की एक कॉमन कहानी है। कहीं न कहीं लगेगा कि फिल्म में दिखने वाला मुख्य कैरैक्टर विजय हम में से एक है। वह कैसे डेढ़ लाख की बिजली बिल समस्या में फंसता है। उसे जेल जाना पड़ता है। घर में वह अकेला कमाने वाला सदस्य है, ऐसे में घरवाले कैसे इफेक्ट होते हैं। घर में बिजली न होने से दिवाली का फेस्टिवल कैसे मनाते हैं। उसकी प्रेमिका से शादी होने वाली होती है, पर वो भी टूट जाती है। वह इन चीजों से कैसे निकलता है। यह सारी बातें हैं, जो ‘बत्ती गुल मीटर चालू’और ‘चक्की’को एक दूसरे से अलग बनाती है।

पहली बार फिल्म में कुछ अलग कोर्टरूम ड्रामा देखने को मिला है

फिल्म ‘चक्की’में ऐसा पहली बार देखने को मिलेगा जहां पर तीन-चार केस की सुनवाई एक साथ होती है। दो वकील एक अलग केस को लेकर अपने बारे में बोल रहे हैं,वहीं दो वकील एक अलग केस के बारे में बोल रहे हैं। इस तरह तीन-चार केस एक साथ चलते रहते हैं। लोअर कोर्ट में ऐसा ही होता है। मैं जब रिसर्च कर रहा था, तब पाया कि अब तक जितनी फिल्मों में कोर्ट केस देखा, रियल में ऐसा नहीं होता। यह कोर्ट बड़ा अलग है। आपका केस चल रहा है, तब आप दुखी होंगे, लेकिन अगर आप बाहर से देखेंगे, तब बड़ी हंसी आएगी। यह चल क्या रहा है। हमारे जज साहब कैसे तीन केसों को एक साथ हैंडिल कर रहे हैं।हमारा कैरेक्टर जब कोर्ट में जाता है, तब उस समय दो-तीन केस और चल रहे होते हैं। फाइनली, एक साथ तीन-चार केस की सुनवाई कैसे होती है, वह बहुत ड्रामेटिक है। अब तक जिन लोगों को फिल्म दिखाया, उन सबका कहना है कि यह तो बहुत अलग कॉसेंप्ट है।

इसलिए रखा ‘चक्की’ नाम

केवल बिजली बिल का दफ्तर ही नहीं, इंडिया में जितने सरकारी दफ्तर हैं, वहां पर कॉमन मैन का काम कई महीने लग जाते हैं। मैंने रिसर्च के समय देखा कि जैसे-तैसे बड़े अधिकारी के पास केस जाता है, तब वे साइन करके छोटे अधिकारी के पास भेज देते हैं। अब छोटे अधिकारी उसमें कुछ लिखकर एक साइन करके बोलते हैं कि बड़े साहब से मिलकर आओ। इस तरह लूप वाला सर्कल चलता रहता है। इस तरह समस्या का निदान नहीं होता है। इस तरह जब घूमते रहते हो, उसमें पिसते हो, पैसे जाते हैं, मेंटल हरासमेंट होता है, परेशानी अलग से होती है और समय भी जाता है। यह सब सोचकर फिल्म का नाम ‘चक्की’ रखा।

पूरी फिल्म को भोपाल में शूट किया

मैंने जो आर्टिकल्स पढ़ता था, वह रांची, झारखंड का था। मिडिल टाउन की स्टोरी थी, इसलिए सोचा कि जितना आर्गेनिक रखेंगे, लोग उतना ज्यादा कनेक्ट कर पाएंगे। फिल्म में भोपाल की कहानी है, इसलिए भोपाल के कोर्ट, भोपाल के घर और वहां का जो इकोसिस्टम हैं, वह सब वहीं के हैं। दूसरा, भोपाल में शूट करने की वजह यह भी थी कि मुझे मिडिल डाउन की कहानी बतानी थी। भोपाल में 32 दिनों की शूटिंग शेड्यूल रखा था, लेकिन तीन दिन गाने के लिए मोटांज शूट किया गया। इस तरह कुल 35 दिनों भोपाल में शूट किया। इसके अलावा मुंबई में एक-दो दिन पैचवर्क शूट किया।

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