देश

लंगड़ा आम तो खूब खाया होगा, आज इसके नाम के पीछे का राज भी जान लीजिए

नई दिल्ली: आपने कभी न कभी आम जरूर खाया होगा। कई लोगों का फेवरेट फ्रूट आम होता है। भारत के आम दुनियाभर में मशहूर हैं। माना जाता है कि देशभर में करीब 1500 वैरायटी के आम पाए जाते हैं। इन्हीं में से एक है ‘लंगड़ा आम’। हाल ही में बनारसी लंगड़ा आम को जीआई टैग भी मिला है। बनारसी लंगड़ा आम की देशभर में सबसे ज्यादा डिमांड रहती है। अगर आप भी आम खाने के शौकीन हैं, तो कभी न कभी इसके स्वाद को जरूर चखा होगा। लेकिन कभी सोचा है कि आखिर इसका नाम लंगड़ा क्यों पड़ा। आज हम आपको लंगड़ा आम के नाम की कहानी और इतिहास बताने जा रहे हैं।

300 साल पुराना है इतिहास

लंगड़ा आम का इतिहास करीब 300 साल पुराना है। रिपोर्ट के अनुसार इसकी पैदावार की शुरुआत यूपी के बनारस से हुई थी। कहा जाता है कि बनारस के एक छोटे से शिव मंदिर में एक साधु आए। वो अपने साथ आम के दो छोटे-छोटे पौधे लेकर आए, जिन्हें उन्होंने मंदिर के पीछे लगा दिया। साधु रोजाना आम के पौधों में पानी दिया करते और उनका ख्याल रखते। साधु मंदिर में करीब 4 साल तक रहे। इस वक्त में पेड़ काफी बड़े हो गए। जब आम की मंजरियां निकल आईं, तो उन्होंने उसे तोड़कर भगवान शंकर पर चढ़ाया। साधु ने कहा कि उनका मंदिर में आने का उद्देशय पूरा हो गया है। वो सुबह होते ही मंदिर से चले गए और आम के पेड़ का ध्यान रखने की जिम्मेदारी मंदिर के एक पुजारी को दे दी। उन्होंने कहा कि जब पेड़ पर आम आ जाएं, तो उन्हें कई हिस्सों में काट कर भगवान शिव पर चढ़ा दें और भक्तों में प्रसाद के रूप में बांट दें।

कई सालों तक किसी को नहीं दी आम की कलम

साधु ने पुजारी से ये भी कहा कि पेड़ की कलम और गुठली किसी को न दें। आम की गुठलियों को आग में जला दें वरना कोई उसे रोपकर नए पौधे उगा लेंगे। पुजारी ने साधु की बात का पूरा ख्याल रखा। वो कई सालों तक आम को काटकर भगवान के सामने चढ़ाता रहा और मंदिर के भक्तों को भी प्रसाद के रूप में देता रहा। लेकिन जो भी प्रसाद में आम खाता वो इसके स्वाद को दीवाना हो जाता। धीरे-धीरे पूरे बनारस में मंदिर वाले आम की चर्चा होने लगी। कई लोगों ने पुजारी से आम की गुठली मांगी ताकि वे पेड़ लगा सकें। लेकिन पुजारी ने किसी को भी गुठलियां नहीं दी।

भगवान शिव ने दिए पुजारी को सपने में दर्शन

जब मंदिर के आम की खबर काशी नरेश तक पहुंची तो वो भी वहां पहुंचे। उन्होंने आम के फल को भगवान शिव के सामने अर्पित किया और दोनों पेड़ों का निरीक्षण किया। काशी नरेश ने पुजारी से आग्रह किया कि वे आम की कलम राज्य के प्रधान माली को दे दें, ताकि वो महल के बगीचे में इन्हें लगा सकें। राजा की बात पर पुजारी ने कहा कि वो भगवान शिव से प्रार्थना करेंगे और उनके निर्देश पर कल महल आकर आम की कलम महल के माली को सौंप देंगे। रात को पुजारी के सपने में भगवान शिव आए और उन्होंने आम की कलम राजा को देने के लिए कहा।

देश में सबसे पॉपुलर है आम की वैरायटी

दूसरे दिन पुजारी आम के प्रसाद को लेकर राजमहल पहुंचा। उन्होंने राजा को आम की कलम भी सौंप दी। काशी नरेश ने माली के साथ जाकर बगीचे में पेड़ों की कलमें लगाईं। कुछ ही सालों में ये पेड़ बन गए। धीरे-धीरे पूरे रामनगर में आम के कई पेड़ हो गए। इसके बाद बनारस से बाहर भी आम की फसल होने लगी और अब ये देशभर में सबसे पॉपुलर आम की वैरायटी है।

कैसे पड़ा नाम?

लंगड़ा आम की कहानी तो आपको पता चल गई , लेकिन अब सोच रहे होंगे कि इसका नाम कैसे पड़ा। दरअसल, साधु ने जिस पुजारी को आम के पेड़ों का ख्याल रखने की जिम्मेदारी वो दिव्यांग था। उन्हें सब ‘लंगड़ा पुजारी’ के नाम से जानते थे। इसलिए आम की इस किस्म का नाम भी ‘लंगड़ा आम’ पड़ गया। आज भी इसे लंगड़ा आम या बनारसी लंगड़ा आम कहा जाता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button