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अड़ गए थे अधीर, जानें कैसे CJI चंद्रचूड़ की एक ‘हां’ ने मोदी सरकार को फजीहत से बचा लिया

नई दिल्ली: मोदी सरकार के कार्यकाल में सीबीआई और ED के चीफ की नियुक्ति पर काफी विवाद होता रहा है। एक दिन पहले ही कर्नाटक के डीजीपी प्रवीण सूद को CBI का डायरेक्टर बनाने का आदेश जारी हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी ने शनिवार को उनका नाम फाइनल किया था। खास बात यह है कि इस हाई लेवल कमेटी में शामिल लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने सूद का विरोध किया। ऐसे समय में कर्नाटक के पुलिस चीफ को सीबीआई का बॉस बनाने का फैसला लिया गया, जब राज्य की सत्ता से भाजपा बाहर हो गई है। कांग्रेस का ‘सूद विरोध’ कोई नई बात नहीं है। कर्नाटक में सीएम की रेस में शामिल कांग्रेस के दिग्गज नेता डीके शिवकुमार ने इसी साल मार्च में आरोप लगाया था कि डीजीपी प्रवीण सूद राज्य की भाजपा सरकार को बचा रहे हैं और कानूनी प्रक्रियाओं के जरिए कांग्रेस को टारगेट कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया था कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुलिस केस कर रही है और भाजपा की तरफ आंखें मूद रखी है। डीके ने यहां तक कह दिया था कि कांग्रेस की सरकार बनने के बाद सूद के खिलाफ ऐक्शन लिया जाएगा। हालांकि कमेटी में शामिल चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने नियुक्ति पर मुहर लगाकर सरकार को फजीहत से बचा लिया। अगर चीफ जस्टिस सवाल उठाते तो नियुक्ति लटक सकती थी।

तब पीएम को माननी पड़ी थी CJI की बात

कांग्रेस नेता अधीर ने सूद की उम्मीदवारी पर असहमति जताई। उन्होंने तर्क रखा कि केंद्र में डीजीपी स्तर पर तैनाती के लिए पात्र आईपीएस अधिकारियों के पूल में वह शामिल नहीं थे। लेकिन पीएम और सीजेआई की रजामंदी से फैसला हो गया। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सीजेआई ‘हां’ में फैसला देने के लिए बाध्य होते हैं? इसका जवाब है नहीं। इससे पहले मई 2021 में तत्कालीन चीफ जस्टिस एनवी रमणा की आपत्ति पर दो कैंडिडेट का नाम सीबीआई के डायरेक्टर की रेस से बाहर हो गया था। तब सूत्रों के हवाले से बताया गया था कि सीजेआई ने मार्च 2019 के प्रकाश सिंह केस में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का हवाला देते हुए कहा था कि उस अधिकारी को पुलिस चीफ नहीं बनाया जा सकता जिसे रिटायरमेंट में छह महीने से भी कम वक्त बचा है। तब सीजेआई के समर्थन में अधीर रंजन चौधरी भी थे और ऐसे में प्रधानमंत्री को उनकी बात माननी पड़ी थी। तब रेस से बाहर होने वालों में वाईसी मोदी और राकेश अस्थाना शामिल थे।

नियुक्ति पर असहमति नई बात नहीं

सीबीआई के डायरेक्टर को दो साल के लिए नियुक्त किया गया है, जिसे बढ़ाकर अधिकतम 5 साल किया जा सकता है। नियुक्ति में असहमति नई बात नहीं है। 2017 में भी ऐसा हुआ था जब तत्कालीन दिल्ली पुलिस कमिश्नर आलोक वर्मा को सीबीआई का डायरेक्टर नियुक्त किया गया था। तब लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा था कि वर्मा का सीबीआई में अनुभव कम है। बाद में 2019 में खरगे ने सीबीआई डायरेक्टर ऋषि शुक्ला की नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि सिलेक्शन नियमों में ढील दी गई जो कानून और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लंघन है। महाराष्ट्र के पूर्व डीजीपी सुबोध कुमार जायसवाल को मई 2021 में सीबीआई डायरेक्टर नियुक्त किया गया था। इसके बाद महाराष्ट्र के पूर्व एसीपी राजेंद्र द्विवेदी ने उनकी नियुक्ति को रद्द करने की मांग की थी।

59 साल के सूद कर्नाटक कैडर के 1986 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। वह जायसवाल के बाद सबसे वरिष्ठ आईपीएस अफसर हैं। सुबोध कुमार जायसवाल के 25 मई को कार्यकाल पूरा करने के बाद सूद पदभार ग्रहण करेंगे। सूद ने IIT दिल्ली, IIM बेंगलुरु और न्यूयॉर्क के सिरैक्यूज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। वह 2024 में रिटायर होने वाले थे, लेकिन अब उनका 2 साल का तय कार्यकाल होगा। IPS अधिकारी सूद ने मॉरीशस सरकार के पुलिस सलाहकार के रूप में भी काम किया है।

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