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देरी पर देरी.. अगर जनगणना नहीं हो पाई तो क्या होगा? समझिए

नई दिल्ली : अभी तक जनगणना शुरू होने पर सरकार की ओर से कोई फैसला नहीं किया गया है। इसी साल जनवरी में भारत के रजिस्ट्रार जनरल ने कहा कि प्रशासनिक स्तर पर सीमाओं की यथास्थिति बनाए रखने की समय सीमा इस साल 30 जून तक बढ़ा दी गई है यानी जनगणना के दौरान राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के जिलों, कस्बों और गांवों की सीमाओं में कोई बदलाव नहीं कर सकते हैं। इस आदेश के बाद ऐसी संभावना जताई जा रही है कि जनगणना कम से कम सितंबर, 2023 तक नहीं हो पाएगी। चूंकि 2024 में लोकसभा के चुनाव भी होने हैं तो हो सकता है कि ज्यादा समय लग जाए। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर तब तक सरकारी नीतियों को लागू करने का आधार क्या होगा? इसका क्या असर होगा? अब सरकार जातीय गणना की मांग की वजह से भी बच रही है।

दो साल से लंबित है जनगणना

हालांकि कुछ एक्सपर्ट ये मानते हैं कि जब तक जनगणना का काम शुरू नहीं होता, तब तक सैंपल सर्वे किए जा रहे हैं। सैंपल से किसी भी पॉलिसी को लागू करने के लिए या फिर सरकारी योजनाओं को लागू करने के लिए एक मोटा-मोटा आधार निकल आता है। तब तक सरकार इसी को आधार बनाकर काम चला रही है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा के पिछले सत्र में बताया था कि भारत में अब पहली बार डिजिटल जनगणना होने जा रही है। सरकार ने पहले से ही इस प्लैटफॉर्म पर तकनीकी प्रगति की है, जिस पर 130 करोड़ से अधिक भारतीय नागरिकों की सही जानकारी, वर्ग, लिंग, आयु, रोजगार और अन्य सामाजिक-आर्थिक डेटा लिया जाएगा। जनगणना ऐप आधारित होगी। इसके लिए एक पोर्टल भी बनाया गया है। जनगणना-2021 में कराई जानी थी, लेकिन कोरोना महामारी के कारण अगले आदेश तक स्थगित की गई है।

सैंपल सर्वे काफी नहीं

जेएनयू समाजशास्त्र विभाग के प्रफेसर सुरेंद्र जोधका कहते हैं कि चूंकि सैंपल सर्वे में सैंपल बहुत छोटा होता है, इससे पूरी स्थिति का पता लगाना मुश्किल है। अब तक कोरोना काल भी बीत चुका। बावजूद इसके जनगणना का काम शुरू नहीं किया गया है, जबकि बाकी सारे काम शुरू हो गए हैं। जनगणना कराना लोकतंत्र के लिए एक बुनियादी बात है। जनगणना किसी देश में लोगों की संख्या की गिनती भर नहीं है। यह निम्न स्तर पर निर्णय लेने के लिए जरूरी बहुमूल्य आंकड़े उपलब्ध कराती है। इससे जहां सीमाएं तय होती हैं, वहीं बेरोजगारी, रोजगार, हर उम्र के लोगों का पता भी चलता है। इससे गांव व शहर में रहने वाले लोगों का पता चलता है। समाजशास्त्री ट्रेंड का पता लगाते हैं कि शहरों की तरफ कितने फीसदी पलायन कर रहे हैं। युवा, बुजुर्गों की उम्र और उनकी क्या स्थिति है। प्रफेसर जोधका कहते हैं, सरकार जनगणना शुरू क्यों नहीं कर पा रही है, जबकि डिजिटल जनगणना होनी है, इस बार। कुछ ही समय में इसके आंकड़े भी अपडेट हो जाएंगे।

कोरोना से पड़ी बाधा

कोराना महामारी से पहले देश में 1 जनवरी, 2020 से जनगणना के पहले चरण की तैयारी चल रही थी। पहले चरण में आवास के आंकड़े जमा किए जाते हैं। तभी कोराना आ गया और जनगणना को स्थगित कर दिया गया। कोरोना के कारण देश में लॉकडाउन लग गया था। ऐसे में प्रशासन को दूसरी चुनौतियों का भी सामना करना था। जनगणना का काम अभी तक रुका हुआ है, जबकि करीब 3 साल के दौरान देश में अधिकतर लोगों को कोरोना वैक्सीन लगाई जा चुकी है। हाल ही में संसद के सत्र में सरकार की ओर से बताया गया कि कोरोना महामारी के कारण जनगणना-2021 और संबंधित क्षेत्र की गतिविधियों को अगले आदेश तक स्थगित कर दिया गया है। इसके आगे सरकार की ओर से कोई जानकारी मुहैया नहीं कराई गई है।

जातीय जनगणना भी मसला है

दरअसल, भारत की जनगणना, जनगणना अधिनियम-1948 के प्रावधानों के तहत कराई जाती है। इसके प्रावधानों में जनगणना कराने और उसे जारी करने को लेकर समयावधि के मुद्दे पर कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है। बिहार ने इसी साल जनवरी से जातीय जनगणना शुरू की है। हालांकि 1931 से पहले देश में जातीय जनगणना होती थी, लेकिन लोकसभा में एक सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय कह चुके हैं कि फिलहाल केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा किसी और जाति की गिनती का आदेश नहीं दिया है, जबकि अब जातिगत जनगणना की भी मांग उठ रही है और बिहार राज्य ने यह शुरू भी कर दी है।

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