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चाणक्य शाह’, कर्नाटक में बस यूं ही नहीं दी गई यह तस्वीर, इसके मायने गहरे हैं

नई दिल्ली: एक साधारण से दिखने वाले बालक चंद्रगुप्त मौर्य को जिसने सम्राट की गद्दी पर स्थापित किया था, उस चाणक्य को इतिहास आज भी याद करता है। तक्षशिला का वह ब्राह्मण राजनीतिशास्त्र का प्रकांड विद्वान था। 9 साल से जिस मोदी लहर के दम पर भाजपा देश में कमल खिला रही है, उसके पीछे भी एक ‘चाणक्य’ हैं। जी हां, उन्हें आज के दौर में भारतीय सियासत का चाणक्य कहा जाता है। 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद भाजपा अध्यक्ष के रूप उन्होंने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के एजेंडे पर देश में सियासत की नई जमीन तैयार की। इस भगवा लहर में जाति, धर्म और संप्रदाय की सियासत हवा हो गई। वह कोई और नहीं, देश के गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे अमित शाह हैं। उन्होंने जमीनी स्तर पर भाजपा का मजबूत संगठन खड़ा किया और एक बार फिर 2019 में मोदी लहर को बरकरार रखा। उनके बारे में कहा जाता है कि एक चुनाव के जिस दिन नतीजे आते हैं उसी शाम से वह अगले चुनाव की तैयारियों में जुट जाते हैं। ऐसे ‘चाणक्य’ कर्नाटक में एक बार फिर कमल खिलाने के मिशन में जुटे हैं। शुक्रवार को बेंगलुरु में एक रैली के दौरान पूर्व सीएम येदियुरप्पा और मंत्री सोमशेखर ने मंच पर उन्हें एक तस्वीर सौंपी। वैसे, यह सामान्य स्वागत का एक तरीका होता है लेकिन तस्वीर को ‘जूम’ करके देखा गया तो ‘दो चाणक्य’ या कहें ‘कल और आज के चाणक्य’ दिखाई दिए। इसके मायने खास हैं।

सरकार में नंबर 2

2019 के लोकसभा चुनाव के समय शाह से पूछा गया कि क्या भाजपा तैयार है? आमतौर पर पिछले चुनाव के वादों के पूरा होने का रिपोर्ट कार्ड लेकर पार्टियां जनता के बीच जाती हैं। अमित शाह ने जो जवाब दिया, वह उनकी कार्यशैली को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि हमने तो 27 मई 2014 से ही 2019 चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी। शतरंज के शौकीन, क्रिकेट को पसंद करने करने वाले शाह क्लासिकल संगीत सुनते हैं। एक के बाद एक राज्यों में उन्होंने भगवा दल को विजय दिलाई। वह रणनीति बनाकर अपने विरोधियों को परास्त करने में यकीन रखते हैं। उनके काम करने का तरीका आम नेताओं से बिल्कुल अलग है। वह कहीं भी, कभी भी, किसी भी स्थिति में अपने काम को तवज्जो देते हैं।

उनकी जीवनी में एक दिलचस्प किस्सा पढ़ने को मिलता है। कुछ साल पहले अमेठी के दौरे पर गए शाह ने अचानक पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक बुला ली थी। यह बैठक घी कंपनी के गोदाम में हो रही थी क्योंकि वैसी जगह और कहीं नहीं मिल पाई। आधी रात के बाद तक बैठक चली। शाह के रुकने की कोई व्यवस्था नहीं थी। उन्होंने वहीं गोदाम में अपने लिए एक जगह ढूंढी और कुछ देर के लिए लेट गए। तब वह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। यह उनके दृढ़ निश्चय और मिशन मोड में काम करने की रणनीति को दर्शाता है।

राजनाथ सिंह की जगह गृह मंत्री बनने के बाद उन्हें सरकार में दूसरा सबसे ताकतवर शख्स माना गया। मीडिया में कुछ जगहों पर उन्हें ‘मोदी के जनरल’ भी लिखा गया। जिस काम में कैसे-क्यों, क्या होगा, सोचते हुए दशक बीत रहे थे… शाह गृह मंत्री बने तो देश के एक बड़े तबके को अंदाजा हो गया कि अब कुछ बड़ा होगा या सारे बड़े काम हो जाएंगे। हुआ भी कुछ वैसा ही। कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला आर्टिकल 370 निरस्त कर दिया गया। पड़ोसी देशों से हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता, बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ सख्त ऐक्शन जैसे जटिल मुद्दों के लिए उन्हें श्रेय दिया जाता है।

​नाश्ते से असंतुष्टों को संदेश

जहां जैसी जरूरत हो, ​शाह वैसा संकेत दे आते हैं। कर्नाटक के कई वरिष्ठ भाजपा पदाधिकारी इस बात को लेकर असंतोष जता रहे थे कि हाई कमान येदियुरप्पा को ज्यादा तवज्जो देता है। शुक्रवार को बेंगलुरु पहुंचे शाह कई कार्यक्रमों में शामिल होने के बाद येदियुरप्पा के घर भी गए। उन्होंने वहां नाश्ता किया और उनके घरवालों से भी मिले। यह नाश्ता असंतुष्ट नेताओं के लिए एक बड़ा संदेश है। परिवारवाद से बचते हुए अब खबरें यह भी आ रही हैं कि येदि के छोटे बेटे विजयेंद्र को भाजपा वरुणा से उतार सकती है। यहां से कांग्रेस के सिद्धारमैया लड़ रहे हैं।

शाह ने यूपी-बिहार, एमपी ही नहीं, पूर्वोत्तर को भाजपा का गढ़ बना दिया है। पंचायत से पार्लियामेंट की रणनीति उनकी काफी सफल रही। उन्होंने किसी भी चुनाव को छोटा नहीं समझा। विपक्षी यह कहकर तंज कसते रहे कि भाजपा के स्थानीय चुनाव में भी बड़े नेता प्रचार करने पहुंच जाते हैं लेकिन शाह ने हर चुनाव को बराबर तवज्जो दी। उसका असर भी दिख रहा है। पश्चिम बंगाल, ओडिशा हो या दक्षिण के राज्य, सियासत में शाह का सिक्का जम चुका है। वह होमवर्क करते हैं फिर किसी नतीजे पर पहुंचते हैं। पार्टी का एजेंडा बताने में कोई कोताही नहीं करते। उन्हें एक बड़ा तबका नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी के तौर पर देखता है।

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