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कभी फूलों के लिए मशहूर था पेशावर, चार दशक में ऐसे बन गया आतंक का केंद्र

पेशावर: ‘फूलों का शहर’ कहे जाने वाले पाकिस्तान के पेशावर शहर में पिछले चार दशक से हिंसा की आग बरस रही है। नाशपाती, श्रीफल और अनार के पेड़ों के बागों से घिरा शहर क्षेत्र बढ़ते उग्रवाद का खामियाजा भुगत रहा है और पड़ोसी देश अफगानिस्तान के संघर्षों और बड़ी शक्तियों के भू-राजनीतिक खेल का नुकसान उठा रहा है। पेशावर सोमवार को एक भयावह आतंकवादी हमले से उस वक्त दहल उठा था जब एक आत्मघाती हमलावर ने दोपहर की नमाज के वक्त मस्जिद में खुद को विस्फोट से उड़ा लिया।

इस हमले में कम से कम 100 लोगों की मौत हो गई और करीब 225 अन्य लोग घायल हुए हैं। इसे हालिया वर्षों में शहर में हुआ सबसे भयावह हमला माना जा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि नरसंहार पाकिस्तान और अमेरिका की दशकों की त्रुटिपूर्ण नीतियों का नतीजा है। वरिष्ठ सुरक्षा विश्लेषक अब्दुल्ला खान ने कहा, ‘‘ आप जैसा बोते हैं, वैसा ही काटते हैं।’’ उन्होंने कहा कि 1980 के दशक की शुरुआत में पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह जियाउल हक ने रूस और अमेरिका के शीत युद्ध का हिस्सा बनने का फैसला करने तक पेशावर एक शांतिपूर्ण स्थान था।

वह पड़ोसी देश अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण के खिलाफ उसका साथ देने के लिए सामने आया पहला देश था। अफगानिस्तान की सीमा से 30 किलोमीटर दूर स्थित पेशावर ऐसा केंद्र बन गया जहां अमेरिकी सीआईए (केंद्रीय खुफिया एजेंसी) और पाकिस्तानी सेना ने सोवियत संघ से लड़ने वाले अफगानिस्तान के मुजाहिदीनों को प्रशिक्षण दिया, हथियार व वित्तीय मदद मुहैया करायी। शहर हथियारों और लड़ाकों से भर गया, जिनमें कट्टरपंथी इस्लामी उग्रवादी और लाखों अफगानिस्तानी शरणार्थी शामिल थे।

अमेरिका के जाने के बाद चुका रहे कीमत

पाकिस्तानी सेना के पूर्व ब्रिगेडियर एवं वरिष्ठ सुरक्षा विश्लेषक महमूद शाह ने कहा, ‘‘1980 के दशक में अफगानिस्तान से रूस से हटने के बाद अमेरिकियों ने मुजाहिदीन को छोड़ दिया, अमेरिकियों ने हमें भी छोड़ दिया और तब से हम इसकी कीमत चुका रहे हैं।’’ सत्ता की लड़ाई के लिए मुजाहिदीन ने अफगानिस्तान को गृह युद्ध में झोंक दिया। इस बीच पेशावर और एक अन्य पाकिस्तानी शहर क्वेटा में अफगान तालिबान ने पाकिस्तानी सरकार के समर्थन से अपने पैर पसारने शुरू कर दिए। आखिरकार 1990 के दशक के अंत में तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता अपने हाथ में ली, जब तक कि अमेरिका में अल-कायदा के 9/11 के हमलों के बाद 2001 में अमेरिकी नेतृत्व ने उसे खदेड़ नहीं दिया।

पेशावर हुआ हमलों का शिकार

अफगानिस्तान में तालिबान विद्रोह के खिलाफ करीब 20 वर्ष तक अमेरिकी बलों की देश में मौजूदगी तक सीमा पर और पेशावर के आसपास पाकिस्तान के कबायली क्षेत्रों में आतंकवादी संगठन फले-फूले। सरकार विरोधी संगठन पाकिस्तानी तालिबान या तहरीक-ए तालिबान-पाकिस्तानी (टीटीपी) ने 2000 दशक के अंत और 2010 की शुरुआत में देशभर में क्रूर हिंसक गतिविधियों को अंजाम दिया। पेशावर 2014 में भी एक भयावह हमले से दहला, जब सेना द्वारा संचालित एक स्कूल पर टीटीपी के हमले में करीब 150 लोग मारे गए, जिनमें अधिकतर स्कूली बच्चे थे। पेशावर की भौगोलिक स्थित ने उसे मध्य एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बना दिया है। एशिया के सबसे पुराने शहरों में से एक पेशावर खैबर दर्रे के प्रवेश द्वार पर स्थित है, जो दो क्षेत्रों के बीच का मुख्य मार्ग है। शाह ने कहा, ‘‘ अगर हमें पाकिस्तान में शांति चाहिए तो, हमें अफगान तालिबान की मदद से टीटीपी से बात करनी चाहिए। हिंसा से बचने का यह सबसे सही व व्यवहार्य समाधान है।

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