देखो, मैंने एक सपना देखा

 - अतुल मलिकराम (राजनीतिक रणनीतिकार)
आज सुबह जब नींद खुली, तो कुछ मिनटों तक दहशत में रहा, पसीने से तर-बतर हो चुका था। आतंकवाद की दहशत मानो सपने से हकीकत का रूप ले चुकी हो। एक देश के आतंकी हमले ने दूसरे को तहस-नहस कर दिया। हर तरफ लाशों के ढेर बिछाने और खून के कतरे से देश की धरती को रंगने में आतंकियों को थोड़ी भी रहम नहीं आई, लेकिन सरकार ने कुछ रेहमत दिखाई। फिर क्या देखता हूँ कि सभी देशों ने तालमेल बैठाकर रक्षा बजट पर होने वाले करोड़ों रुपयों के खर्चों पर विराम लगाने का फैसला लिया। इस फैसले में कहा गया कि हम ऑफेंसिव होने के बजाए डिफेंसिव होने पर काम करेंगे। यानि किसी दूसरे देश पर हमला करने की वजह अब हम न होंगे। खैर, यह एक सपना था। लेकिन यदि मेरा सपना सच हो जाए, तो मुझे लगता है कि दुनिया में शांति ही शांति हो जाए। कितना अच्छा हो कि दहशत का पेड़ बनने से पहले आतंक की तमाम जड़ें देश में ही काट दी जाएँ और इन्हें पनपने ही नहीं दिया जाए। यहाँ मुझे वह उदाहरण याद आया, जब एक साथ कई तीलियाँ कतार में बिछी होती हैं। आग लगने पर एक से दूसरी और फिर तीसरी चपेट में आ जाती है। जैसे ही बीच में से एक तीली को पीछे खींच दिया जाता है, आग थम जाती है। बस ऐसे ही यदि सभी देश अपने कदम पीछे खींच लें, तो आतंक पर विराम लग जाएगा।   
रूस-यूक्रेन और तालिबान-अफगानिस्तान विवाद यदि आतंक का रूप नहीं लेता और सुलह कर लेता, तो शायद ये देश जनहानि और संपत्ति के नुकसान से बच जाते। ऐसे ही मुझे भारत के वो हमले याद आ गए, जिससे देश बार-बार आहत हुआ, खासकर वर्ष 2008 में। भारत में सबसे खतरनाक आतंकवादी हमलों में से एक 26/11 का आतंकी हमला 26 नवंबर, 2008 को हुआ था, जब 10 आतंकवादी समुद्र के माध्यम से देश में प्रवेश करने में सफल हुए थे। इसी साल यानि 13 मई, 2008 को लगातार 15 मिनट में हुए नौ बम विस्फोटों से पूरे जयपुर में सदमें की लहर दौड़ गई थी। दसवाँ विस्फोट भी हो ही जाता, यदि अधिकारी 10वें बम को ढूँढने और निरस्त्र करने में असफल रहते। वहीं 30 अक्टूबर, 2008 को असम की राजधानी गुवाहाटी के विभिन्न हिस्सों में 18 विस्फोट हुए थे। 11 जुलाई, 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में प्रेशर कूकर में बम रखकर हुए सात बम विस्फोट भी ध्यान आ गए। 29 अक्टूबर, 2005 को सीरियल बम विस्फोट ने दिल्ली की नींव हिलाकर रख दी थी।

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