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भारत दुनिया का इकलौता देश जहां बहुसंख्यक करदाता, यहां धर्म पर नियंत्रण का जरिया है धर्मनिरपेक्षता

अमेरिकी मूल के डॉ. डेविड फ्रौलेवैदिकाचार्य के रूप में विख्यात हैं। वह अमेरिकन इंस्टिट्यूट ऑफ वैदिक स्टडीज के निदेशक हैं। आयुर्वेद, ज्योतिष, योग और वैदिक मूल्यों पर इनकी कई किताबें कई भाषाओं में प्रकाशित हुई हैं। 2015 में भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से भी सम्मानित किया। इन दिनों वह भारत में हैं। अर्चना शर्मा ने उनसे लंबी बातचीत की। पेश हैं अहम अंश 

हिंदू धर्म की ओर आपका झुकाव कैसे हुआ?

20 साल से भी कम उम्र में मैं श्री अरबिंदो, महर्षि रमण, मां आनंदमयी, योगी परमहंस योगानंद जैसे गुरुओं की शिक्षा के संपर्क में आया। भक्ति, वेदांत, योग, ज्योतिष की तरफ भी मेरा आकर्षण हुआ। ऐसा कुछ पश्चिमी दुनिया में मौजूद नहीं था। जिज्ञासा बढ़ती गई और अध्ययन करने पर मुझे लगा कि ये सभी बातें, शिक्षाएं काफी पुरानी और समृद्ध हैं। फिर अपने-आप यह राह पकड़ ली।

अपने धर्म, उसकी शिक्षाओं और बातों को लेकर भारत में रहने वाले हिंदू फॉर ग्रांटेड सा दृष्टिकोण रखते हैं। इस दृष्टिकोण में परिवर्तन और भारत की विश्व गुरु के रूप में दोबारा पहचान बनाने के लिए क्या करना चाहिए?

यह एक बेहद जरूरी और उपयुक्त प्रश्न है। भारत की शिक्षा पद्धति पश्चिमी मूल्यों से बहुत प्रभावित है। यहां लोगों पर पश्चिमी मीडिया के विचारों का भी इतना प्रभाव है कि वे उनके परोसे दृष्टिकोण को सही मानते हैं। विदेशी मीडिया अपने तरीके से भारत में प्रचलित मान्यताओं और आस्था पर रिपोर्टिंग करती है, जिससे प्रभावित होकर यहां और बाहर के लोग एक राय कायम कर लेते हैं। यह समझना जरूरी है कि हिंदू धर्म की शिक्षाओं और योग को दुनिया भर में लोग अपना रहे हैं क्योंकि पूरे विश्व में भारतीय फैले हुए हैं। इसके अलावा इसकी प्रासंगिकता को आधुनिक और चिकित्सा विज्ञान ने भी स्वीकारा है। बिना किसी पूर्वाग्रह के भारतीयों को अपनी परंपराओं की सीधी समझ होनी जरूरी है। पश्चिमी शब्दावली हिंदू धर्म की व्याख्या के लिए सही नहीं है। हिंदू धर्म कोई विश्वास प्रणाली नहीं है क्योंकि यहां कोई एक ईश्वर, एक धर्म ग्रंथ नहीं है। इसे जीवन जीने का एक तरीका कहना भी भ्रांति है, और यह इसे अपमानित करना है क्योंकि किसी के लिए क्रिकेट जीवन जीने का एक तरीका हो सकता है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड के साथ सद्भाव में जीने का तरीका है। यह एक आचरण, एक साधना का नाम है। यह स्वयं की तलाश है, कोई बाहरी विश्वास नहीं। इसलिए जरूरी है कि यहां की शिक्षा पद्धति में सुधार हो। एक सांस्कृतिक पुनरुत्थान जरूरी है और इस दिशा में प्रयास शुरू हो चुके हैं।

धर्म और माइथॉलजी के बीच लोग अक्सर फर्क नहीं कर पाते, इस बारे में आप क्या कहेंगे?
माइथॉलजी एक पश्चिमी अवधारणा है। उनके अनुसार अद्वैतवाद में आस्था का नाम धर्म है और बहुदेववाद विचार को पश्चिमी सोच पूरी तरह नकारती है। इसलिए वो किसी और तरह की आस्था के विचारों को कहानी का नाम दे देती है, जिसकी उनकी नजर में कोई सत्यता नहीं है। माइथॉलजी से उनका मतलब इतिहास होता है। यह एक तरह से बाकी मतों को नीचा दिखाने की कोशिश है।

भारत में धर्मनिरपेक्षता पर बहुत बहस होती है। इस बारे में आपकी क्या राय है?
भारत विश्व में एकमात्र ऐसा देश है, जहां बहुसंख्यक समुदाय करदाता हैं। यह धार्मिक समानता नहीं बल्कि धर्म पर नियंत्रण का एक जरिया है। यहां अभी भी कई सामंतवादी प्रथाएं चलती आ रही हैं। पश्चिम में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा ईसाई धर्मांतरण पर रोक और सरकार में ईसाई प्रभुत्व पर नियंत्रण के लिए लाई गई थी, ताकि प्रशासन प्रजातांत्रिक तरीके से काम करे। भारत में ईसाई और मुस्लिम संप्रदाय को हिंदुओं के मुकाबले काफी आजादी है, तो यह कैसी धार्मिक समानता है? विश्व स्तर पर देखें तो हिंदू मतदाताओं का प्रतिशत सबसे कम है। विश्वविद्यालयों, अकादमिक जगत में भी ऐसे ही हालात हैं।

सर्वधर्म समभाव की धारणा क्या आज के समय में राजनीतिक तिकड़म है?

सर्वधर्म समभाव काफी आधुनिक विचार है। हिंदू धर्म में धर्म का अर्थ कोई निश्चित नियमावली का पालन नहीं होता, समय और परिस्थिति के अनुसार कर्म करने का नाम ही धर्म है। इसके विपरीत कट्टरपंथी विचारधारा हमेशा एक ही तरह के कर्म का पालन करने पर जोर देती है। हिंदू धर्म में अहिंसा की भी बात की जाती है और जरूरत पड़ने पर शस्त्र उठाने की भी, जैसे महाभारत का युद्ध धर्मसंगत था। इस दुनिया में रहने वाले सभी जीवों को रहने के अधिकार और उनकी सुरक्षा की भी हम बात करते हैं।

पश्चिमी देशों की हिंदू धर्म और अध्यात्म के प्रति सोच कैसी है?
पश्चिमी देशों का दायरा काफी बड़ा है। इसमें यूरोप, रूस, कनाडा, दक्षिणी और उत्तरी अमेरिका के काफी देश हैं। इन सभी देशों में कृष्ण अनुयायी, योगानंद को मानने वाले या किसी और पंथ को मानने वाले हिंदू मौजूद हैं। इसलिए हिंदू धर्म को लेकर जानकारी तो है। पहले भारतीयों को बाहर के लोग अंधविश्वासी, पिछड़ा और निर्धन मानते थे, पर आज विदेशों में बसे भारतीय और हिंदू सबसे संपन्न और शिक्षित हैं। उनकी उपलब्धियों को स्वीकारा भी जा रहा है और एक ईर्ष्या का भाव भी है।

आप आर्य आक्रमण थियरी को नकारते हुए आर्यों को यहां का मूल निवासी मानते हैं। इस पर अपने विचार बताइए?
आर्य आक्रमण थियरी दो सौ साल पहले आई, इससे पहले इस तरह की बात का कोई साक्ष्य नहीं मिलता। ना तो आपको बाहर से आए सैनिकों का कोई पड़ाव या फिर घोड़े या रथ का कहीं उल्लेख मिलता है जिससे पता चले कि आर्य बाहर से आए थे। हिंदू परंपरा में आर्य एक संबोधन का शब्द है जो अर्जुन, महावीर सभी के लिए प्रयुक्त हुआ है। जेनेटिक अध्ययन भी इस बात को साबित करता है कि हजारों सालों में मनुष्य के आनुवांशिक गुणों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। यह जातीयता की अवधारणा को व्यक्त करने के लिए प्रतिपादित की गई व्याख्या है। हम गुण, कर्म को ज्यादा महत्व देते हैं।

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