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जातिगत जनगणना पर कांग्रेस आक्रामक क्यों? चुनावी रणनीति या सियासी मजबूरी

नई दिल्ली : राहुल गांधी और कांग्रेस जातिगत जनगणना और आरक्षण की सीमा को बढ़ाने की मांग को लेकर आक्रामक रूप से सामने आए हैं। अब तक इन मुद्दों से परहेज करने वाले राहुल क्यों लगातार बोलने लगे हैं? जानकारों के अनुसार, 2024 आम चुनाव से पहले BJP को टक्कर देने के लिए अब इस मुद्दे को विपक्ष का मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है। जातिगत जनगणना की रिपोर्ट आखिरी बार 1931 में सामने आई थी। 1931 की रिपोर्ट और मंडल कमिशन के रिसर्च के अनुसार, देश में पिछड़े वर्ग की आबादी 54 फीसदी है।

मुद्दों पर एकता

पिछले दिनों विपक्षी एकता की तमाम कोशिशों के बीच यह बात सामने आई कि तब तक विपक्षी एकता का कोई बड़ा मतलब नहीं होगा जब तक मुद्दों पर सहमति न हो। अडाणी मुद्दा हो या कोई दूसरा मामला हर दल इस पर सहमत नहीं दिखा। मगर, जातिगत जनगणना और आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग ऐसे मुद्दे हैं जिस पर लगभग सभी विपक्षी दल साथ आ सकते हैं। इसके लिए नवीन पटनायक और जगन रेड्डी जैसे नेताओं का भी समर्थन मिल सकता है, जो अमूमन विपक्ष से दूर रहते हैं। ऐसी ही बात नीतीश कुमार और राहुल गांधी के बीच हुई मीटिंग में भी उठी। सूत्रों के अनुसार, इस मुद्दे से उत्तर प्रदेश में भी विपक्षी एकता की दिशा में कुछ पहल हो सकती है।

सवर्ण आरक्षण के बाद मांग पर जोर

जातिगत जनगणना और आरक्षण कोटा बढ़ाने की मांग ने तब और जोर पकड़ा जब केंद्र सरकार ने 2019 में आम चुनाव से ठीक पहले अगड़ों को आरक्षण दिया। इसके बाद से मांग उठने लगी कि जिस तरीके से अगड़ों के लिए 10 फीसदी कोटा तय किया गया उसी हिसाब से उनके कोटे को भी बढ़ाया जाय। देश में सबसे अधिक तादाद OBC की ही है। सवर्ण आरक्षण के बाद OBC कोटे को 27 फीसदी से बढ़ाकर 54 फीसदी करने की मांग उठने लगी। इसके लिए जातिगत जनगणना को सार्वजनिक कर हर जाति को उसके हिसाब से आरक्षण देने की मांग भी की जाने लगी है। उनका तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 50 फीसदी से अधिक आरक्षण देने का रास्ता साफ हो गया है। ऐसे में अब इसमें कोई बाधा नहीं है।

सियासी मजबूरी भी

कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों को पता है कि अगर BJP से मुकाबला करना है तो धर्म और राष्ट्रवाद की पिच पर वह मुकाबला नहीं कर सकती है। BJP ने 2024 के लिए अभी से तैयारी भी शुरू कर दी है। 2023 के अंत में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का पहला चरण पूरा होगा। विपक्ष को लगता है कि उसे काउंटर करने के लिए तैयारी अभी से करनी होगी। कमंडल से मंडल की ओर से सियासत की दिशा मोड़ने की विपक्षी दलों की रणनीति है।

2011 की जातिगत जनगणना

ऐसा नहीं है कि जातिगत जनगणना पहली बार हो रही है। UPA सरकार ने 2011 में जातिगत जनगणना करवाई थी, लेकिन 2014-15 में इसके आंकड़े आने के बाद भी तत्कालीन सरकार ने और बाद में NDA की सरकार ने इसे जारी नहीं Ṇकिया। कहा गया कि इसमें तकनीकी खामियां थीं। इसके बाद 2017 में OBC के बीच नए सिरे से वर्गीकरण करने के लिए केंद्र सरकार ने रोहिणी कमिशन बनाई, जिसे तब 6 महीने के अंदर रिपोर्ट देने को कहा गया था। मगर, वह मुद्दा भी ठंडे बस्ते में चला गया। जातिगत जनगणना के साथ अब उस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग तेज हो सकती है।

RSS भी पक्ष में नहीं

2010 में जब क्षेत्रीय दलों के साथ BJP केंद्र सरकार पर जातिगत जनगणना कराने का दबाव बना रही थी तब RSS ने उसे चेताया था। उसने कहा था कि BJP इस मुद्दे पर आक्रामक तरीके से आगे न बढ़े। RSS की चिंता थी कि इसके आंकड़े से उसके बृह्द हिंदू की कल्पना को राजनीतिक रूप से धक्का लग सकता है। BJP इस बार कोई जोखिम लेने को तैयार नहीं है। वह इस मुद्दे से लगातार दूरी ही रख रही है। आरक्षण के मसले पर पार्टी पहले सियासी रूप से फंसती रही है। 2015 बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त आरक्षण पर आए बयानों ने पार्टी को मुसीबत में खड़ा कर दिया था। हालांकि, तब से हालात बहुत बदल गए हैं।

क्या होगी रणनीति

BJP खुद को OBC की सबसे बड़ी हितैषी पार्टी होने का दावा करने से चूकती नहीं है। इस मुद्दे पर मानने के भी जोखिम हैं तो न मानने के भी। अगर, आरक्षण सीमा को बढ़ाने की मांगें मानी गईं तो प्राइवेट नौकरियों तक में आरक्षण की मांग उठ सकती है। ऐसी सूरत में BJP कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों को इस मुद्दे को किस तरह काउंटर करेगी आने वाले दिनों में पता चल जाएगा।


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