ऐतिहासिक केशवानंद भारती जजमेंट के 50 साल, एक ऐसा फैसला जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों ने एक साथ दे दिया इस्तीफा

नई दिल्ली : केशवानंद भारती केस में आए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के 50 वर्ष पूरे हो गए हैं। इसी फैसले में शीर्ष अदालत ने संसद को मूलअधिकार समेत संविधान के मूल ढांचे में किसी भी तरह के बदलाव से रोक दिया था। सोमवार को इस फैसले की 50वीं वर्षगांठ पर सुप्रीम कोर्ट ने इससे जुड़े सभी रिकॉर्ड को अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया। शीर्ष अदालत के 13 जजों की अबतक की सबसे बड़ी बेंच ने ये फैसला सुनाया था। वेबसाइट पर बेंच के सदस्यों के दिए 11 अलग-अलग राय को भी अपलोड किया गया है।
जिन जजों ने ‘बुनियादी ढांचा सिद्धांत’ के पक्ष में फैसला सुनाया था उनमें से कुछ ने तब अपना पक्ष बदल लिया जब संसद के संविधान संशोधन के अधिकार पर बंदिश की बात आई। जस्टिस रे, पालेकर, खन्ना, मैथ्यू बेग, द्विवेदी और चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाया, ‘अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन के अधिकार पर किसी तरह का अंकुश नहीं है।’
इमर्जेंसी के दौरान, जस्टिस खन्ना ने 28 अप्रैल 1976 को एडीएम जबलपुर केस में इकलौता असहमति वाला फैसला दिया। उन्होंने अपने फैसले में लिखा कि जीने का मूलभूत अधिकार किसी भी स्थिति में निलंबित नहीं किया जा सकता, इमर्जेंसी तक में भी नहीं। उनका असहमति वाला फैसला बाकी 4 जजों- सीजेआई एएन रे औ जस्टिस बेग, चंद्रचूड़ और पीएन भगवती के फैसले से ज्यादा चर्चित हुआ। इन चारों जजों का फैसला सरकार की राय के ही तर्ज पर था कि इमर्जेंसी के दौरान सभी मूल अधिकार निलंबित रहेंगे।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को ऐलान किया कि केशवानंद भारती जजमेंट के सभी दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर बनाए गए स्पेशल पेज पर अपलोड कर दिए गए हैं। इनमें नानी पालकीवाला समेत वकीलों की लिखित दलीलें, संबंधित पक्षों की तरफ से दिए गए दस्तावेज समेत सभी केस रिकॉर्ड शामि हैं।
सीजेआई ने सुप्रीम कोर्ट में जजों के लिए एक नई लाइब्रेरी का उद्घाटन किया जिसमें कुल 3.8 लाख किताबों और संदर्भ सामग्रियों में से 2.4 लाख को शिफ्ट किया गया है।