Banda- केन्द्र बना भ्रष्टाचार का,चकबंदी विभाग,बांदा:- पीड़ित किसान
दो अधिकारी/कर्मचारी पर निलम्बन की कार्यवाही,कई पर जॉच लम्बित।

Banda- एक बर्खास्त,दो अधिकारी/कर्मचारी पर निलम्बन की कार्यवाही, कई जॉच में दोषी,कार्यवाही प्रस्तावित ।
ब्यूरो एन के मिश्र
बांदा — जनपद में उत्तर प्रदेश शासन द्वारा किसानों के हित में चलाई जा रही चकबंदी योजना से आच्छादित ग्राम पंचायत सीलेहटा जो मंडल मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 76 बांदा महोबा मार्ग पर सड़क के दोनों तरफ अवस्थित है यह गैर आबाद ग्राम है।ग्राम त्रिवेणी,मोहनपुरवा,गोयरा मुगली आदि ग्राम सहित इस ग्राम की चकबंदी का गजट सन 2016 में किया गया था। उत्तर प्रदेश चकबंदी नियमावली के अनुसार चकबंदी प्रक्रिया पांच वर्ष में पूर्ण समाप्त होना चाहिए। परंतु दुर्भाग्यपूर्ण है अभी 2024 में भी चकबंदी प्रक्रिया अनवरत जारी है। इसका मुख्य कारण है कि गजट होने के बाद जिस चकबंदी लेखपाल के द्वारा भूमि सर्वे का कार्य किया गया एवं कानूनगो के द्वारा भूमि की पुष्ट तरमीमी की गई वही से गड़बड़ी करते हुऐ भ्रष्टाचार का शुभारंभ कर दिया गया। धीरे-धीरे प्रकाश में आए मामले एवं प्रकरण से स्पष्ट हुआ कि,जैसे-तालाबों,वृक्षों,समाधियों,नदी, कूपों,जलग्रहण के बांधो,आदि के क्षेत्रों का चिन्हांकन/अंकन भूमि पर नहीं किया गया जो भ्रष्टाचार को प्रमाणित करता है।
सहायक चकबंदी अधिकारी,बांदा द्वारा जिसकी जिम्मेदारी थी,मौके पर गाटा दर गाटा की मलियत लगाने की,वह भी भ्रष्टाचार की प्रक्रिया पर संलिप्त हुआ और एक स्तंभ बन गया। चकबंदी आयुक्त उत्तर प्रदेश सरकार एवं चकबंदी अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान दिया गया है कि मुख्य सड़क के किनारे के गाटो को विवाद से बचाने हेतु अचक कर दिया जावे,या भूस्वामी को ही वो चक आवंटित कर दिए जावे,40 % से अधिक मूल जोत के उड़ान चक् में निर्दिष्ट न किए जावे। चकबंदी के उच्चाधिकारी SOC,DDC को स्पष्ट निर्देश हैं कि आवंटन कार्य में सतत निगरानी रखते हुए सतर्कता बरती जाए। जबकि यहां बिल्कुल उलट-पुलट कर,जिनको निगरानी करने की जिम्मेदारी दी गई थी उन्होंने ही सड़क किनारे के बेशकीमती भूमि के गाटे अपनी-अपनी पत्नी के नाम पर जरिए (बैनामा)विक्रम पत्र ले लिए गए हैं। इतने में बात नही रुकी भष्टाचार कर जिन गाटा संख्या के चक निर्माण हो चुके थे,उसमें भी अपने चक् निर्माण प्रपत्र में दर्ज करा लिया भ्रष्टाचार इस कदर सर चढ़ कर बोला कि मार्च 2020 में संपूर्ण भारत वर्ष करोना COVID-19 जैसी महामारी का दंश झेल रहा था वही चकबंदी विभाग के प्रपत्र में ग्राम सीलेहटा की चकबंदी अपने परवान चढ़ रही थी।
जैसे- उत्तर प्रदेश चकबंदी अधिनियम की धारा 10 का प्रकाशन माह सितंबर 2020 में दिखाया गया है। जबकि चकबंदी आकार पत्र भाग 1 का अवलोकन करने पर स्पष्ट हुआ कि क्षेत्र में कानूनगो के स्थान पर Rule-109 मैं कार्यरत रहे कानूनगो मुन्ना प्रसाद के हस्ताक्षर अंकित पाए गए, इससे खुली बात यह आई कि भ्रष्टाचार विभाग में कर्मचारियों/ अधिकारियों के संरक्षण में पूर्ण रूप से पल्लवित तो हो ही रहा है।
चकबंदी की धारा 20 का प्रकाशन भी कर दिया गया,चकबंदी अधिकारियों की प्रशंसा करनी होगी कि जिसके प्रकाशन का अनुमोदन चकबंदी अधिकारी को अनुमोदन प्राप्त करने के बाद ही होना चाहिए था। उनका प्रकाशन अनुमोदन के लिए बगैर ही कर दिया गया। इस तरह से भागती चकबंदी की प्रक्रिया में कई प्रकरण उजाले में आए जिनको अंधेरे में रखने के लिए जमीन पर कम,प्रपत्र में ज्यादा फर्जीवाड़े कर विभागीय चकबंदी प्रक्रिया को गति देते रहे।
अपने ही नियुक्ति के परिक्षेत्र में कार्यरत कर्मचारी/अधिकारी को अपने व अपने पारिवारिक सदस्यों में किसी के नाम भूमि क्रय करने से पूर्व विभागीय अनुमति लेना अनिवार्य था। इस अनुमति का पूर्णत: उलंघन कर बगैर अनुमति के ही पारिवारिक सदस्यों के नाम भूमि क्रय कर ली गई तथा भूमि के चक प्रस्तावित करते समय किसी भी किसान को अधिक से अधिक 3 चक प्रस्तावित करने का अधिकार सहायक चकबंदी अधिकारी को होता है किंतु ग्राम सीलेहटा में बिना सक्षम उच्चाधिकारी की अनुमति के छह-छह चक प्रस्तावित कर भ्रष्टाचार को पूर्ण प्रश्रय दिया गया। जबकि उक्त को प्रकरण की अनुमति लखनऊ चकबंदी निदेशालय से ली जानी चाहिए थी इतना ही नहीं अपने त्रुटियों को छिपाने के लिए अधिकारियों ने निदेशालय की आंखों में धूल झोकते हुए चको की बढ़ी हुई संख्या प्रदर्शित नहीं की,सेक्टर 19 व सेक्टर 20 में दो चक् को एक ही चक दिखाया गया।
चकबंदी विभाग,बांदा में प्रस्तावित चको के निर्माण में आकार पत्र 23 से स्पष्ट हुआ कि जो कार्य धारा 8 में हो जाना चाहिए किंतु अंश विभाजन किया ही नहीं गया सहदारी में ही भूमि के चक बनाए गए,अंश कम ज्यादा करने में भी भ्रष्टाचार किया गया,सामूहिक चक बनने से चकबंदी सुविधाओं में नालियां, चकरोड का लाभ किसानों को नहीं मिला जबकि चकबंदी नियमावली के तहत 4% भूम की कटौती भी कर ली गई थी। साथ ही रातों रात नेशनल हाईवे के किनारे की जमीन अमीर जादो के लिए सुरक्षित करके गरीबों की जमीन जंगलों में डाल दी गई और अमीरजादों की जंगली जमीन को बेशकीमती बना दी गई। फिर एक बार चकबंदी विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों/कर्मचारियों की बल्ले-बल्ले हो गई।
पीड़ित किसानों की जब सहन सीमा टूट गई और तत्कालीन जिलाधिकारी बांदा को न्याय पाने के लिए दरवाजा खटखटाया गया। संतोषजनक समाधान मिलने पर किसान साथियों ने किसान संघ की शरण ली किसान संघ के मंडलीय अध्यक्ष बलराम तिवारी ने चित्रकूट धाम मंडल बांदा के आयुक्त से मुलाकात कर प्रकरण की जांच की मांग रखी मंडलायुक्त ने जिलाधिकारी बांदा अनुराग पटेल जो वर्तमान में अपर आयुक्त चकबंदी उत्तर प्रदेश लखनऊ ने अपर जिलाधिकारी की स्तरिय जांच कमेटी गठित कर 15 दिवस की अवधि में जांच आख्या प्रस्तुत करने के निर्देश दिए जिसमें चकबंदी विभाग में उथल पुथल मची।
जिला प्रशासन द्वारा भेजी गई जांच आख्या में सहायक चकबंदी अधिकारी बांदा को उच्च प्रशासन के द्वारा निलंबन की कार्यवाही की गई एवं चकबंदी अधिकारी,बांदा के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई प्रस्तावित की गई। जो कि विभागीय समीकरण के चलते आज भी प्रस्तावित जांच लम्बित पड़ी है या भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गई। जहां एक ओर अनियमितताओं पर लेखपाल, सहायक चकबंदी अधिकारी, चकबंदी अधिकारी पर कार्यवाही हुई, वहीं पर भ्रष्टाचार में संलिप्त कानूनगो निर्दोष कैसे ? किसानों की माने तो तत्कालीन बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी, बांदा जो जॉच कमेटी के सदस्य थे, उनके लिए काम कर रहे कानूनगो के विरुद्ध साक्ष्यों को हटाया, तथ्यों को छिपाया गया था। इतना ही नहीं चकबंदी लेखपाल को बंदोबस्त अधिकारी बांदा के द्वारा भी निलंबन की कार्यवाही की गई। चल रहीं जांचों से देखना होगा कि आगे क्या क्या होगा।