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मॉनसून पर अल नीनो का खतरा, देश को झेलना पड़ सकता है सूखा

नई दिल्ली: इस बार मॉनसून पर मौसमी प्रभाव अल नीनो का खतरा मंडरा रहा है। इसके कारण बारिश सामान्य से काफी कमजोर रहती है और देश को सूखा झेलना पड़ सकता है। साथ ही, मौसम ज्यादा गरम रहने से फसलों पर भी बुरा असर पड़ेगा। उपज कम होने से महंगाई बढ़ेगी। जब प्रशांत महासागर में समुद्र की ऊपरी सतह गरम हो जाती है तो अल नीनो का प्रभाव पड़ता है। इसका असर दक्षिण-पश्चिम मॉनसून पर पड़ता है। एनओएए यानी राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन ने अनुमान जताया है कि अल नीनो का प्रभाव मई-जुलाई के बीच लौट सकता है। जानकार बताते हैं कि यह अवधि गर्मी और मॉनसून के मौसम को जोड़ती है। मॉनसून जून से सितंबर के बीच सक्रिय रहता है।

मेरिलैंड यूनिवर्सिटी में मानद प्रफेसर और वैज्ञानिक रघु मुरतुगुड्डे ने बताया कि जब मौसमी प्रभाव ला नीना होता है तो उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर गर्मी को सोख लेता है और पानी का तापमान बढ़ता है। यह गर्म पानी अल नीनो के प्रभाव के दौरान पश्चिमी प्रशांत सागर से पूर्वी प्रशांत तक प्रवाहित होता है। ला नीना के लगातार तीन दौर गुजरने का मतलब यह है कि गर्म पानी की मात्रा चरम पर है। ऐसे में पूरे आसार हैं कि अल नीनो प्रभाव लौटने वाला है। वसंत से ही इसके संकेत मिलने लगे हैं।


अल नीनो के चलते आता है सूखा
वैज्ञानिक मुर्तुगुड्डे के अनुसार, गर्मी में अल नीनो के प्रभाव से बारिश कम होती है। लेकिन यह तय नहीं है, क्योंकि 1997 में ताकतवर अल नीनो के बावजूद सामान्य से ज्यादा बारिस हुई थी, जबकि 2004 में कमजोर अल नीनो के बावजूद गंभीर सूखा पड़ा था। स्काईमेट वेदर के मौसम विज्ञान विभाग के अध्यक्ष जी. पी. शर्मा ने बताया कि अल नीनो का पूर्वानुमान नौ महीनों के लिए उपलब्ध है। अल नीनो साल होने पर देश में सूखा पड़ने की आशंका करीब 60% होती है। इस दौरान सामान्य से कम बारिश होने की 30% संभावना रहती है।

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