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कुत्ते के काटने के झूठे केस ने महिला का करियर किया तबाह, अब पहुंची सुप्रीम कोर्ट, जानें पूरा मामला

नई दिल्ली : तीस वर्ष की अपूर्वा पाठक पर कुत्ते के काटने का झूठा मामला थोपा गया, जिससे न्यायपालिका में करियर बनाने का उनका सपना खतरे में पड़ गया। सिविल जज के रूप में चुने जाने के बावजूद, उनका नाम मेरिट लिस्ट से हटा दिया गया। हालांकि उन्हें केस से बरी कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट से पाठक को कुछ राहत मिली है, जिसने इस हफ्ते की शुरूआत में उनकी याचिका पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया। पाठक की याचिका में तर्क दिया गया है कि पिछले आपराधिक मामले के आधार पर उन्हें नियुक्ति से वंचित करना, जिसमें वह बरी हुई हैं, संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत निर्धारित मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, उनके साथ समान व्यवहार नहीं किया गया है।

याचिका में कहा गया, ‘याचिकाकर्ता का नाम उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 289 (स्ट्रीट डॉग या जानवर के नुकसान पहुंचाने) के तहत दर्ज मामले के पंजीकरण के आधार पर सुनवाई का कोई उचित अवसर दिए बिना सिविल जज के चयनित उम्मीदवारों की सूची से हटा दिया गया है। मामले में उसे जेएमएफसी अदालत ने योग्यता के आधार पर बरी कर दिया है।’


पाठक की ओर से पेश अधिवक्ता नमित सक्सेना ने कहा कि सूची से नाम हटाना राज्य सरकार के नियमों का उल्लंघन है और प्रशासनिक पक्ष पर उच्च न्यायालय को याचिकाकर्ता का नाम चयन सूची से हटाते समय इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए थी। दलीलें सुनने के बाद, जस्टिस संजय किशन कौल और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा, ‘नोटिस जारी करें, चार सप्ताह में जवाब देना है।’

पाठक विशेष योग्यता और स्वर्ण पदक के साथ विधि स्नातक हैं। उसने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा – 2019 को पास किया और आखिरकार उसे सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के रूप में नियुक्त किया गया। पोस्टिंग का इंतजार करते समय, वह यह देखकर चौंक गईं कि उनका नाम मेरिट सूची/चयन सूची से हटा दिया गया है। उसने याचिका में कहा, ‘यह ध्यान रखना उचित है कि न्यायिक सेवा परीक्षा के सभी चरणों यानी, प्रारंभिक, मुख्य और साक्षात्कार में, याचिकाकर्ता ने झूठे मामले में फंसाए जाने के उक्त तथ्य का जिक्र किया था और उसे ट्रायल कोर्ट की तरफ से बरी कर दिया गया है।’

याचिका में आगे तर्क दिया गया कि हाई कोर्ट यह मानने में विफल रहा कि धारा 289 के तहत प्राथमिकी छोटा अपराध है और अवतार सिंह बनाम भारत संघ में शीर्ष अदालत की तरफ से तय दिशानिर्देशों के अंतर्गत आता है।


याचिका में कहा गया है, ‘और यह गंभीर अपराध नहीं है, क्योंकि याचिकाकर्ता सीधे तौर पर अपराध में शामिल नहीं थी, बल्कि एक मात्र पीड़ित थी, जो शिकायतकर्ता की तरफ से आवारा कुत्ते को पीटने से बचाने के दौरान घायल हो गई थी। साथ ही शिकायतकर्ता की मेडिकल रिपोर्ट से भी यह साबित हुआ है कि उसे किसी कुत्ते ने नहीं काटा था। प्राथमिकी पूरी तरह से झूठी थी इसलिए जेएमएफसी अदालत, भोपाल ने याचिकाकर्ता को योग्यता के आधार पर बरी कर दिया।’

फरवरी 2018 में की गई एक शिकायत में, यह आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता ने अपने पालतू कुत्ते को शिकायतकर्ता को काटने के लिए मजबूर किया और फिर उसे उसी हाल में छोड़ दिया। याचिका में कहा गया है कि 5 दिसंबर, 2022 को आदेश पारित करने से पहले उसे सुनवाई का कोई अवसर प्रदान नहीं किया गया, और यह आदेश भी पुलिस विभाग की तरफ से जारी चरित्र प्रमाण पत्र को सार्वजनिक सेवा के लिए योग्य घोषित करने में विफल रहा।

याचिका में 5 दिसंबर के आदेश को रद्द करने और 23 अप्रैल, 2022 को सिविल जज वर्ग-द्वितीय (प्रवेश स्तर) के पद के लिए चयनित सूची में मेरिट नंबर 12 पर उनकी उम्मीदवारी को बहाल करने के लिए उत्तरदाताओं को निर्देश जारी करने की मांग की गई थी।

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