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जम्मू-कश्मीर में लीथियम मिलने से देश को क्या फायदा होने वाला है? यहां समझिए पूरी बात

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा लिथियम का भंडार मिला है। इतनी ज्यादा मात्रा में लिथियम मिलने से भारत को आने वाले वक्त में काफी फायदा मिलने वाला है। लिथियम इलेक्ट्रिक डिवाइस में इस्तेमाल होने वाली बैटरी की उम्र और क्षमता को बढ़ाता है। इसे सफेद सोना कहा जाता है। जम्मू-कश्मीर में मिला लिथियम का भंडार भारत के लिए एक बड़ा गेम चेंजर साबित हो सकता है। आइए बताते हैं कैसे।

क्या होता है अनुमानित संसाधन?

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने 9 फरवरी को घोषणा की कि उसने जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले के सलाल-हैमाना क्षेत्र में पहली बार लिथियम के 5.9 मिलियन टन अनुमानित संसाधन (जी3) स्थापित किए हैं। लेकिन भारत कहां खड़ा है,और लिथियम का उपयोग कैसे किया जा सकता है जैसे सवालों को जानने से पहले ये जान लीजिए कि ‘अनुमानित संसाधन’ क्या है। सीधे शब्दों में कहें तो अनुमानित संसाधन किसी भी चीज के भंडार मिलने के पहले चरण का संकेत है, जहां किसी धातु की मौजूदगी के सबूत मिले हों। शुरुआती तौर पर केवल इसका अनुमान लगाया जा सकता है, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती। G1, G2, G3 आदि खनिज की उपलब्धता के रूप में विश्वास स्तर का एक उपाय है। भारत में लीथियम की खोज ज्यादातर G4 स्तर की रही है, जो ये बताता है कि लिथियम की संभावना काफी ज्यादा है।

दुनियाभर में 80 मिलियन टन लिथियम संसाधन

लिथियम पानी में आधा घुलनशील है और शुद्ध रूप में ये सॉफ्ट सफेद चांदी की तरह होता है। ये काफी रिएक्टिव होता है इसलिए प्राकृतिक रूप से धातु के रूप में नहीं पाया जाता है। यूएस जियोलॉजिकल सर्वे (यूएसजीएस) के अनुसार, ‘लिथियम, टिन और चांदी समेत कई धातुओं की तुलना में ज्यादा मात्रा में है। लेकिन ये केवल चट्टानों में ट्रेस तत्व के रूप में ही मिलता है।’ यूएसजीएस ने 2022 में कहा था कि विश्व स्तर पर कुल लिथियम संसाधन 80 मिलियन टन हैं, हालांकि जिस भंडार से इसे एक्सेस किया जा सकता है, वह केवल 22 मिलियन टन से अधिक आंका गया था। चिली में खनिज का उच्चतम भंडार है।

भारत में क्या होता है इस्तेमाल?

लिथियम के कई इस्तेमाल हैं। कांच और चीनी-मिट्टी से बनी चीजों को मजबूत बनाने के लिए इस उसमें मिलाया जाता है। इसके अलावा एयरफ्रेम स्ट्रक्चर मे वजन बढ़ाने के लिए एल्युमिनियम और कॉपर के साथ इसे मिलाया जाता है। कई दवाओं में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसकी सबसे ज्यादा मांग इलेक्ट्रिक डिवाइस और बैटरी बनाने के लिए है। बैटरी को ज्यादा चार्जेबल बनाने के लिए उसमें लिथियम का इस्तेमाल किया जाता है। लिथियम से बनी बैटरी कम वजन की होती हैं लेकिन उसकी पावर ज्यादा होती है। भारत में लिथियम-आयन (LiBs) बैटरी को अपनाने का काम तेजी से हो रहा है।

सैटेलाइट और लॉन्च पैड के लिए लिथियम ऑयन बैटरी डेवलेप

लेकिन भारत ने इसरो के विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के साथ LiB के खेल में नया रेकॉर्ड बनाया है। भारत ने सैटेलाइट और लॉन्च पैड के लिए 1.5Ah से 100Ah तक की पावर वाले लिथियम ऑयन बैटरी डेवलेप की हैं। कई मिशन में स्वदेशी LiBs की सफल तैनाती ते बाद इसरो ने देश में लिथियम आयन बैटरी के उत्पादन के लिए टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने का फैसला किया है।

2030 तक 30 फीसदी वाहन इलेक्ट्रिक करने का लक्ष्य

सरकार चाहती है कि 2030 तक कम से कम 30 फीसदी वाहन इलेक्ट्रिक हो जाएं। इसके लिए बैटरी के दाम पर फोकस किया गया है। लिथियम आयन बैटरी के स्थानीय निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए केंद्र ने अप्रैल 2021 में लिथियम आयन बैटरी परआयात फीस को दोगुना कर 10 फीसदी कर दिया। 2030 तक लिथियम-आयन बैटरी की मांग 52.5% तक बढ़ने की उम्मीद है। लिथियम के इस खेल में अभी कई खिलाड़ी शामिल हैं, जो मुख्य रूप से बैटरी पैक बना रहे हैं। लेकिन अभी भी थर्मल पैड को आयात करना पड़ रहा है।

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