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शादी के 7 साल के भीतर ससुराल में हर अस्वाभाविक मौत दहेज हत्या नहीं, जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्यों सुनाया फैसला

नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि मौत का कारण पता नहीं हो तो शादी के 7 साल के भीतर ससुराल में सभी अस्वाभाविक मौत को दहेज हत्या नहीं माना जा सकता है। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने इस मामले में आरोपी को बरी कर दिया। व्यक्ति को हाईकोर्ट ने सेक्शन 304बी (दहेज हत्या) और सेक्शन 498ए (क्रूरता) के मामले में दोषी ठहराते हुए 7 साल की सजा सुनाई थी।

हाईकोर्ट ने घटा दी थी सजा

इस मामले में महिला की मौत शादी के दो साल के भीतर हो गई थी। मामले में ट्रायल कोर्ट ने व्यक्ति को दोषी मानते हुए 10 साल की सजा सुनाई थी। सजा के बाद व्यक्ति ने फैसले को उत्तराखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने भी व्यक्ति को दोषी माना। हालांकि, हाई कोर्ट ने व्यक्ति की सजा को घटा कर 7 साल कर दिया था। इससे पहले महिला के पिता की शिकायत के बाद पुलिस ने कार्रवाई शुरू की थी। हाई कोर्ट के फैसले के बाद व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई के दौरान ही सुप्रीम कोर्ट ने ये बातें कहीं।

बयान से नहीं होता है साबित

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि यह साबित हो चुका है कि मृतका के साथ मौत से पहले क्रूरता और उत्पीड़न हुआ है। मामले में आरोपी को राहत देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि महिला के पिता के बयान के अनुसार शादी के शुरुआती महीनों में दहेज में मोटरसाइकिल की मांग की गई थी। हालांकि, बयान से ऐसा कुछ साबित नहीं होता है कि मौत से तुरंत पहले इस तरह की कोई मांग की गई हो। रिपोर्ट के अनुसार महिला की शादी 1993 में हुई थी। महिला की मौत जून 1995 में हुई थी। महिला के पिता ने चरण सिंह, देवर गुरमीत सिंह और सास संतो कौर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी सुनाया था ऐसा फैसला

इससे पहले साल 2019 में भी बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसी तरह का फैसला सुनाया था। अदालत ने उस समय कहा था कि शादी के 7 साल के भीतर आत्महत्या दहेज हत्या का सबूत नहीं है। बॉम्बे हाईकोर्ट का कहना था कि सिर्फ इसलिए कि एक महिला ने शादी की निर्धारित अवधि के भीतर आत्महत्या कर ली है, यह नहीं माना जा सकता है कि यह दहेज मृत्यु थी। अदालत ने 21 साल पहले अपनी पत्नी की मौत के मामले में एक व्यक्ति को बरी करने फैसले को पलटने की राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई कर रही थी। घटना के समय वह आदमी 27 वर्ष का था।

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