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समलैंगिकों की बात हो रही थी तो सुप्रीम कोर्ट में एलियन की क्यों हुई चर्चा

नई दिल्ली: समलैंगिक विवाह के अधिकार से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एलियन की भी चर्चा हुई। दरअसल, मध्य प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि इसे थोपे नहीं वरना सामाजिक तानाबाना तार-तार हो जाएगा। उनका तर्क था कि बदलाव स्वीकार करने के लिए समाज का तैयार होना भी जरूरी है और ऐसे में कोर्ट को जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। द्विवेदी ने आगे कहा कि सामाजिक और सांस्कृतिक क्रांति के लिए भारत को प्रयोगशाला नहीं बनाना चाहिए। इस पर चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि समलैंगिक संबंध का कॉन्सेप्ट भारतीय संस्कृति के लिए कोई एलियन जैसी चीज नहीं है क्योंकि मंदिर की मूर्तियां सबूत हैं। केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने संबंधी याचिकाओं को खारिज करने का फिर से अनुरोध किया। केंद्र ने कहा कि जीवनसाथी यानी पार्टनर चुनने के अधिकार का मतलब कानूनी तौर पर स्थापित प्रक्रिया से परे शादी का अधिकार बिल्कुल नहीं होता है।

सभी रिश्तों को मान्यता देने के लिए बाध्य नहीं…

केंद्र ने बुधवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में नवतेज जौहर जजमेंट में समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था, लेकिन ऐसा कोई मौलिक अधिकार LGBTQIA+ समुदाय को नहीं दिया कि वे अपनी शादी को मान्यता देने की मांग करें। सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह नहीं माना जा सकता कि सरकार सभी मानवीय रिश्तों को मान्यता देने के लिए बाध्य है। इसके बजाय यह माना जाना चाहिए कि सरकार के पास किसी भी व्यक्तिगत संबंध को मान्यता देने का अधिकार नहीं है, जब तक कि कोई कानूनी हित जुड़ा न हो। चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ इन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

शादी नहीं, दूसरी चिंताओं को देखेगी सरकार

मेहता ने कहा कि विवाह के अलावा इंसानी संबंधों का एक पूरा समूह है जो समाज में मौजूद है और कुछ केस में विवाह से भी ज्यादा मूल्यवान हो सकता है। सरकार ने याचिकाकर्ताओं की उन दलीलों को निराधार बताया जिसमें कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) के तहत शादी का मौलिक अधिकार मौजूद हैं। SG ने कहा कि अनुच्छेद 14 (समानता) या अनुच्छेद 15 (धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक) के तहत सभी प्रकार के सामाजिक रिश्तों को मान्यता देने की मांग का मौलिक अधिकार नहीं हो सकता है। केंद्र ने कोर्ट को बताया कि कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में समिति गठित की जाएगी, जो समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे को छुए बिना ऐसे जोड़ों की मानवीय चिंताओं को दूर करने के उपाय ढूंढेगी। इससे पहले 27 अप्रैल को कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि क्या समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए बगैर ऐसे जोड़ों को बैंक में संयुक्त खाता खुलवाने, भविष्य निधि में जीवन साथी नामित करने, ग्रेच्युटी और पेंशन जैसी योजनाओं का लाभ दिया जा सकता है।

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