उत्तर प्रदेश

‘हाईकोर्ट के आदेश पर तैयार की गई बांके बिहारी कॉरिडोर योजना’, UP सरकार ने रखा अपना पक्ष

प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा-वृदांवन स्थित बांकेबिहारी मंदिर के मुख्य द्वार और उसके आसपास भीड़ का आकलन करने के लिए वहां का वीडियो देखने की इच्छा जताई है।

मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने प्रस्तावित कारिडोर निर्माण मामले की सुनवाई करते हुए बुधवार को यह इच्छा जताई। मुख्य स्थायी अधिवक्ता से इसके लिए मौखिक तौर पर कहा।

सरकार की तरफ से कहा गया कि उसने हाई कोर्ट के आदेश पर कॉरिडोर की योजना तैयार की है। दो सत्रों में सुनवाई हुई। अब शुक्रवार तीन नवंबर को सुनवाई होगी। सुबह नौ बजे कोर्ट बैठी तो सेवाइतों की तरफ से अधिवक्ता पुरातात्विक महत्व के भवनों की सुरक्षा व कुंज गली सहित वृंदावन के पौराणिक स्वरूप से छेड़छाड़ नहीं करने की बात कही।

याची ने पोषणीयता पर जताई आपत्ति

कहा, मंदिर में पूजा संबंधी सेवाइतों के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए व बगैर मुआवजा दिए कारिडोर के लिए ध्वस्तीकरण कार्रवाई की अनुमति न दी जाए। शाम चार बजे फिर सुनवाई के लिए कोर्ट बैठी तो याची अधिवक्ता श्रेया गुप्ता ने पोषणीयता पर आई आपत्ति का जवाब दिया।

कहा, मंदिर के भीतर व बाहर की व्यवस्था भिन्न है। भीड़ को नियंत्रित करने तथा श्रद्धालुओं को सुविधाएं मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है। इसका मंदिर प्रबंधन से सरोकार नहीं है।

सेवायतों के एक अधिवक्ता संजय गोस्वामी पहले ही कह चुके हैं कि यदि बांकेबिहारी मंदिर से जुड़े गोस्वामियों के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं किया जाता तो सरकार की कॉरिडोर संबंधी योजना पर कोई आपत्ति नहीं है।

याचिका में की गई चार मांगे

अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल व सीएससी कुणाल रवि ने कहा कि याचिका में चार मांगें की गई हैं। इनमें दो लोकहित की हैं। यह भीड़ नियंत्रित करने तथा कानून व्यवस्था कायम रखने की है। लोक कल्याण के लिए मंदिर के भीतर- बाहर की व्यवस्था कैसी हो, यह सवाल है।

हाई कोर्ट के आदेश पर सरकार ने कॉरिडोर की योजना तैयार की है। सरकार, मंदिर में भगवान की मूर्ति के नाम से जमीन खरीद कर कॉरिडोर का निर्माण करना चाहती है। वह सेवायतों के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती। इस संबंध में हाई कोर्ट के 28 नवंबर 2022 के आदेश की सुप्रीम कोर्ट ने भी पुष्टि कर दी है। कोर्ट ने पूर्व न्यायमूर्ति सुधीर नारायण अग्रवाल को मौके का परीक्षण कर रिपोर्ट पेश करने को कहा है।

गोयल ने कोर्ट के 20 दिसंबर 2022के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि सेवायतों के अधिकार पर विवाद नहीं है। मूर्ति के नाम जमीन खरीदने पर भी विवाद नहीं है। इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही करार दिया है।

गैर पक्षकार ओम गोस्वामी की विशेष अनुमति याचिका पर सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप करने से इनकार कर चुकी है। कहा है कि पक्षकार बन सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट से 28 नवंबर 2022 का आदेश को सही करार दिया गया है, एक पक्ष ने उसे संशोधित करने के लिए अर्जी दी है।

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