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गर्मी के तेवर बर्दाश्त से बाहर! कैसे निपटेगा भारत? लू सीजन से पहले हीट ऐक्‍शन प्‍लान समझ‍िए

नई दिल्‍ली: गर्मी ने पिछले साल भारत में कहर बरपाया था। भयंकर लू ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। 2023 में भी वैसा मौसम रिपीट हो सकता है। IMD ने आने वाले हफ्तों में तापमान बढ़ने का पूर्वानुमान जताया है। फरवरी 2023 में गर्मी पहले ही 1901 का रेकॉर्ड तोड़ चुकी है। मौसम विभाग की चेतावनी से चिंता बढ़ गई है। पिछले साल गर्म हवाओं ने न सिर्फ फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया था, बल्कि बिजली कटौती भी खूब हुई। आशंका है कि इस साल गर्मी के तेवर इंसान के बर्दाश्त करने की क्षमता से बाहर हो सकते हैं। नवंबर 2022 में वर्ल्‍ड बैंक ने भी चेतावनी जारी की थी। कहा था कि भारत दुनिया की उन जगहों में हो सकता है जहां गर्मी वेट-बल्‍ब टेम्‍प्रेचर (गर्मी और उमस को जोड़कर देखने वाला तापमान) तक पहुंच जाएगी। इंसान 35 डिग्री सेल्सियस तक वेट-बल्‍ब टेम्‍प्रेचर बर्दाश्‍त कर सकता है। अभी भारत में वेट-बल्‍ब टेम्‍प्रेचर 32 डिग्री सेल्सियस से थोड़ा ऊपर चला जाता है। ऐसे में गर्मी से निपटने के लिए सरकार का क्‍या प्‍लान है, समझ‍िए।

क्या है हीट ऐक्‍शन प्‍लान (HAP)?

लू से आर्थिक नुकसान और इंसानी जिंदगी को खतरे से निपटने के लिए भारत हीट ऐक्‍शन प्‍लान (HAPs) बनाता है। इसमें लू से पहले की तैयारियों, आपदा प्रबंधन और लू के बाद क्या करना है, इसका खाका खींचा जाता है। ये एक तरह के गाइडेंस दस्‍तावेज होते हैं जो राज्य, जिला और शहरी स्तर पर लू से निपटने के लिए तैयार किए जाते हैं। HAPs का सबसे जरूरी काम अपने क्षेत्र में आने वाले उन हिस्‍सों तक स्‍वास्‍थ्‍य, वित्‍त, सूचना और इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर से जुड़े रिसोर्सेज पहुंचाना होता है जिनके भयंकर गर्मी से सबसे ज्यादा प्रभावित होने का रिस्क होता है।

कैसे काम करता है हीट ऐक्‍शन प्‍लान?

HAPs में लू से जुड़ा चेतावनी सिस्‍टम होता है। इसके जरिए विभिन्न सरकारी विभागों के बीच कोआर्डिनेशन संभव हो जाता है। लोगों को लू के प्रति जागरूक किया जाता है। इसके अलावा लू के असर से निपटने के लिए शॉर्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म सॉल्यूशन का भी जिक्र HAPs में होता है।
मार्च में ही जून वाली लू के लिए तैयार हो जाइए!

भयानक गर्मी से निपटने वाला सिस्‍टम नाकाफी

लू से निपटने को HAPs बनते तो हैं मगर धरातल पर उनकी स्थिति कुछ और हैं। सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPR) का एक आंकलन बताता है कि 18 राज्यों के 37 HAPs में कई स्तर पर बड़ा अंतर मिला। CPR के मुताबिक, HPAs में स्पष्ट लोकेशन, खतरे के आंकलनों, वित्तपोषण और पारदर्शिता की कमी है। सेंटर ने HAPs के रिव्‍यू में पाया कि उन्होंने अपनी अथॉरिटी के लीगल सोर्सेज के बारे में नहीं बताया। उनके सारे प्‍लान खतरे वाले समूहों की पहचान करने में फेल हुई। इन 37 HPAs में नौ सिटी-लेवल, 13 डिस्ट्रिक्ट और 15 स्‍टेट लेवल HAP हैं।

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