बेटी हुई तो नहीं देखा चेहरा, बड़ी होकर बेटा बनकर नाम किया रौशन, अब पूरे भारत की शान है यह चैंपियन

नई दिल्ली: भारत में रूढ़िवादी सोच के कारण हर साल ना जाने कितनी ही बेटियों को दुनिया में आने से ही पहले मार दिया जाता है। ये उसी भारत की बात है जहां बेटियों को शक्ति का रूप माना जाता है लेकिन समाज की मानसिकता यह रही है कि घर में बेटा पैदा हो, क्योंकि आगे चलकर वहीं वंश को आगे बढाएगा लेकिन बेटियां कभी भी बेटे से कम नहीं रही हैं। अगर उन्हें मौका मिले तो वह चांद पर भी जा सकती हैं। ऐसी ही कुछ कहानी है भारत की चैंपियन बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल की। साइना नेहवाल का जन्म हरियाणा के हिसार जिले में 17 मार्च 1990 में हुआ था। आज उनका 33वां जन्मदिन है। कहा जाता है कि जब साइना का जन्म हुआ था तो उनकी दादी ने एक महीने तक उनका चेहरा नहीं देखा था।
ऐसा इसलिए कि उनकी दादी को घर में बेटा चाहिए था। हालांकि साइना की मां उषा नेहवाल ने हमेशा उनका साथ दिया। घर-परिवार और बाहरी दुनिया के तानों को अनसुना कर साइना की मां ने अपनी बेटी को चैंपियन बनाया, जिसे आज पूरा देश सलाम करता है। बहुत कम लोगों को पता है कि साइना की मां भी बैडमिंटन प्लेयर थी। उनकी मां राज्य स्तर पर बैडमिंटन में खेली हुई हैं। हालांकि शुरुआत में साइना कराटे में अपना करियर बनाना चाहती थी लेकिन बाद उन्होंने अपनी मां के नक्शे कदम पर चलते हुए आठ साल की उम्र में बैडमिंटन रैकेट थाम लिया।
इसके बाद साल 2012 में लंदन ओलिंपिक में भी साइना ने एक बड़ा कारनामा अपने नाम किया। साइना महिला के सिंगल्स इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर सनसनी मचा दी थी। साइना ओलिंपिक में मेडल जीतने वाली भारत की पहली महिला बैडमिंटन खिलाड़ी भी बनी।
साइना नेहवाल का फॉर्म मौजूदा समय में बेशक उनका साथ नहीं दे रहा हो लेकिन करियर के शुरुआत में उनके आगे बड़ी से बड़ी खिलाड़ी भी नहीं ठहर पाती थी। यही कारण है कि उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के लिए गोल्ड जीता। साइना नेहवाल भारत के लिए कॉमनवेल्थ गेम्स में दो गोल्ड मेडल जीतने वाली इकलौती महिला खिलाड़ी हैं। उन्होंने साल 2010 और 2018 में सिगल्स में गोल्ड जीता। 2018 में ही उन्होंने मिक्स्ड प्रतियोगिता में सोने का तमगा हासिल किया था।
इसके अलावा साइना ने 2010 में मिक्स्ड टीम के साथ सिल्वर और 2006 में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया।