बिजनस बेचा-जमीन भी गिरवी.. अपना सबकुछ गंवाकर हॉकी चैंपियन तैयार कर रहा यह गुमनाम कोच

ये कहानी है ओड़िशा के डोमिनिक टोप्पो की। 71 साल का वो जूनुनी कोच जिनके चुस्त शरीर से उनकी उम्र का अंदाजा नहीं लगता। हॉकी के लिए ऐसा पैशन, ऐसा पागलपन कि अपना बिजनस तक बेच दिया। पुश्तैनी जमीन गिरवी रख दी। कभी-कभी तो दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती, लेकिन हॉकी प्लेयर्स तैयार करने की भूख बरकरार है। ये डोमिनिक जैसे लोग ही हैं, जिनके बूते देश में हॉकी की आत्मा जिंदा है। वरना क्रिकेट की अमीरियत के नीचे अपना नेशनल गेम कब का दम तोड़ चुका होता।
अपने इस सफर के बारे में डोमिनिक टोप्पो बताते हैं, ‘मेरा पिता हॉकी खेला करते थे तो ये खेल मुझे विरासत में मिला। पूरा बचपन हॉकी फील्ड में ही गुजरा। शुरुआत में बांस की लकड़ी से खेला करता। उसी लकड़ी सारे डिफेंडर्स को छकाता और एक गोल पोस्ट से दूसरे गोल पोस्ट तक पहुंच जाता। तब मुझे कोई गाइड करने वाला नहीं था। भारतीय टीम से खेलने का सपना सिर्फ सपना ही रह गया। अब बच्चों को भारतीय टीम के लिए तैयार कर अपना सपना पूरा कर रहा हूं।’
ऐसा नहीं है कि हॉकी छोड़ते ही डोमिनिक टोप्पो कोचिंग करने लगे। पहले उन्होंने एक राशन दुकान खोली, जिससे बढ़िया आमदनी होने लगी, इसी के बूते कोच बनने की ठानी। शुरू में सिर्फ ऐसे बच्चों को ट्रेनिंग देते, जिनके मां-बाप नहीं है। ये आइडिया मदर टेरेसा से आया था। साइकिल में घूम-घूमकर बच्चों की खोज करते। लड़कों से लड़कियां ज्यादा अनुशासित होती है, इसलिए उन्हें ही ट्रेनिंग देते। इंटरनेशनल खिलाड़ियों को खेलते देखते फिर उसी स्टाइल में ट्रेंनिग देते।
अब आखिरी में कहानी वही खत्म जहां से शुरुआत हुई थी कि ‘मेरी आखिरी सांस तक, जबतक मेरे भीतर जान है, मैं ये जारी रखूंगा, मैं यही काम करते-करते मर जाऊंगा’।