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दर्शकों से बोले अनुभव सिन्हा- आप मेरे संकट से डील ना करें, आप अपने एंजॉयमेंट से डील करें

जाने-माने डायरेक्टर और फिल्म निर्माता अनुभव सिन्हा ने तमाम हिट फिल्में दी हैं। लेकिन पिछले कुछ अरसे से उनकी फिल्मों को उतने दर्शक नहीं मिल रहे। हमसे खास बातचीत में अनुभव ने कहा कि दर्शकों को बॉलिवुड की इतनी चिंता नहीं करनी चाहिए। पहले भी पूरे साल में कुछ ही फिल्में हिट होती थीं, अब भी वैसा ही हो रहा है।


हमेशा से सिलेक्टेड फिल्में ही चलती थीं। हम इस विषय पर ज्यादा ही बात कर रहे हैं, वरना पहले भी कम फिल्में ही चलती थीं। साल में 10 फिल्में ही बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन कर पाती थीं। जो बदला है वो ये नहीं बदला है, बल्कि जो चेंज हुआ है वो ये है कि जो बाकी की फिल्में होती थीं, उनका भी एक थोड़ा-बहुत बिजनेस होता था, लेकिन अब वो मिनिमम बिजनेस बहुत कम हो गया है और कई बार वो जीरो के करीब चला जाता है। कभी-कभी वो मिनिमम पुरानी मिनिमम से भी बहुत कम होता है। लेकिन फिलहाल ऐसा ही हो रहा है।


पहले देखने में आता था कि कोई फिल्म आती थी, तो वो एक हफ्ता खींच लेती थी, लेकिन आज वो समय है जहां कोई फिल्म या तो चल रही है या नहीं चल रही?
हमें फिल्मों को एक हफ्ते के हिसाब से नहीं आंकना चाहिए। ‘तुम बिन’ मूवी थिएटर पर एक हफ्ता चली थी। 105 थिएटर में लगी थी। आज उसे 22 साल हो गए हैं, लेकिन वो फिल्म अभी भी जिंदा है। तो फिल्मों को उनकी उम्र के हिसाब से आंकना चाहिए। जैसे मेरी फिल्म ‘रा.वन’ को आप उसकी उम्र से आंक सकते हैं। वैसे ही हर फिल्म की अपनी एक उम्र होती है। कुछ फिल्में देर से जवान होती है। ‘मुगल ए आजम’ फिल्म भी दूसरे हफ्ते से जवान होना शुरू हुई थी। कला सब्र का काम है। कविता आप बार-बार पढ़िए, तो आपको और भी नई चीजें समझ में आती हैं।

क्या आपने कुछ महसूस किया है कि पिछले कुछ सालों में दर्शकों की पसंद में कुछ बदलाव आया हो?
दर्शकों की पसंद में तो बदलाव आता ही है। हर दशक में फिल्में किस प्रकार की बनेंगी, संगीत किस प्रकार का बनेगा, इससे दर्शकों की पसंद में भी बदलाव होते हैं। इंसान ज्यादा समय तक समतल जमीन पर नहीं चल सकता है। उसको एक वक्त के बाद चढ़ाई, ढलान भी चाहिए होती है। उसकी बिल्कुल भी चिंता नहीं करनी चाहिए। हम बॉलिवुड की बहुत फिक्र करते हैं, हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। बॉलिवुड में और भी चीजें हैं जिसकी चिंता करने की जरूरत है।


आजकल हर कोई फिल्म इंडस्ट्री को सलाह दे रहा है। आपकी समझ इस बारे में क्या कहती है? कैसे फिल्में बनानी चाहिए?
मुझे नहीं पता। और जो बता रहे हैं उनसे पूछिए कि आप क्या कह रहे हैं और क्यों कह रहे हैं, इसको साफ कीजिए। पान की दुकान की बातचीत जो होती है उससे बिजनेस नहीं चलते हैं। ये सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पान की दुकान की तरह है, जहां लोग कुछ भी कहते हैं, कोई एक्सपर्ट ओपिनियन देता है, लेकिन उनको पता कुछ नहीं है। फिल्म इंडस्ट्री कैसे चलती है, फाइनेंस कैसे होता है, फिल्म कैसे बनती है, उन्हें नहीं पता होता।

जैसा कि आप बता रहे हैं कि फाइनैंस, फिल्म मेकिंग के बारे में तो आप कैसे इसे मैनेज करते हैं। जैसे कि आपको पता है कि आपको अपनी फिल्म से क्या उम्मीद है तो आप कैसे चीजें मैनेज करते हैं?

मुझे कुछ नहीं पता है। अगर फिल्ममेकर को इतना पता चल जाए कि मुझे क्या करना है, तो उतना ही काफी है। ये ही समझने में वक्त लगता है, तो दर्शकों को हम क्या समझेंगे। दर्शक तो फाइनल जज हैं ना। भारत जैसे विभिन्नता वाले देश में आप ये जज नहीं कर सकते कि दर्शक को क्या अच्छा लगेगा। ये जानते हुए कि आप क्या बना रहे हैं, आप अपने मन से पूरी मेहनत से उसे बनाएं। उससे ज्यादा फिल्ममेकर कुछ नहीं कर सकता और ना ही उसे कोशिश करनी चाहिए। सेकेंड गेसिंग का गेम सबसे खतरनाक है।

पहले फिल्म को देखकर लोग अपनी राय बनाते थे, अब फिल्म का ट्रेलर आते ही या उसकी रिलीज से पहले ही उसके बारे में पॉजिटिव या नेगेटिव माहौल बनाया जाता है। इसका कितना असर होता है। क्या फिल्म रिलीज के पहले दिन पर इसका कोई प्रभाव दिखता है?

मुल्क का पहले दिन यानी शुक्रवार का कलेक्शन 1.10 करोड़ थो और सोमवार को फिल्म ने सवा करोड़ कमाए थे। तो अब बताएं आपके लिए फर्स्ट डे कौन सा था? ये ऑडियंस का काम ही नहीं है और ना ही कभी था। वो कभी इस तरह की बातें करते ही नहीं थे। दर्शक फिल्म देखते हैं, उनको अच्छी लगती है या बुरी लगती है। मुझे लगता है कि दर्शकों को इतना ही करना चाहिए। वरना फिल्म को देखने और उसे एंजॉय करने का जो मोटिव होता है वो करप्ट हो जाता है। आप फिल्म देख रहे हैं और उस समय सोच रहे हैं कि फिल्म का क्या बजट है, कितना नुकसान हुआ कितना फायदा, शनिवार को क्या हुआ सोमवार को क्या होगा, इस बीच में फिल्म कहीं खो जाती है। अब दर्शकों ने सोशल मीडिया पर फिल्म को समझने के नए-नए तरीके सीख लिए हैं, वो अब फर्स्ट और सेकेंड हॉफ पर चर्चा कर रहा है। पहले कभी कोई बोलता था कि फिल्म स्लो है या फास्ट है? उनके लिए फिल्म अच्छी या बुरी होती थी। दर्शकों का इतना ही काम है। आप मेरे संकट से डील ना करें आप अपने एंजॉयमेंट से डील करें।

रीमेक का कल्चर इन दिनों थोड़ा ज्यादा देखने को मिल रहा है। लेकिन उनको वैसा रिस्पॉन्स नहीं मिल रहा है। इस बारे में क्या कहेंगे?
खूब अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। जितना हमेशा अनुपात था, उतना आज भी है। हम इस बारे में बात भी कुछ ज्यादा कर रहे हैं। मैं कहना चाहूंगा कि इतनी बातें ना करें। कोई ट्रेंड नहीं है, सब पहले जैसा है कुछ भी नया नहीं हुआ है। बॉलिवुड में पहले भी 10 प्रतिशत फिल्में चलती थीं आज भी उतनी ही चल रही हैं। बाकी बची फिल्मों में से कुछ अपना पैसा निकाल लेती हैं और कुछ ज्यादा भी निकाल लेती हैं, कुछ कम कमा पाती हैं, तो उनकी सफलता का अनुपात तो वो ही है।

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