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पहनते ही ठंड छूमंतर… बर्फीली हवा से सिर, कान और गला बचाने वाली मंकी कैप आई कहां से?

नई दिल्‍ली: ठंड बढ़ते ही मां एक नसीहत बार-बार दोहराने लगती है, सिर-कान ढककर रखना। बंगाली घरों में माएं बच्‍चों से कहती हैं, ‘टोपी पोर, ठंडा लेगे जाबे,’ मतलब ‘टोपी पहन लो नहीं तो सर्दी लग जाएगी।’ बंगाल में ठंड का एक कल्‍चर अलग है। वहां जोर फैशनेबल और स्‍टायलिश टोपियों पर नहीं, मंकी कैप पर रहता है। सर्दी की आमद के साथ ही मंकी कैप निकल आती है और फरवरी में ठंड गुजरने तक रहती है। बंगालियों का मंकी कैप से जुड़ाव कुछ ऐसा है कि देश के बाकी हिस्‍सों में मंकी कैप को बंगाली टोपी कहते हैं। कड़ाके की ठंड में मंकी कैप पहनकर घूमते लोग आपको भारत के हर कोने में दिख जाएंगे। मंकी कैप से न सिर्फ आपका सिर पूरा तरह ढका रहता है, बल्कि कान और गले को भी ठंड नहीं लगती। केवल मुंह, नाक और आंखें खुली रहती हैं। भयंकर ठंड से बचाने वाली मंकी कैप आई कहां से? आइए इसकी कहानी जानते हैं।


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