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अभी से ठीक नहीं दिख रहे हैं आसार, क्या इकॉनमी को झुलसाएगा इस बार का मॉनसून?

नई दिल्ली: पहले कोविड। फिर ग्लोबल बैंकिंग संकट (Banking Crisis)। और अब अल-नीनो (El-Nino)। सवाल उठ रहे हैं कि क्या देश की इकॉनमी के लिए चुनौतियां बढ़ने वाली हैं? अल-नीनो एक मौसमी घटना है, जिसमें प्रशांत महासागर के गर्म होने से मॉनसून में बाधा आती है। बताया जा रहा है कि इससे भारत में सूखा पड़ सकता है और अर्थव्यवस्था को खतरा हो सकता है। मौसम का अनुमान लगाने वाली प्राइवेट एजेंसी स्काईमेट ने कहा है कि इस बार भारत में सामान्य से कम बारिश हो सकती है। हालांकि सरकारी क्षेत्र के भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने कहा है कि इस बार अल नीनो की संभावना 70 फीसदी है। अमेरिकी एजेंसियों का कहना है कि अल-नीनो इस बार जून में ही आ रहा है, जब यहां मॉनसून चरम पर होता है। इस बार संभावना भी काफी ज्यादा है। अमेरिकी एजेंसियों ने एक महीने पहले अल नीनो की संभावना 61 फीसदी बताई थी, अब इसे 74 फीसदी कर दिया है।

आधी आबादी खेती पर निर्भर

भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकॉनमी है और सबसे ज्यादा तेजी से आगे बढ़ रही है। सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण खेती-किसानी से जुड़े लोग मॉनसून सीजन की बारिश पर निर्भर रहते हैं। इसके अलावा बिजली पैदा करने, फैक्ट्रियों में प्रॉडक्शन और पीने के लिए जिन जलाशयों से पानी मुहैया कराया जाता है, उनमें 91 फीसदी इसी मॉनसूनी बारिश पर निर्भर हैं। देश की जीडीपी में खेती का हिस्सा 20 फीसदी है। करीब-करीब आधी आबादी रोजी-रोटी के लिए खेती पर निर्भर है।

13 बार पड़ चुका है सूख

देश में 1950 के बाद 13 बार सूखा पड़ चुका है, जिसमें से 10 अल-नीनो के दौरान ही हुए, लेकिन जरूरी नहीं है कि अल-नीनो के कारण सूखे की नौबत आ ही जाए। 1997 में भारत ने अब तक के सबसे तगड़े अल-नीनो का सामना किया, लेकिन तब मॉनसून सामान्य था। 2001 से 2020 के बीच भारत में सात बार अल-नीनो की स्थिति बनी। इनमें चार की ही वजह से सूखा पड़ा। हालांकि इससे खरीफ के उत्पादन में 16 फीसदी तक की गिरावट आई, जिससे महंगाई बढ़ी। देश की सालाना खाद्य सप्लाई का आधा हिस्सा खरीफ की फसलें पूरा करती हैं। हालांकि, अब सूखा पहले जैसी आपदा नहीं रहा। कृषि उत्पादकता में लगातार उछाल के कारण यह स्थिति आई है। देश का खाद्य उत्पादन फिलहाल करीब 32 करोड़ टन तक है। 2009 में देश में तीन दशकों में सबसे खराब सूखा पड़ा था। तब भी देश 2007 की तुलना में एक लाख टन अधिक खाद्यान्न का उत्पादन करने में कामयाब रहा। खास बात ये है कि 2007 में मॉनसून सामान्य था। देश एक और मौसमी घटना पर भरोसा कर रहा है। यह इंडियन ओशन डिपोल (IOD) है, जो बारिश को बढ़ावा देता है और अल-नीनो को विफल करता है। फिलहाल यह पॉजिटिव है।


अगर सूखा पड़ा तो क्या होगा

अगर सूखा पड़ा तो यह किसानों की आय कम करेगा, जिससे बाजार में टीवी, फ्रिज, ट्रैक्टर, पैसिंजर गाड़ी जैसी चीजों की डिमांड कम होगी। बेरोजगारी बढ़ेगी। महंगाई को हवा मिलेगी। यह कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाएगा। रिजर्व बैंक का मानना है कि अगर भारत अल-नीनो से बच जाता है तो मौजूदा वित्त वर्ष में महंगाई 5.0-5.6 फीसदी के बीच रहने की उम्मीद है। यानी अल-नीनो से सूखे का सामना होने पर महंगाई 6 फीसदी से ऊपर जा सकती है। 6 पर्सेंट से ज्यादा महंगाई रिजर्व बैंक के कम्फर्ट जोन के बाहर की चीज है। इस पर काबू पाने के लिए रिजर्व बैंक को ब्याज दरों में बढ़ोतरी करनी पड़ सकती है। इससे लोन महंगे हो जाएंगे।

मॉनसून सामान्य रहेगा!

मौसम विभाग ने भरोसा दिलाया है कि मॉनसून सामान्य रहेगा। वह पिछले 50 बरसों के डेटा के आधार पर अनुमान लगाता है। अगर इतने बरसों का जो औसत है, उसके 96 से 104 फीसदी तक बारिश हुई तो यह सामान्य मॉनसून माना जाएगा। विभाग का कहना है कि इस बार 96 फीसदी का चांस है। निवेश मामलों के जानकार अश्विन पाटिल का कहना है कि मौसम विभाग का अनुमान 96 फीसदी रखना खुद में सतर्क रुख है। साफ है कि एक फीसदी की भी कमी आई तो मॉनसून सामान्य से कम हो जाएगा। पिछले चार साल सामान्य मॉनसून के गुजरे। मौसम के जानकार मानते हैं कि एक बार फिर सामान्य वर्ष मिलना मुश्किल है। रपटें आई हैं कि भारत सरकार ने चेतावनियों के मद्देनजर तैयारी शुरू कर दी है। कृषि मंत्रालय और मौसम विभाग के बीच मासिक बैठ चल रही है, ताकि हर इलाके के हिसाब से खास प्लान तैयार किया जा सके। बारिश का सीन क्या है, देश के 700 जिलों को ये बताने के लिए मौसम विभाग पूर्वानुमान और सलाहकार सेवाएं देगा।

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