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मैरिटल रेप में पति पर केस होगा:कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा- पत्नी से दुष्कर्म के लिए पति को छूट नहीं हो सकती

वैवाहिक दुष्कर्म काे लेकर कानून में अपवाद की संवैधानिकता पर सुप्रीम काेर्ट के अगले महीने आने वाले फैसले से पहले कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक मामले में पति पर केस दर्ज करने का आदेश दिया है। राज्य सरकार ने भी इस मामले में पति पर पत्नी के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में केस दर्ज करने का समर्थन किया है।

राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है। इसमें कहा है कि केस दर्ज होना चाहिए। हाईकोर्ट ने पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाने के लिए आईपीसी की धारा 376 के तहत पति के खिलाफ लगाए गए आरोपों को बरकरार रखा था।

वैवाहिक दुष्कर्म अपवाद की संवैधानिकता पर काेई टिप्पणी किए बिना हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले के तथ्यों और हालात में इस तरह के यौन हमले/दुष्कर्म के लिए पति को पूरी छूट नहीं दी जा सकती है। वैवाहिक दुष्कर्म पर बहस का एक लंबा दौर है। पूर्व में दिल्ली हाईकोर्ट में दााखिल याचिकाओं में दुष्कर्म के कानून के तहत पतियों को दी गई छूट को खत्म करने की मांग की गई थी।

केंद्र सरकार ने नहीं अपनाया था स्पष्ट रुख
केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में वैवाहिक दुष्कर्म को आपराधिक बनाने पर स्पष्ट रुख अपनाने से परहेज किया था। याचिकाओं में आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को चुनौती दी गई थी। वहीं, कर्नाटक हाई कोर्ट ने वैवाहिक दुष्कर्म की एफआईआर को रद्द करने से इनकार करते हुए फैसला सुनाया था। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 375 का अपवाद 2 पूर्ण नहीं है। इसमें पति को रियायत दी गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय कानून में मैरिटल रेप को एंट्री दे दी है। अभी ये एंट्री केवल अबॉर्शन के लिए ही है। फिर भी ये पहली बार है जब सीमित ही सही, लेकिन मैरिटल रेप को मान्यता मिली है। जबकि सरकार का मानना रहा है कि पति, पत्नी का रेप नहीं करते। आखिर क्या है शादीशुदा महिलाओं के अबॉर्शन में मैरिटल रेप से जुड़ा फैसला, आखिर मैरिटल रेप होता क्या है।

शादी के वादे पर विवाहिता से संबंध बनाना रेप नहीं

केस दर्ज कराने वाली महिला विवाहित है। उसने शादी के वादे पर अपनी इच्छा से पति के अलावा एक अन्य पुरुष से संबंध बनाए हैं। यह जानते हुए कि उसके साथ वह तलाक से पहले शादी नहीं कर सकती है। इस तरह यह वादा अवैध है और यह भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा 376 (2)(N) के तहत केस दर्ज करने का आधार नहीं हो सकता है।

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